उद्यमी बोले, बीबीएन से उद्योगों का पलायन बड़े खतरे की घंटी
Govt Not Give Facilities in BBN areaएशिया का सबसे बड़ा दवा निर्माता माने जाने वाले बीबीएन से कई दवा उद्योग सिक्किम समेत अन्य राज्यों की तरफ बड़ी तेजी से पलायन कर रहे हैं।
धर्मशाला, जेएनएन। प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां तेज हैं। हर वर्ग की अपनी मुश्किलें व चुनौतियां हैं। सरकार से इनके समाधान की उम्मीद है। प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ (बीबीएन) में हिमाचल प्रदेश समेत देश के लाखों लोगों को रोजगार मिला है। लेकिन इस वक्त औद्योगिक क्षेत्र से उद्योगों का पलायन अन्य राज्यों की तरफ हो रहा है। कई उद्योग बंद भी हो चुके हैं। एशिया का सबसे बड़ा दवा निर्माता माने जाने वाले बीबीएन से कई दवा उद्योग सिक्किम समेत अन्य राज्यों की तरफ बड़ी तेजी से पलायन कर रहे हैं। औद्योगिक संघों के प्रतिनिधि दावा करते हैं कि बीबीएन में अब पहले वाली बात नहीं रही। उद्योगों में रोजगार की संभावनाएं खत्म होती जा रही हैं।
आने वाले समय में बीबीएन में रोजगार के लिए मारकाट मचेगी। उद्योगों के पलायन का मुख्य कारण इस क्षेत्र में पर्याप्त सुविधाएं न मिल पाना है। बीबीएन में महंगी बिजली, बदहाल सड़कें, रेल कनेक्टिविटी और जरूरी आधारभूत ढांचा न होना सबसे बड़ी परेशानियां हैं। लघु उद्योग भारती हिमाचल के प्रदेश महामंत्री राजीव कंसल, गत्ता उद्योग संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेंद्र जैन, बीबीएन इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ट्रांसपोर्ट कमेटी के सदस्य अशोक राणा व प्लास्टिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन बद्दी के अध्यक्ष अनिल मलिक ने दैनिक जागरण के चौपाल कार्यक्रम में उद्योगों की समस्याओं पर खुलकर बात की। इनका कहना है कि सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान दे, उद्योगों को बचाने के लिए तत्काल नीति बनाए ताकि युवाओं के रोजगार के अवसर खत्म न हों।
जीएसटी में पैसे का समय पर नहीं हो रहा रिफंड
लघु उद्योग भारती हिमाचल के प्रदेश महामंत्री राजीव कंसल का कहना है कि जीएसटी से इंस्पेक्टरी राज खत्म हो गया है। पहले सी फार्म सहित अन्य कई फार्म भरने पड़ते थे। अब इससे छुटकारा मिल गया है। पर जीएसटी में पैसे का भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। कई उद्योगों के पांच करोड़ रुपये तक भी जमा हो गए हैं। इस पैसे का दो-तीन महीने में भुगतान होना चाहिए। राज्य सरकार इसे केंद्र सरकार का मामला बता रही है। जीएसटी में लघु उद्योगों के लिए एक सरल नीति बनाई जानी चाहिए। हर महीने की बजाय तीन महीने में रिटर्न भरने की व्यवस्था होनी चाहिए। अनावश्यक कागजी कार्रवाई कम करने की जरूरत है।
गत्ते से कम किया जाए जीएसटी
गत्ता उद्योग संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेंद्र जैन कहते हैं, आज गत्ता उद्योग की प्रदेश में करीब 300 इकाइयां काम कर रही हैं। इनमें आधी हिमाचल की हैं। आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस उद्योग को किस तरह से टिकाया जाए। किसी भी क्षेत्र में गत्ता उद्योग तय करते हैं कि वहां उद्योगों की क्या स्थिति है। बीबीएन से उद्योग दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। इस कारण हमारा काम आधा रह गया है। इसे रोकने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। हिमाचल में सेब की पेटियां बनाने में गत्ते का इस्तेमाल होता है। हमें गत्ते पर 12 प्रतिशत जीएसटी देना पड़ता है। पंजाब और हरियाणा से बिना जीएसटी के दो नंबर में गत्ते की पेटियां बागवानों को मिल रही हैं। इससे बीबीएन के उद्योगों को नुकसान झेलना पड़ रहा है। ऊपर से हमारे यहां भाड़ा भी ज्यादा है। राज्य सरकार को चाहिए कि कम से कम बागवानों के लिए गत्ते पर जीएसटी 12 प्रतिशत से कम किया जाना चाहिए।
उद्योगपतियों को चुकाना पड़ता है अधिक भाड़ा
