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टांडा में हिमाचल की पहली बैलून कायफ्लोप्लास्टी सर्जरी

himachal first balloon kyphoplasty surgery, टांडा में पहली बार बैलून क्योपोप्लास्टी की सफल सजर्री की गई।

By Edited By: Published: Thu, 07 Feb 2019 09:10 PM (IST)Updated: Fri, 08 Feb 2019 11:00 AM (IST)
टांडा में हिमाचल की पहली बैलून कायफ्लोप्लास्टी सर्जरी
टांडा में हिमाचल की पहली बैलून कायफ्लोप्लास्टी सर्जरी

जेएनएन, कांगड़ा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा के न्यूरोसर्जरी विभाग के विशेषज्ञों ने प्रदेश की पहली बैलून कायफ्लोप्लास्टी सर्जरी कर कीर्तिमान स्थापित किया है। मरीज की रीढ़ की हड्डी में आए फ्रेक्चर का छोटा चीरा लगाकर ऑपरेशन किया गया। इससे मरीज को नया जीवन मिला है। कांगड़ा जिला के 32 मील का रहने वाला राजेश कुमार पेड़ से गिर गया था। इससे उनकी रीढ़ की हड्डी दब गई थी और इसमें फ्रेक्चर आ गया था। राजेश बिजली बोर्ड में कार्यरत है।

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इस तरह के मरीज को तुरंत उपचार न मिलने से पूरी उम्र बिस्तर पर गुजारनी पड़ती है। टांडा मेडिकल कॉलेज में बैलून कायफ्लोप्लास्टी सजर्री से राजेश को नई जिंदगी मिली है। राजेश को छह फरवरी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। कार्यकारी प्राचार्य डॉ. भानु अवस्थी ने बताया कि बैलून कायफ्लोप्लास्टी सर्जरी करने वाला टांडा मेडिकल कॉलेज प्रदेश का पहला स्वास्थ्य संस्थान बन गया है। न्यूरोसर्जरी विभाग द्वारा दो फरवरी 2019 को टांडा में यह सर्जरी की गई। उन्होंने इसके लिए न्यूरोसर्जन डॉ. अमित जोशी व उनकी टीम को बधाई दी। उन्होंने बताया कि मेडिकल साइंस में इस तरह की सर्जरी करना बड़ा मुश्किल काम है और इसके लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता होती है। चुनिंदा देशों में ही बैलून कायफ्लोप्लास्टी सर्जरी के विशेषज्ञ हैं। इसमें अब टांडा मेडिकल कॉलेज का भी नाम जुड़ गया है।

क्या है बैलून कायफ्लोप्लास्टी सर्जरी

यह एक न्यूनतम इनवेसिव स्पाइन प्रक्रिया है। इसका उपयोग रीढ़ के फ्रेक्चर को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसमें टूटी रीढ़ की हड्डी जोड़ने के लिए पांच मिलीमीटर के सिर्फ दो चीरे लगाए जाते हैं। फ्लोरोस्कोपी का उपयोग सही स्थिति का पता लगाया जाता है। इनफेटबल गुब्बारे का उपयोग किया जाता है। इसे दबी हुई हड्डी के दबे हिस्सों को अलग कर सामान्य स्थिति में लाया जाता है। इसके बाद हड्डी को स्थिर कर दिया जाता है।


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