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1998 में हिमाचल में भी दिखा था महाराष्‍ट्र जैसा राजनीतिक घटनाक्रम, रमेश धवाला ने बदला था पाला

महाराष्ट्र में सियासी उलटफेर के बाद देवेंद्र फडऩवीस फिर मुख्यमंत्री बने हैं। कुछ इसी तरह का घटनाक्रम हिमाचल प्रदेश में भी देखने को मिला था।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 08:06 AM (IST)Updated: Sun, 24 Nov 2019 02:35 PM (IST)
1998 में हिमाचल में भी दिखा था महाराष्‍ट्र जैसा राजनीतिक घटनाक्रम, रमेश धवाला ने बदला था पाला
1998 में हिमाचल में भी दिखा था महाराष्‍ट्र जैसा राजनीतिक घटनाक्रम, रमेश धवाला ने बदला था पाला

शिमला, प्रकाश भारद्वाज। महाराष्ट्र में सियासी उलटफेर के बाद देवेंद्र फडऩवीस फिर मुख्यमंत्री बने हैं। कुछ इसी तरह का घटनाक्रम हिमाचल प्रदेश में भी देखने को मिला था। उस दौरान पहली बार निर्दलीय विधायक जीते रमेश धवाला के पाला बदलने से प्रदेश में सरकार बदल गई थी। सबसे ज्यादा 32 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने रमेश धवाला को साथ लेकर सरकार बना ली थी। यह सरकार एक पखवाड़ा पूरा करने से पहले ही गिर गई थी।

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हिमाचल में कांग्रेस की सरकार थी। वर्ष 1998 में 65 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव हुआ। भाजपा ने 29 व कांग्रेस ने 32 सीटों पर जीत दर्ज की।

मास्टर वीरेंद्र धीमान का चुनाव परिणाम आने से पहले निधन होने के कारण भाजपा के पास 28 विधायक रह गए। सरकार बनाने के लिए 33 विधायक चाहिए थे। रमेश धवाला को साथ लेकर कांग्रेस ने सरकार बनाई। इस बीच रमेश धवाला ने कांग्रेस से समर्थन वापस ले लिया। धवाला के पाला बदलने से भाजपा ने हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के सहयोग से सरकार बनाने का दावा पेश किया। चुनाव में हिविकां के चार विधायक जीते थे। सदन के भीतर दलीय स्थिति में धवाला को मिलाकर भाजपा-हिविकां गठबंधन के 33 विधायक हो गए जबकि कांग्रेस के पास 31 विधायक थे, एक विधायक को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया था।

वीरभद्र सिंह ने नाटकीय अंदाज में सदन में पहुंचकर बहुमत साबित करने से पहले ही त्यागपत्र दे दिया था। भाजपा ने गुलाब सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनवा दिया था। प्रदेश में तीन जनजातीय सीटों के लिए जून में चुनाव हुए थे।

हिविकां ने बिगाड़ा था कांग्रेस का खेल

कांग्रेस से बाहर निकाले गए पंडित सुखराम ने हिमाचल की राजनीति को नया मोड़ दे दिया था। सुखराम ने हिविकां गठित कर कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया।

भाजपा में शामिल करवाए हिविकां के दो विधायक

पंडित सुखराम ने कांग्रेस से हिसाब चुकता करते हुए गुलाब सिंह ठाकुर को विधानसभा अध्यक्ष बनवाने में अहम भूमिका अदा की थी। उसके बाद हिविकां के चार विधायकों में से दो विधायक भाजपा में शामिल करवा दिए। सुखराम व महेंद्र सिंह ठाकुर ही हिविकां के विधायक रहे थे।

धवाला ने दिखाए थे पीठ पर निशान

विधानसभा में रमेश धवाला ने कपड़े उतार कर पीठ पर निशान दिखाए थे। उनका आरोप था कि उनसे मारपीट कर जबरन समर्थन लिया गया था। धवाला वीरभद्र सरकार में पांच मार्च को कैबिनेट मंत्री बने थे। उसके बाद 24 मार्च को धूमल सरकार में भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली थी।

विधानसभा अध्यक्ष के लिए नियम व परपंरा नहीं

जरूरी नहीं कि विधानसभा अध्यक्ष सत्तारूढ़ राजनीतिक दल से बने। हिमाचल में ठाकुर सेन नेगी ऐसे नेता रहे हैं जो निर्दलीय जीतकर आते थे लेकिन तीन बार विधानसभा अध्यक्ष रहे। इसी तरह वर्ष 1998 में भाजपा-हिविकां ने अंक गणित को समझते हुए गुलाब सिंह ठाकुर को विधानसभा अध्यक्ष बनाया था। अध्यक्ष पद के लिए सत्तारूढ़ राजनीतिक दल का विधायक होना अनिवार्यता नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए न तो कोई नियम और न ही स्थापित परपंरा है। -डॉ. अजय भंडारी, पूर्व विधानसभा सचिव एवं सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी।

आज तक नहीं भूला वह मंजर

22 मार्च 1998 को शिमला के पीटरहॉफ में रात 9.40 बजे तत्कालीन भाजपा प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भाजपा-हिविकां गठबंधन को समर्थन देने का निर्णय हुआ। इससे पहले मुझे पार्टी ने ज्वालामुखी सीट से भाजपा टिकट नहीं दिया था। मैंने लोगों की मांग पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता। चुनाव जीतने के बाद चार मार्च को चंडीगढ़ होते हुए शिमला जा रहा था कि कालका के पास सरकारी अधिकारियों और कांग्रेस नेताओं ने मुझे रोक लिया और जबरन होलीलॉज शिमला लेकर आ गए। रात को प्रदेश हाईकोर्ट के निकट सिली चौक का वह मंजर मैं आज तक नहीं भूला हूं जब मेरे और समर्थकों के साथ हाथापाई हुई थी। होलीलॉज पहुंचने के बाद कांग्रेस को समर्थन देने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था। उस समय मेरे राजनीतिक आदर्श शांता कुमार केंद्र सरकार में मंत्री थे। उनका पत्र आया और मुझसे भाजपा को समर्थन देने की बात हुई। मैं तब भी भाजपाई था और आज तक भाजपा मेरी पार्टी है। -रमेश धवाला, उपाध्यक्ष, राज्य योजना बोर्ड।


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