Shardiya Navratri 2019, नहर के पानी से भी नहीं बुझी थीं मां ज्वालामुखी की पवित्र ज्योतियां, अकबर हुआ था नतमस्तक
Shardiya Navratri 2019 शक्तिपीठ ज्वालामुखी में मां भक्तों को ज्योति के रूप में दर्शन देती हैं। मान्यता है कि ज्वालामुखी में माता सती की जीभा गिरी थी।
ज्वालामुखी, पंकज सोनी। शक्तिपीठ ज्वालामुखी में मां भक्तों को ज्योति के रूप में दर्शन देती हैं। मान्यता है कि ज्वालामुखी में माता सती की जीभा गिरी थी। मंदिर में होने वाले चमत्कारों को सुनकर अकबर सेना सहित यहां आया था। उसने माता की ज्योतियों को बुझाने के लिए नहर का निर्माण करवाया और सेना से पानी डलवाया था। लेकिन नहर से माता की ज्योतियां नहीं बुझीं। इसके बाद अकबर ने माता से माफी मांगी और पूजा कर सवा मन सोने का छत्र चढ़ाया। माता ने उसका छत्र स्वीकार नहीं किया और यह अज्ञात धातु में बदल गया।
अकबर कई दिनों तक मंदिर में रहकर माता से क्षमा मांगता रहा और बाद में दु:खी मन से वापस लौट गया। बताते हैं इस घटना के बाद अकबर के मन में हिंदू देवी-देवताओं के लिए श्रद्धा की भावना पैदा हुई थी। छत्र किस धातु का है, नहीं पता अकबर की ओर से चढ़ाए गए छत्र की जांच के लिए 60 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का एक दल पहुंचा था। वैज्ञानिकों ने जब छत्र के एक हिस्से का परीक्षण किया तो इसे किसी भी धातु का नहीं माना। ज्वालामुखी मंदिर में छत्र व नहर के अवशेष मौजूद हैं। मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने शुरू करवाया था। इसके बाद राजा रणजीत सिंह व राजा संसार चंद ने इसका कार्य पूरा करवाया।
कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास में यहां समय गुजारा था और मां की सेवा की थी। मंदिर से जुड़ा एक लोकगीत भी है, जिसे भक्त गाते हुए मंदिर में प्रवेश करते हैं। पंजा-पंजा पांडवां तेरा भवन बनाया, राजा अकबर ने सोने दा छत्र चढ़ाया। मंदिर में सात ज्योतियां मंदिर के गर्भ गृह के अंदर सात ज्योतियां हैं। सबसे बड़ी ज्योति महाकाली का रूप है, जिसे ज्वालामुखी भी कहा जाता है। दूसरी ज्योति मां अन्नपूर्णा, तीसरी मां चंडी, चौथी मां हिंगलाज, पांचवीं विंध्यावासनी, छठी महालक्ष्मी व सातवीं मां सरस्वती की है।
पांच बार होती है आरती
मंदिर में पांच बार आरती होती है। पहली आरती मंदिर के कपाट खुलते ही सुबह पांच बजे की जाती है। दूसरी मंगल आरती सुबह की आरती के बाद की जाती है। तीसरी आरती दोपहर 12 बजे की जाती है और माता को भोग भी लगाया जाता है। चौथी आरती सायं सात बजे होती है। पांचवीं आरती रात साढ़े नौ बजे की जाती है। इस दौरान माता की शय्या को फूलों, आभूषणों व सुगंधित सामग्री से सजाया जाता है। यहां पर ज्वाला चमत्कारिक है। अंग्रेजों ने जमीन से निकलती ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए पूरा जोर लगा दिया था लेकिन वे इसे ढूंढ़ नहीं पाए थे।
कैसे पहुंचें ज्वालामुखी मंदिर
अगर हवाई जहाज से आना हो तो कांगड़ा के पास गगल हवाई अड्डा पर उतर सकते हैं। यहां से ज्वालामुखी मंदिर करीब 45 किलोमीटर दूर है। अगर रेलगाड़ी से आना हो तो पठानकोट से रानीताल पहुंचने के बाद बस व टैक्सी से ज्वालामुखी पहुंच सकते हैं। दिल्ली, शिमला व पंजाब के प्रमुख स्थानों से सीधी बसें ज्वालामुखी आती हैं।