शिमला, रमेश सिंगटा। हिमाचल पुलिस थानों के मालखाने शराब से लबालब भरे पड़े हैं। शराब के तस्करों पर बढ़ते कानूनी शिकंजे के कारण मालखाने मानो मयखाने बन गए हों। कहीं- कहीं तो पूरे के पूरे कमरे इसी केस प्रोपर्टी से अटे हुए हैं। इसके अलावा नशे का सामान, धारदार हथियारों से लेकर कई तरह की प्रोपर्टी अब खाकी के लिए मुसीबत का सबब बन गई है। लंबी कानूनी पेचीदगियों के कारण पुलिस केसों में अदालतों से अंतिम फैसले आने में देरी हो जाती है। केस प्रोपर्टी अदालतों में अहम सुबूत के तौर पर पेश करनी होती है। जब तक फैसला आता है, तब तक प्रोपर्टी नष्ट होने का खतरा रहता है। थानों में मालखाने के लिए उचित जगह नहीं मिल पाती है। प्रभावी निगरानी तंत्र के अभाव में समय पर केसों का निपटारा नहीं हो पा रहा है।
किसे है कंपाउंड करने की पावर
आबकारी एवं कराधान एक्ट 2011 के तहत सेक्शन 41 में प्रविधान है कि अगर पुलिस अवैध शराब पकड़े तो उप आबकारी एवं कराधान आयुक्त केस में जुर्माना लगा सकते हैं। इसके बाद निर्धारित प्रक्रिया अपनाकर शराब की मात्रा को नष्ट किया जा सकता है, अगर किसी व्यक्ति पर अवैध शराब के तीन केस दर्ज हैं तो उस सूरत में कोर्ट में ही केस चलेगा। इस पर कोर्ट में ही ट्रायल चलेगा और कोर्ट ही फैसला दे सकते हैं। तब तक केस प्रोपर्टी मालखाने में रहेगी।
यहां मालखाना ठीक हालत में नहीं
ऊना में भी पुलिस थाना करीई 136 साल पुराना है। इस कारण मालखाना भी जर्जर हालत में है। अब दूसरी जगह नया भवन बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन जमीन उपलब्ध होने के कारण यह अधर में लटक गया है। अगर नया थाना बनता तो केस प्रोपर्टी और अधिक सुरक्षित रहती।
यहां केसों का बेहतर निपटारा
चंबा के डलहौजी थाने का भवन 1880 में बना था। यहां कमरों की हालत अच्छी है और मालखाना भी सही स्थिति में हैं। इसके दो कमरे अलग रखे हैं। केस निपटारे की चाल भी बेहतर है। उधर, जोगेंद्रनगर थाना में हालत काफी ठीक है। यहां शराब के छोटे केस पकड़े जाने से अधिकांश को कंपाउंड किया गया गया है।
मोहर्र मुंशी रखता है रिकार्ड
पुलिस आपराधिक मामलों में जो भी प्रोपर्टी जब्त करती है, उसका मालखाने में रिकार्ड मोहर्र मुंशी रखता है। इसके लिए बाकायदा रजिस्टर मेंटेन किया जाता है। एंटी करनी हो या सील तोडऩी हो, सारी कार्रवाई का रिकार्ड रखना अनिवार्य रहता है।
तीन स्थितियों में नहीं हो पाएगा निपटारा
अगर किसी भी केस में ट्रायल चल रहा तो, कोर्ट से फैसला न आया हो, फैसला आने के बाद अपील की गई हो भी केस प्रोपर्टी का निपटारा नहीं हो पाता है। लंबी कानूनी प्रक्रिया के कारण प्रोपर्टी मालखाने में रहकर खराब हो जाती है। कई केसों में इसे दीपक लग जाते हैं, कई को चूहे कुतर देते हैं। लेकिन ऐसा तब होता है जब केस कोर्ट में 15 से 20 साल तक चले।
सड़ जाती है लकडिय़ां व गाडिय़ां
केस में जब्त की गई लकडिय़ां तब तक सड़ जाती है, तब तक केस में अंतिम फैसला आ पाता है। बिना क्लेम के पकड़ी गई प्रॉपर्टी जैसे वाहन आदि भी सड़ जाते हैं। इन दोनों तरह की प्रोपर्टी को मालखाने की बजाय खुले में रखा जाता है। लेकिन पुलिस अपनी मर्जी से इनकी नीलामी भी नहीं कर पाती है।
एनडीपीएस केसों के निपटारे के लिए एसओपी
प्रदेश में मादक द्रव्य पदार्थों से जुड़े केसों के निपटारे के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर यानी एसओपी लागू है। कोर्ट से अंतिम फैसला आने पर चरस, गांजा, आदि को कमेटी के माध्यम से अधिकारियों की मौजूदगी में नष्ट किया जाता है। सीआइडी राज्य में भी कहीं भी केस पकड़े तो केस प्रोपर्टी संबंधित जिले के पुलिस थाने के मालखाने में जमा होगी।
क्या कहते हैं रिटायर पुलिस अधिकारी
रिटायर आइपीएस अधिकारी डाक्टर जगत राम का कहना है मालखाने में केस प्रोपर्टी का विषय पुलिस सुधारों से जुड़ा हुआ है। इसमें पुलिस अधिकारियों डीएसपी, एएसपी, एपी का सुपरवाइजरी रोल अहम रहता है। थानों की नियमित आधार पर इंस्पेक्शन होनी चाहिए। कोर्ट में केसों पर जल्द फैसला आए इसके लिए न्यायवादियों के साथ बराबर का संपर्क रहना चाहिए।
डीजीपी ने दिए हैं स्टेंडिंग आर्डर
डीजीपी संजय कुंडू ने डीएसपी, एएसपी के सुपरवाइजरी रोल को लेकर पिछले वर्ष नए स्टैंडिंग ऑर्डर जारी किए थे। इसके तहत इन्हें महीने में कुछ रातें अब थानों में ही बितानी होती है। इससे केस प्रोपर्टी का भी बेहतर मॉनीटरिंग हो रही है।
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