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कोल्ड स्टोर से कम नहीं हैं पहाड़ की खातियां, जमीन के नीचे छह माह तक सुरक्षित रहती है उपज, पढ़ें खबर

Himachal Khatiyan कृषि और बागवानी उत्पादों को सुरक्षित रखने के लिए अब अधिकतर कोल्ड स्टोर का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी पुराने तरीके से फसल को सुरक्षित रखा जाता है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Thu, 15 Oct 2020 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 15 Oct 2020 09:00 AM (IST)
कोल्ड स्टोर से कम नहीं हैं पहाड़ की खातियां, जमीन के नीचे छह माह तक सुरक्षित रहती है उपज, पढ़ें खबर
कृषि और बागवानी उत्पादों को सुरक्षित रखने के लिए अब अधिकतर कोल्ड स्टोर का इस्तेमाल किया जा रहा है।

शिमला, प्रकाश भारद्वाज। कृषि और बागवानी उत्पादों को सुरक्षित रखने के लिए अब अधिकतर कोल्ड स्टोर का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी पुराने तरीके से फसल को सुरक्षित रखा जाता है। इससे उपज कई महीने तक सुरक्षित रहती है। इसके लिए जमीन के अंदर खातियां बनाई जाती हैं। इसे देसी कोल्ड स्टोर भी कहते हैं। खातियों में सर्दियों के दौरान खाने और बीज के लिए आलू, हल्दी, अदरक और अरबी को रखा जाता है। इन दिनों प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आलू की फसल निकाली जा रही है। इसी तरह कुछ दिन बाद हल्दी और अदरक निकाला जाएगा। लोग खाने और बीज के लिए पांच से 10 क्विंटल तक फसल जमीन के नीचे खाती में रख देते हैं।

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प्राकृतिक संग्रहण की यह तकनीक सदियों से चली आ रही है। प्रदेश के निचले गर्म मैदानी क्षेत्रों को छोड़कर अन्य जगह खातियों में कंदमूल प्रजाति की फसल को सुरक्षित रखा जाता है। जब जरूरत पड़ती है तो निकालकर खाने के लिए उपयोग करते हैं।

किस तरह तैयार होती हैं खातियां

जमीन में गड्ढा कर सबसे नीचे चीड़ की पत्तियां डाली जाती हैं। उसके ऊपर अदरक, अरबी, हल्दी और आलू को रखा जाता है। ऊपर से चीड़ की पत्तियों से ढककर मिट्टी डाल दी जाती है। इस दौरान यह ध्यान रखना पड़ता है कि हवा भीतर नहीं पहुंचनी चाहिए। कुछ वर्ष पहले गड्ढे में पत्थर की दीवार बनाकर खातियां बनाई जाती थीं। खाती की विशेषता यह है कि इनमें बीज सुरक्षित रहता है और अंकुरित होने से वजन भी बढ़ जाता है।

क्या कहते हैं किसान

  • शिमला की ढैंडा चायली पंचायत के प्रेम ठाकुर कहते हैं बीज के लिए कहां भटकते रहेंगे, इसलिए हर साल चार से छह क्विंटल घंडयाली खाती में दबाते हैं। खाती में इनका आकार भी बढ़ता है। इससे मार्च-अप्रैल में बीज की जरूरत पूरी हो जाती है।
  • सिरमौर जिला में शिलाई के कांडो भटनोल निवासी मदन चौहान का कहना है वह हर साल छह क्विंटल अदरक जमीन के नीचे रखने की व्यवस्था करता हैं। नवंबर में अदरक निकलना शुरू होगा और फिर खातियों में दबा दिया जाएगा।
  • शिमला के मजयालू बसंतपुर निवासी दलीप सिंह कंवर का कहना है किसान अपनी उपज को अगले साल के लिए सुरक्षित रखने की व्यवस्था करता है। बीज तैयार करने की यह सबसे उपयुक्त विधि है।

छह माह तक रहता है सुरक्षित

कृषि विभाग के निदेशक डा. एनके वधान का कहना है यह प्राचीन विधि है। गर्म इलाकों को छोड़ दें तो प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में किसान खातियां बनाते हैं। सिरमौर में किसान अदरक बड़े पैमाने पर उगाते हैं और बीज भी बेचते हैं। जमीन में करीब छह माह तक यह सुरक्षित और अंकुर प्रक्रिया के लिए उपयोगी माध्यम है। यह ध्यान रखना पड़ता है कि सडऩ रोग न लगे।


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