केसीसी बैंक ने नियमों को दरकिनार कर एक फर्म को दे दिया 70 करोड़ का कर्ज, नहीं लौटाया तो एनपीए घोषित किया
कांगड़ा केंद्रीय सहकारी (केसीसी) बैंक में नौकरियों में तो गंभीर अनियमितताएं बरती ही गईं प्रबंधन ने कर्ज बांटने में भी नियमों को ताक पर रखा।
शिमला, रमेश सिंगटा। कांगड़ा केंद्रीय सहकारी (केसीसी) बैंक में नौकरियों में तो गंभीर अनियमितताएं बरती ही गईं, प्रबंधन ने कर्ज बांटने में भी नियमों को ताक पर रखा। सूत्रों के अनुसार ऊना की एक फर्म को नियमों को ताक पर रखकर करीब 70 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया। यह मामला पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल का है। उस दौरान बैंक प्रबंधन फर्म पर मेहरबान रहा। फर्म ने कर्ज नहीं लौटाया तो इसे मिलीभगत से नॉन परफॉर्मिंग असेट्स (एनपीए) घोषित कर दिया। अब बैंक प्रबंधन ने फर्म की संपत्ति नीलाम करने का फैसला लिया है। हालांकि, इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पा रही है।
वहीं, विजिलेंस ने सरकार से कर्ज देने वाली तत्कालीन कमेटी के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने की सिफारिश की है। इसके लिए जांच एजेंसी ने गृह सचिव से अनुमति मांगी है। इसी मामले में विजिलेंस के एडीजीपी ने प्रशासनिक सचिव से अनुमति मांगने को लेकर पत्र लिखा है। अनुमति मिलने के बाद ही कानूनी कार्रवाई हो सकेगी। इसके अलावा पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान के प्रबंधन पर शिकंजा कसेगा। तत्कालीन कमेटी के कर्ताधर्ताओं पर कार्रवाई तय है।
विजिलेंस जांच में बैंक में कर्ज से जुड़े कायदे कानून का अध्ययन कर पूरा रिकॉर्ड कब्जे में लिया गया। इसकी जांच में अपराध होने का एंगल पाया गया। अगर यह एंगल न मिलता तो प्रबंधन से ही कार्रवाई करने को कहा जाता। विभागों व संस्थानों से जुड़े चार्जशीट के कई मामलों में विजिलेंस उसी विभाग को कार्रवाई करने के लिए कहता है, जिसके अधिकारियों व कर्मियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों। वहीं, केसीसी बैंक के मामले में कई पुख्ता सुबूत मिलने की बात कही गई है।
मनी लॉंड्रिंग में दो अधिकारी संलिप्त
विजिलेंस जांच में एक अन्य मामले में केसीसी बैंक के दो अधिकारियों की मनी लॉंड्रिंग में संलिप्तता सामने आई है। सूत्रों के अनुसार ये अधिकारी खाताधारकों की कमाई को प्रॉपर्टी डीलर को कर्ज के तौर पर देते थे। इस कर्ज का पैसा बेनामी संपत्तियों में निवेश करवाते थे। जांच एजेंसी आरोपितों के कब्जे से बेनामी भू सौदों की 150 रजिस्ट्रियां भी बरामद कर चुकी है। इससे इस आशंका को बल मिला है कि पर्दे के पीछे फर्जीवाड़े का असल खेल यही अधिकारी खेल रहे थे। ऊना में कार्यरत बैंक अधिकारियों ने बार-बार कर्ज स्वीकृत किया। चार करोड़ से ज्यादा का कर्ज आवंटित किया लेकिन डेढ़ करोड़ रुपये फंस गए। इस राशि को नहीं लौटाया गया तो इसे एनपीए घोषित कर दिया। इसमें भी प्रॉपर्टी डीलर के साथ मिलीभगत होने के आरोप हैं।