कोरोनाकाल में सकारात्मक सोच लाएंगी पसंदीदा किताबें
कोरोना काल में सकरात्मक सोच ही आपको बचा सकती है। इंसान जैसे सोचेगा वैसा ही होगा। कोरोना पॉजिटिव मरीज को किसी भी तरह से अपने अंदर नकारात्मक सोच को नहीं आने देना चाहिए। इसके लिए बाहरी स्पोर्ट की जरूरत है लेकिन अपनी मनोशक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है।
शिमला, जेएनएन। कोरोना काल में सकरात्मक सोच ही आपको बचा सकती है। इंसान जैसे सोचेगा, वैसा ही होगा। कोरोना पॉजिटिव मरीज को किसी भी तरह से अपने अंदर नकारात्मक सोच को नहीं आने देना चाहिए। इसके लिए बाहरी स्पोर्ट की जरूरत है, लेकिन अपनी मनोशक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है। मन और दिमाग में किसी भी तरह से नकारात्मक सोच न आए, इसके लिए इंसान को अपनी पसंद के काम करने होंगे। कोरोना पॉजिटिव आने पर मनपसंद की किताबें पढ़कर नकारात्मकत सोच से बचा जा सकता है। अब तो बिना लक्षण के मरीजों को घर में ही रखा जा रहा है। ऐसे में घर पर किताबें मैगजिन से लेकर टीवी सीरियल या फिल्में देखकर खुद को सकारात्मक रखा जा सकता है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर आरएल जिंटा ने कहा कोरोना काल सकारात्मता से जीने का है। इसमें सोच ही आपकों जल्द ठीक कर सकती है। मोबाइल कंप्यूटर में नेट की सुविधा है। अस्पताल में भी हैं तो मोबाइल पर सब सुविधा है। अपनी पसंद की किताबें पढ़ सकते हैं। फिल्में देख सकते है। मोटिवेशन भाषण सुन सकते हैं। ये सभी मरीज की सोच को सकारात्मक रखने में मदद करेंगी।
परिवार ओर समाज का सहयोग जरूरी
परिवार व समाज का सहयोग भी काफी महत्व रखता है, लेकिन ये बाद में है। पहले इंसान की अपनी सोच है। परिवार के लोग भी मरीज के सामने सकरात्मक बातें करें। मरीज की पॉजिटिव यादें उसके साथ शेयर करें। आगे भविष्य में क्या क्या काम करने हैं। इस पर बातें करें।
व्यस्त जिंदगी में भविष्य की योजना बनाने का सही समय
प्रोफेसर जिंटा ने कहा व्यस्त जिंदगी में आठ से दस दिन अपने लिए सोचने का समय कभी नहीं मिलता है। हर मरीज को अपने भविष्य में क्या क्या करना है, इसका पूरा खाका सकारात्मक सोच के साथ तैयार करना चाहिए। पहले किन गलतियों के कारण लक्ष्य को हासिल करने में चूके थे, उस पर मंथन करना चाहिए। इससे भविष्य में लक्ष्य हासिल करने में सफलता मिलेगी, साथ ही अस्पताल में समय भी बीत जाएगा।