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खबर के पार: घर से रामायण का रिश्ता टूट गया, जब से दादी मां का चश्मा टूट गया; पढ़ें पूरा मामला

Khabar ke paar देश के जनमानस में बसे श्रीराम का आसन इतना मजबूत है कि रोम-रोम में राम की बात अब भी गूंजती है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 08:33 AM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 08:33 AM (IST)
खबर के पार: घर से रामायण का रिश्ता टूट गया, जब से दादी मां का चश्मा टूट गया; पढ़ें पूरा मामला
खबर के पार: घर से रामायण का रिश्ता टूट गया, जब से दादी मां का चश्मा टूट गया; पढ़ें पूरा मामला

नवनीत शर्मा, धर्मशाला। देश के जनमानस में बसे श्रीराम का आसन इतना मजबूत है कि 'रोम-रोम में राम' की बात अब भी गूंजती है। वह कहावतों में हैं, लोकोक्तियों में हैं। ...और अगर सावन में किसी ने चश्मा नहीं पहना है, तो विस्मयादि की परिस्थितियों में उसके मुंह से भी 'राम-राम' या 'हे राम' ही निकलता है। राम इस तरह मन में विराजे हुए हैं कि हर दूसरे नाम के साथ राम का नाम प्रत्यय के रूप में अटल है। राम एक लय हैं... ताल हैं राम। राग हैं राम... और अस्तित्व को सिकोडऩे वाले जीवन में आस्था का ताप राम हैं। संगीत हैं राम। आदि से अंत तक की संस्कृति हैं।

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कौन नहीं जानता कि अंतिम यात्रा में भी एक 'राम नाम सत है' का शब्द ही गूंजता है। गोस्वामी तुलसी दास ने तो कह ही दिया था कि होता वही है, जो राम ने रचा होता है। चार भाई... चारों सौतेले लेकिन लेशमात्र भी कलुष नहीं... अद्भुत संगठनकर्ता... बंदरों, वन्य प्राणियों तक को संगठित कर लिया। संगठन और सहमति के प्रतीक राम।  

जिस सुप्रीम कोर्ट में राम के जन्म स्थान पर सुनवाई जारी है उसने भी राम नवमी के अवकाश काटे हैं...। जिस पार्टी ने शीर्ष अदालत में हलफनामा दिया है कि राम का अस्तित्व ही नहीं है, उसी के बड़े नेता दशहरे पर धनुष उठाते हैं...। यह राम की लीला नहीं तो क्या है।

इस बार भी राम का वनवास समाप्त होने वाला है, दीप पर्व की तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं। हर घर उनके आगमन की प्रतीक्षा में है। राम आते हैं, इसलिए आएंगे भी। कोई भला कहे या बुरा कहे, वह इससे ऊपर हैं। इसलिए ऊपर हैं क्योंकि जब उन्हें वनवास का आदेश मिला, वह व्यथित नहीं थे...जब वनवास समाप्ति पर उनका राज्याभिषेक होने लगा तब वह हर्षित नहीं थे। देशभर में दशहरा की धूम हो चुकी तो अब कुल्लू में रघुनाथ जी का मेला जारी है। राम का अर्थ है सब देवताओं का मौजूद होना। राम के नाम पर सहमति। रघुनाथ जी की मूर्ति को चुराने के प्रयास बेशक किए गए हों, रघुनाथ जी सदियों से कुल्लूवासियों के स्नेह में बंधे हुए हैं।

