हिमाचल प्रदेश विजिलेंस ने पूर्व आइएस अधिकारी के खिलाफ शुरू की नियमित जांच, पढ़ें पूरा मामला
Himachal Vigilance Inquiry Against Retired IAS Officer हिमाचल काडर के गैर हिमाचली पूर्व आइएएस अधिकारी के खिलाफ नियमित जांच आरंभ हो गई है। प्रारंभिक जांच में विजिलेंस एंड एंटी क्रप्शन ब्यूरो ने आरोप सही पाए हैं। अब विजिलेंस आरोपित को पूछताछ के लिए तलब करेगी।
शिमला, राज्य ब्यूरो। Himachal Vigilance Inquiry Against Retired IAS Officer, हिमाचल काडर के गैर हिमाचली पूर्व आइएएस अधिकारी के खिलाफ नियमित जांच आरंभ हो गई है। प्रारंभिक जांच में विजिलेंस एंड एंटी क्रप्शन ब्यूरो ने आरोप सही पाए हैं। अब विजिलेंस आरोपित को पूछताछ के लिए तलब करेगी। उसे नोटिस भेजा जाएगा। पूर्व अधिकारी पर हिमाचल प्रदेश टेनेन्सी एंड लैंड रिफार्म एक्ट 1972 की धारा 118 के प्रावधानों की उल्लंघना करने का आरोप है। इसके अलावा फर्जी हस्ताक्षर के करने के भी आरोप है। पिछले साल नवंबर महीने में विजिलेंस के पास शिकायत आई थी। इसकी गहन जांच की गई। प्रारंभिक जांच के दौरान मिले साक्ष्यों के आधार पर मामला दर्ज हुआ।
कब मिली अनुमति
सात मार्च 2007 को अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं वित्तायुक्त राजस्व ने सशर्त जमीन खरीदने की अनुमति देने के आदेश जारी किए। लेकिन पंद्रह वर्षों बाद भी इन जमीन पर कोई गृह निर्माण नहीं हो पाया। जबकि अनुमति केवल दो वर्षों के लिए दी गई थी।
क्या हैं आरोप
आरोप है कि पूर्व अधिकारी ने साइट प्लान स्वीकृत करवाने के लिए झूठा शपथपत्र दिया है। आरोपों के अनुसारर इनमें हिस्सेदार दुर्गा को दुर्गा सिंह दर्शाया है। जबकि दुर्गा सिंह नाम का कोई भी मालिक नहीं है। दुर्गी देवी जरूर मालिक थी। उसकी मौत 26 जुलाई 2007 से पहले हो गई थी। शपथपत्र बनाने से पूर्व कृष्णचंद की मौत हो गई थी। शपथ पत्र 26 जुलाई 2007 को तैयार किया गया। आरोप है कि नगर निगम शिमला को दिए गए साइट प्लान में शांतिदेवी के कथित तौर पर जाली हस्ताक्षर किए हैं। यह हस्ताक्षर अंग्रेजी में किए गए। जबकि यह महिला साक्षर नहीं है। अंगूठा लगाती है और अभी जिंदा है। शपथपत्र में शेष 41 हिस्सेदारों के कोई हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं। उन्हें प्रक्रिया में शामिल ही नहीं किया गया है। उधर, आरोपित अधिकारी ने न्यू शिमला के पटयोग में खरीदी जमीन को बेचने की भी अनुमति मांगी। इसके लिए शिमला के उपायुक्त के पास दो अलग- अलग आवेदन किए गए। लेकिन यह अनुमति नहीं मिली। इनमें राजस्व विभाग के अधिकारियों, कर्मियों की भूमिका की भी जांच होगी। आरोप है कि मिलीभगत के कारण इन्होंने यह जमीन सरकार के नाम नहीं करवाई।
आयुर्वेद घोटाले में भी रहा है संलिप्त
पूर्व अधिकारी आयुर्वेद घोटाले में भी संलिप्त रहा है। इसमें कइयों पर कार्रवाई हुई थी, तब रिटायर नहीं हुआ था। हालांकि बाद में घोटाले में भी क्लीन चिट मिली थी।