Himachal By Election: चुनावी बयानों के मलबे में दबता वास्तविक विमर्श, राष्ट्रवाद और देशद्रोह के बीच मुद्दे नदारद
Himachal By Election बेशक सभी हलकों में मुख्यमंत्री आवश्यक कार्यालयों की घोषणा कर चुके हैं पर विकास अपने चेहरे पर चमक चाहता है। हार जीत का संदर्भ इतना है कि हारने पर कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है भाजपा हारी तो बहुत कुछ खो सकता है।
कांगड़ा, नवनीत शर्मा। Himachal By Election बड़ा विचित्र है पहाड़ का चुनावी परिदृश्य। उपचुनाव की गहमागहमी जारी है। कहीं नारेबाजी के बाद बैठे हुए गले हैं, गलों से दोहरे स्वरों में निकलते दावे हैं और दावों का सार यह है कि ‘हम सर्वश्रेष्ठ हैं, दूसरे मुकाबले में भी नहीं कहीं।’ सहानुभूति की लहर का दावा है, कहीं विकास पर बहस करने की चुनौतियां हैं। तीन विधानसभा क्षेत्रों में भी उपचुनाव है। कहीं बगावत का साफ चित्र निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किए नामांकन में साकार हो उठा है और कहीं पर्चा तो नहीं भरा, लेकिन नाराजगी दीवारों पर दिख रही है।
इस प्रचार की विशेषता यह है कि मुद्दे हमेशा की तरह नदारद हैं। वास्तव में मुद्दे सभ्य विमर्श की तरह प्रचार में अदृश्य हो जाने के लिए शापित हैं। ऐसा बहुत कुछ दिख रहा है, जिससे राजनेताओं के मन-मस्तिष्क के अंत:पुर का हाल सामने आता है। प्रतिभा सिंह से इस चुनाव में प्रतिभा वीरभद्र सिंह हो गई कांग्रेस प्रत्याशी ने युद्ध विशेषज्ञ की तरह बात की है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री पर आरोप है कि वह पंजाबी उच्चारण में वैसे ही शब्द बोलने के लिए जनता का आह्वान करते हैं जैसे नवजोत सिद्धू ने हाल में एक वीडियो में किए थे। बेशक उस वीडियो में कुछ शब्दों का संपादन कर वहां कोई ध्वनि सुनाई गई। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस बात पर क्रोधित हैं कि उनके इलाके यानी मंडी में कोई कैसे उनके प्रति गाली के लिए उकसा सकता है। मुख्यमंत्री अपनी सहनशीलता से यह कह कर परिचित करवाते हैं, ‘कांग्रेस के नेता हद में रहें वरना कहने को हमारे पास भी बहुत कुछ है। सबके काले चिट्ठे हैं।’ ऐसा होगा भी पर प्रश्न यह है कि रोका किसने है। चुप्पी का आवरण क्यों।
मंडी लोकसभा क्षेत्र में भाजपा का मुद्दा यह है कि उसने कारगिल युद्ध नायक सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है। वही जो फोरलेन प्रभावित संघर्ष समिति के नायक रहे और बाद में शांत हो गए। जबकि कांग्रेस का मुद्दा यह है कि प्रतिभा वीरभद्र सिंह को मिलने वाला मत बकौल कांग्रेस वीरभद्र सिंह को श्रद्धांजलि है। उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, गुम्मा नमक कारखाना, हवाई सुविधाओं जैसे मुद्दे कोई मुद्दे नहीं हैं। विमर्श का स्तर देखने योग्य है कि भाजपा ने जब ब्रिगेडियर खुशाल की सैन्य छवि को उभारा तो प्रतिभा वीरभद्र सिंह ने कह दिया, ‘भाजपा ने एक फौजी को टिकट दिया है। कारगिल वास्तव में कोई दूसरे की धरती पर लड़ा जाने वाला युद्ध नहीं था। यह तो भारत की भूमि में कुछ लोग आए थे, उन्हें खदेड़ना ही था।’
दरअसल इसे ही अपना नुकसान करना कहते हैं। वीरभद्र सिंह और प्रतिभा वीरभद्र सिंह होने में यही अंतर है। हिमाचल प्रदेश के 52 सैनिक इसी काम के लिए देश के काम आए थे। कारगिल के दो परमवीर चक्र हिमाचल से ही हैं। प्रतिभा सिंह छोटा तो दिखाना चाहती थीं राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को, लेकिन बोलते हुए घाव कहीं और कर गईं। कल को कोई पुलिसकर्मी या अधिकारी अपने ही प्रदेश में आपराधिक तत्वों से भिड़ता हुआ शहीद हो जाए तो उसके प्रयास या आत्मोत्सर्ग को कांग्रेस प्रत्याशी क्या मानेंगी? राजनीति में दिल के साथ दिमाग लगाना इसीलिए आवश्यक होता है। इस सबमें मंडी का चर्चित सुखराम परिवार हाशिये पर चला गया है। दुविधा में उससे कांग्रेस की माया भी दूर हो गई और भाजपा के राम अथवा जयराम भी। मंडी में यह परिवार फिलहाल प्रतिभा के साथ नहीं है।
कांगड़ा के फतेहपुर में कांग्रेस के दिवंगत विधायक सुजान सिंह पठानिया के पुत्र भवानी प्रत्याशी हैं। भाजपा से बलदेव हैं। यहां कांग्रेस के लिए यह चुनाव सुजान सिंह के लिए ‘श्रद्धांजलि’ है। भाजपा प्रत्याशी के पास कहने को यही है कि वर्षो बाद यह सीट भाजपा की झोली में डालिए। आम, संतरे, नींबू और गलगल के लिए जानी जाती यह पट्टी किसी प्रोसेसिंग यूनिट की अधिकारी है या नहीं, इस पर सब मौन हैं। शिमला के जुब्बल कोटखाई में कांग्रेस से रोहित ठाकुर हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री एवं आंध्र प्रदेश के पूर्व राज्यपाल ठाकुर रामलाल के पोते हैं।
भाजपा से नीलम हैं, जबकि टिकट के दावेदार चेतन बरागटा खुद को मान रहे थे। सीट भाजपा विधायक नरेंद्र बरागटा के निधन से खाली हुई थी। चेतन बागी हैं और उनका मुद्दा भी नरेंद्र बरागटा के सपनों को पूरा करना है। अर्की से वीरभद्र सिंह विधायक थे। रत्नपाल भाजपा प्रत्याशी हैं, जबकि कांग्रेस से संजय अवस्थी हैं। यहां वीरभद्र समर्थक गुट टिकट आवंटन से नाराज है। भाजपा नेता गोविंद राम शर्मा अपना नाम शुरू से भजते आए थे। आजाद पर्चा तो नहीं भरा, लेकिन प्रचार भी नहीं कर रहे हैं। अर्की में हाथ हो या कमल, दोनों को एक दूसरे से कम, स्वयं से अधिक खतरा है। सच तो यह है कि मेरा टिकट, मेरे सपने, मेरे परिवार के सपनों आदि के शोर में जारी चुनाव किसी के लिए आसान नहीं है। इस दरिया में सहानुभूति के चप्पू काम आएंगे या सरकार की उपस्थिति, यह मतदाता ही जानता है।
[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]