बीबीएन इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ट्रांसपोर्ट कमेटी के सदस्य अशोक राणा का कहना है, बीबीएन में रिक्शा से लेकर ट्रकों की यूनियनें हैं। ये लोग मनमानी करते हैं। इसका उद्योगों को नुकसान हो रहा है। बद्दी में उद्योग तीन दशक से अधिक समय से काम कर रहे हैं। वर्ष 2003 में औद्योगिक पैकेज मिलने के बाद इस क्षेत्र में उद्योग बढ़े। जब तक पैकेज मिल रहा था तब तक सब ठीक था। उसके बाद उत्पादन पर असर पड़ा। हिमाचल में ट्रक यूनियनें डेढ़ गुणा ज्यादा भाड़ा लेती हैं। उद्योग अपनी गाड़ी इस्तेमाल नहीं कर सकते। बड़ी दिक्कत यह है कि जब बाहर से गाड़ी सामान लेकर आती है तो यूनियन के दबाव के चलते उस गाड़ी को खाली वापस भेजना पड़ता है। इससे उद्योगों को नुकसान होता है। यहां के ट्रक जब बाहर सामान लेकर जाते हैं तो वे बाहर से भी सामान लेकर आते हैं। उद्योगपति चाहते हैं कि बाहर से सामान लेकर आने वाली गाडिय़ों को यहां से भरकर ले जाने की अनुमति मिले। दूसरा बड़ा मसला बिजली का है। हिमाचल बाहरी राज्यों को बिजली बेचता है। दूसरे राज्यों में बिल का भुगतान भी देरी से होता है। यहां के उद्योग चाहते हैं कि उन्हें सस्ती बिजली दी जाए।
छोटे उद्योगों के लिए हो अलग नीति
प्लास्टिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन बद्दी के अध्यक्ष अनिल मलिक कहते हैं, बीबीएन से उद्योगों का पलायन खतरे की घंटी है। एक उद्योग से 10 अन्य उद्योग जुड़े होते हैं। एक उद्योग जाता है तो उसके साथ अन्य कई को मजबूरन जाना पड़ता है। इस क्षेत्र से उद्योगों को पलायन बड़ी खतरे की घंटी है। एक साल में हालात बहुत खराब होने वाले हैं। एक उद्योग के पलायन से डेढ़-दो हजार वेंडर्स बेकार हो जाते हैं। उनका भुगतान रुक जाता है। छोटे उद्योगों की बात सुनी नहीं जाती। मामला छोटे उद्योग उठाते हैं और इसका लाभ बड़े उद्योग ले जाते हैं। इसलिए छोटी इकाई के लिए अलग नीति होनी चाहिए।
प्रदेश के युवाओं को योग्यता अनुसार देते हैं काम
बीबीएन इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ट्रांसपोर्ट कमेटी के सदस्य अशोक राणा कहते हैं कि प्रदेश के युवकों को उनकी योग्यता के अनुसार काम दिया जाता है। ग्र्रेजुएट को डिब्बे उठाने के काम में नहीं लगाते। इतना जरूर है कि प्रदेश के लोग सात घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहते जबकि अन्य राज्यों के लोग बारह-बारह घंटे काम करते हैं। यहां के लोग बड़े नामी उद्योग में काम करने को प्राथमिकता देते हैं। सच्चाई यह है कि विदेश में शौचालय साफ करने के भी तीन से चार लाख सैलरी मिलती है। यह काम पढ़े-लिखे लोग भी खुशी-खुशी करते हैं।
बीबीएन की खस्ताहाल सड़कें
बीबीएन में सड़कों की हालत खस्ता होने के कारण यहां से उद्यमी कूच कर रहे हैं। पिंजौर से बीबीएन तक मार्ग फोरलेन न होने के कारण आए दिन जाम लग रहा है, जिसमें घंटों वाहन फंसे रह रहे हैं। सड़क किनारे अवैध पार्किंग व भारी वाहनों की भीड़ के कारण आए दिन हादसे हो रहे हैं। हर साल इस मार्ग पर करीब चार सौ लोगों की सड़क हादसे में जान जा रही है।
रेल कनेक्टिविटी बहुत दूर
उद्योगपतियों से सरकार ने रेल कनेक्टिविटी बद्दी तक पहुंचाने की बात कही थी, लेकिन एक इंच भी रेलमार्ग नहीं बन पाया है। रेल कनेक्टिविटी होने से उद्योगपतियों को मालभाड़े की दोहरी मार से छुटकारा मिल सकता है। इससे घाटे में चल रहे लघु उद्योग उभर सकते हैं। सरकार को रेल कनेक्टिविटी को लेकर सार्थक कदम उठाने चाहिएं।
20 प्रतिशत सामान की खरीद नहीं
केंद्र सरकार के नियम के अनुसार छोटे उद्योगों का तैयार माल राज्य सरकार को भी खरीदना जरूरी है। इसके लिए 20 प्रतिशत सामान खरीदना जरूरी है लेकिन कई तरह की अड़चनें डालकर यह खरीद नहीं हो रही है।
12 साल बाद पलायन क्यों
बीबीएन एक समय फार्मा उद्योग का हब बन चुका था। अब यह खत्म हो रहा है। बारह साल काम करने के बाद उद्योग पलायन क्यों कर रहे हैं। यह राज्य सरकार को देखना चाहिए।
हर्बल, आयुर्वेद उद्योग लगें
हिमाचल में हर्बल और आयुर्वेद से जुड़े उद्योग लगते हैं तो इससे प्रदेश के लोगों को बहुत लाभ मिल सकता है। पर इसके लिए सरकार को पहले इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया करवाना होगा।
ये हैं प्रमुख मांगें
- पिंजौर फोरलेन का काम अधूरा
- रेल कनेक्टिविटी न होना
- बदहाल आंतरिक सड़कें
- पानी की गुणवत्ता ठीक नहीं
- बिजली व्यवस्था में सुधार
- ट्रांसपोर्ट यूनियनों का दखल
- स्थानीय पुलिस अधिकारी न लगाएं