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हिमाचल में मोदी समर्थन-मोदी विरोध पर केंद्रित रहा चुनाव

Himachal Election focus on PM Modi हिमाचल प्रदेश की संसाधनविहीनता पर्यटन ऊर्जा बागवानी और कृषि और कई ज्‍वलंत मुद्दे बड़े नेताओं की शब्दावली से नदारद दिखे।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Mon, 20 May 2019 10:41 AM (IST)Updated: Mon, 20 May 2019 10:41 AM (IST)
हिमाचल में मोदी समर्थन-मोदी विरोध पर केंद्रित रहा चुनाव
हिमाचल में मोदी समर्थन-मोदी विरोध पर केंद्रित रहा चुनाव

नवनीत शर्मा, धर्मशाला। बेशक हर चुनाव का अर्थ आरोप-प्रत्यारोप और 'मैं सबसे अच्छा, दूसरे बुरे' की स्थापित परंपरा से जुड़ता है। इस बार कुछ परंपराएं जस की तस रहीं। विभिन्न दलों से रूठे लोगों की घर वापसी करवाई गई। पहाड़ में मुकाबला इस बार भी कांग्रेस और भाजपा के बीच रहा। बसपा के हाथी ने पहाड़ की ओर देखा जरूर, लेकिन चढ़ पाने के आसान कतई नहीं दिख रहे हैं। स्थानीय मुद्दों ने चुनाव से पहले अवश्य चर्चा में आने की कोशिश की लेकिन अंतत: चुनाव मोदी बनाम अन्य बन कर गया।

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हिमाचल प्रदेश की संसाधनविहीनता, पर्यटन, ऊर्जा, बागवानी और कृषि और कई ज्‍वलंत मुद्दे बड़े नेताओं की शब्दावली से नदारद दिखे। उनका जिक्र केवल जिक्र के लिए हुआ। लेकिन बड़ी बात यह दिखी कि भाजपा के प्रत्याशियों के लिए भी स्थानीय मुद्दों या अपने कृतित्व से बढ़ कर मोदी का सहारा था। इससे ठीक उलट कांग्रेस के उम्मीदवारों या दीगर प्रत्याशियों को मोदी के विरोध का सहारा था। कहीं राष्ट्रवाद की बात मुखर थी तो प्रतिपक्ष में राष्ट्रवाद की परिभाषा पर ही चर्चा की अपेक्षा थी। एक सीधी रेखा दिखी। कुछ इस ओर थे, कुछ उस ओर।

जैसे किसी भी शुभ कारज में कतिपय व्यवधान आते ही हैं, वे यहां भाजपा के साथ भी आए और कांग्रेस के साथ भी। पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम ने अपने पोते यानी भाजपा सरकार में तब मंत्री अनिल शर्मा के बेटे लिए टिकट मांगा जो उन्हें नहीं मिला। उन्होंने भाजपा से किनारा कर लिया और पोते आश्रय शर्मा को कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया। भाजपा के लिए दूसरा कमजोर पक्ष रहा तीन बार के सांसद और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रहे सुरेश चंदेल का कांग्रेस का हाथ थामना। हालांकि वह हमीरपुर से अनुराग ठाकुर के खिलाफ टिकट की दौड़ में थे लेकिन कांग्रेस के ही एक खेमे ने उनका टिकट कटवा दिया। तीसरा कमजोर पक्ष रहा भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती की बयानबाजी, जिसके कारण उन्हें प्रतिबंध भी झेलना पड़ा। अच्छा पक्ष यह रहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भाजपा के स्टार प्रचारक के तौर पर उभरे। उन्होंने 106 जनसभाओं को संबोधित किया। साफ हुआ कि भाजपा हिमाचल में उन्हीं पर निर्भर थी। दूसरे बड़े नेता शांता कुमार कांगड़ा और प्रेम कुमार धूमल हमीरपुर तक सीमित रहे।

अपनी जनसभाओं में राहुल गांधी बेशक वीरभद्र सिंह को गुरु बताते रहे हों, कांग्रेस के हवाले से यह चुनाव संकेत दे गया कि वीरभद्र सिंह अब अतीत हैं। कांगड़ा के प्रत्याशी को छोड़ दें तो एक भी वीरभद्र सिंह की पसंद का नहीं था। इन बातों को उन्होंने स्वयं भी चाहे-अनचाहे व्यक्त किया। बेशक कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर हैं लेकिन कहीं न कहीं आनंद शर्मा की प्रदेश में सक्रियता का अपना अर्थ है।

प्रतिपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री का प्रयास रहा कि वह मुख्यमंत्री पर सीधा हमला रखें ताकि कांग्रेस में यह तुलना बराबर हो सके कि 'अंदर टक्कर कौन दे रहा है। हालांकि वीरभद्र सिंह ने इस दौरान ऐसा बहुत कुछ कहा जिसका लाभ भाजपा देख रही है। इस बीच, चुनाव आयोग द्वारा भारत के पहले मतदाता माने गए श्याम सरन नेगी ने लोकसभा चुनाव में 17वीं बार और कुल मिला कर 32वीं बार मतदान किया। चेहरे पर झुर्रियां आने लगी हैं लेकिन ओज बरकरार है। यही भारतीय लोकतंत्र का ओज है, जिसे हर स्थिति में, हर मौसम में कायम रहना होगा।

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