इस सारे वातावरण में रामलीला एक संबद्ध किंतु अलग विषय है।

एक रामलीला में जाने का संयोग हुआ। कांगड़ा के फरेड़ गांव में साढ़े तीन दशक से जारी रामलीला के पंडाल में कई गांवों के लोग दर्शक बनते हैं। जिस सामुदायिकता के अभाव को निरंतर रोया जाता है, वही सामुदायिकता यहां दिखी। कोई प्रसाद का योगदान कर रहा है, कोई पुरस्कार की राशि दे रहा है, किसी के सौजन्य से चायपान का प्रबंध है। छोटे-छोटे बच्चे निश्चित अंतराल के बाद स्वयं कहते हैं कि प्रश्न पूछिए। इस प्रश्नोत्तरी के बाद पुरस्कार के रूप में कॉपी और पेंसिल भी मिलते हैं। इन बच्चों को अधिकार है कि वह किसी भी सोनाक्षी सिन्हा पर हंसे।

उन्हें पता नहीं था कि हनुमान जी संजीवनी बूटी किसके लिए लाए थे। देशभर में रामलीला का मौसम है लेकिन हिमाचल की कुछ गिनी-चुनी और विशुद्ध रूप से जज्बे के सिर पर चली रामलीलाओं में से एक इस रामलीला का रूप इसलिए विलक्षण है क्योंकि समाज एक साथ दिखता है, जो इसे एक साथ देखता है। मोबाइल फोन के कारण मु_ी में सिमट आई जिंदगी की गालों पर आश्विन की हल्की ठंड जब थपकियां लगाती है...जब मैं बड़ा, वह छोटा का अहंकार घर में रख कर आते हैं लोग... जब भेड़ के ऊन से बने पट्टू में छोटे बच्चे माताओं की गोद में बैठ कर जामवंत को लंका अभियान के विषय में राम के साथ परामर्श करता देखते हैं तो यू ट्यूब की जरूरत किसे पड़ेगी?

इस दौर में जब बच्चों को चुप करवाने का सबसे बड़ा जरिया मोबाइल फोन बन गया है, रामलीला जैसे परंपरागत और स्वस्थ मनोरंजन का अधिकार नई पीढ़ी को क्यों न मिले? हिमाचल में कुछ स्थानों को छोड़ कर अब रामलीला की संस्कृति संभव है दस्तावेजी फिल्मों में ही मिले। जैसे... हम चेते नहीं तो कुछ दशकों के बाद अगली पीढिय़ां चित्रों में देखेंगी कि बर्फ पहले इतनी नीचे तक आती थी... कि बिलकुल हरा पेड़ इस तरह का होता था... कि अमुक नदी में पानी पहले यहां तक आता था आदि।

आग्रह यह नहीं है कि नई पौध सूचना-तकनीकी के उपकरणों अथवा औजारों का उपयोग न करे, लेकिन तकनीक से काम लेना एक बात है, तकनीक के काम आ जाना दूसरी बात। लंका कांड की यह चौपाई क्यों हमारा मार्गदर्शन न करे :

नाथ न रथ नहि तन पद त्राना/ केहि बिधि जितब बीर बलवाना/ सुनहु सखा कह कृपानिधाना/जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना यानी ...हे नाथ! आपके न रथ है, न तन की रक्षा करने वाला कवच है और न जूते ही हैं। वह बलवान वीर रावण किस प्रकार जीता जाएगा? इस पर श्रीराम ने कहा, जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है। एक तरफ संगठित और प्रशिक्षित सेना, विमान भी और दूसरी ओर नंगे पांव श्रीराम।

तकनीक का शीर्ष नहीं थे राम तो क्या थे? रामलीला को अब यह बताना चाहिए कि राम का चरित वही है...रावण बदल गए हैं...। बेसहारा पशु, पर्यावरण को खतरे, आदमी का आदमी से दूर होना, सामुदायिकता की कमी और अपने अहंकार का ही कारावास स्वीकार करना नए रावण हैं जिनसे जूझना जरूरी है। रामायण और राम के चरित साथ रिश्ता उतना ही आवश्यक है जितना जरूरी पत्तों की हरियाली के लिए जड़ों का मजबूत होना है। पूर्ण एहसान यूं ही नहीं कहते :

घर से रामायण का रिश्ता टूट गया

जबसे दादी मां का चश्मा टूट गया।


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