हिमाचल में नेता प्रतिपक्ष की मान्यता से कांग्रेस अभी भी एक कदम दूर, सीटें कम होने के बावजूद दी थी मान्यता
Himachal Congress MLAs हिमाचल प्रदेश में उपचुनाव में बेशक सत्ताधारी भाजपा के प्रत्याशियों की हार हुई हो लेकिन नेता प्रतिपक्ष को मान्यता देने से जुड़े नियम पूरा करने की शर्त से कांग्रेस अब भी एक कदम दूर है।
शिमला, रमेश सिंगटा। Himachal Congress MLAs, हिमाचल प्रदेश में उपचुनाव में बेशक सत्ताधारी भाजपा के प्रत्याशियों की हार हुई हो, लेकिन नेता प्रतिपक्ष को मान्यता देने से जुड़े नियम पूरा करने की शर्त से कांग्रेस अब भी एक कदम दूर है। राज्य विधानसभा के नियमों के अनुसार नेता प्रतिपक्ष को मान्यता देने के लिए विपक्ष के दल के विधायकों की संख्या एक तिहाई होनी चाहिए। यानी 68 में से 23 विधायकों की संख्या हो, तभी मान्यता मिलती है। लेकिन, स्पीकर को शक्तियां हैं कि अगर निर्देशों में मान्यता कवर नहीं हो रही है तो वह इनके बगैर भी मान्यता दे सकते हैं। इसी प्रविधान के तहत मुकेश अग्निहोत्री को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता दी गई थी। सत्ता पक्ष इसका अहसास कई बार करवा चुका है। खासकर जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जब जब तल्खी का माहौल बना, मान्यता पर व्यंग्यात्मक बातें नेताओं के जुबान से अक्सर निकल जाती थीं।
कई नेता थे रेस में
लंबी माथापच्ची के बाद नेता प्रतिपक्ष के नाम पर मुहर लगी थी। तत्कालीन कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऊना हरोली से चौथी बार विधायक बने मुकेश अग्निहोत्री के नाम को नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए हरी झंडी दी थी। हालांकि तब कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा यह सम्मान वीरभद्र सिंह को देना चाहता था। उन्होंने कांग्रेस आलाकमान को पत्र भी लिखा था। नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में सुखविंदर सिंह सुक्खू, रामलाल ठाकुर, आशा कुमारी और हर्षवर्धन चौहान भी शामिल थे।
कितनी सीटेें जीती थी
2017 में दिसंबर में हुए चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था। तब भाजपा ने अपने बूते 44 सीटें जीती थीं। जबकि कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत हासिल की थी। दो सीटें निर्दलीय और एक माकपा के हिस्से आई थी। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और पूर्व मंत्री सुजान सिंह पठानिया के देहांत के बाद अर्की और फतेहपुर सीट खाली हो गई थी। अब उपचुनाव में दोनों सीटों पर कांग्रेस जीती। जबकि जुब्बल कोटखाई सीट पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा के निधन से खाली हुई थी। वहां भी कांग्रेस जीती। इस कारण कांग्रेस विधायकों की कुल संख्या अब 21 से बढ़कर 22 और भाजपा विधायकों की 44 से हटकर 43 रह गई है। कांग्रेस की एक सीट बढ़ी जबकि भाजपा की एक कम हुई।