हिमाचल भाजपा कोर कमेटी बैठक: 2022 से पहले के मंथन में विष-अमृत के पात्रों की तलाश
जयराम ठाकुर हार की जिम्मेदारी स्वीकार कर चुके हैं। शिमला में बुधवार को राज्य भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में सदस्यों के साथ (अध्यक्ष मंडल में) प्रभारी अविनाश राय खन्ना भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर। जागरण
कांगड़ा, नवनीत शर्मा। भारतीय जनता पार्टी का मंथन कल से शिमला में आरंभ हो चुका है। कोर कमेटी, विस्तारित कोर कमेटी, कार्यसमिति और अंतत: विधायक दल की बैठक के साथ यह मंथन समाप्त होगा। विशेष बात यह है कि इस बार हर पल की कार्यवाही दर्ज कर आलाकमान को भेजी जाएगी। उस रपट के साथ सरकार और संगठन के शीर्ष चेहरे दिल्ली बुलाए जाएंगे और वहां तय होगा कि मंथन से किसके लिए क्या निकला। मंथन ऐसी प्रक्रिया है जिसके बाद अमृत भी निकल सकता है और विष भी। देखना यह भी होगा कि विष के लिए कौन तैयार होता है। यह मंथन इसलिए विशेष है, क्योंकि हाल में भारतीय जनता पार्टी ने एक संसदीय और तीन विधायी क्षेत्र उपचुनाव में खो दिए हैं।
भाजपा के भीतर से कयासों का दौर बदलाव की चर्चा करता आया है। किसी को गुजरात माडल दिख रहा है तो किसी को उत्तराखंड, किसी को केवल संगठन में बदलाव दिख रहा है तो किसी को यह लग रहा है कि सरकार का शीर्ष जस का तस रहेगा, लेकिन दरबार के रत्न परिवर्तन की जद में आ सकते हैं। बात आलाकमान की प्राथमिकताओं की है। अभी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब शीर्ष पर हैं। बेशक, यह तथ्य भी अपनी जगह है कि सत्तारूढ़ दल पहले भी चुनाव हारता रहा है। लेकिन जिस हिमाचल में भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर तक का बेशकीमती निवेश किया है, उसे कोई पुख्ता संदेश दिए बिना शीर्ष नेतृत्व छोड़ देगा, यह असंभव लगता है। यहां प्रचारक और प्रभारी रह चुके प्रधानमंत्री का प्रदेश है, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का प्रदेश है, सूचना एवं प्रसारण मंत्री का प्रदेश है।
जयराम ठाकुर हार की जिम्मेदारी यह कहते हुए स्वीकार कर चुके हैं- भाजपा में हर कार्य सामूहिक दायित्व के साथ होता है, लेकिन मेरी भूमिका अधिक थी, इसलिए मैं अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करता हूं। हार को स्वीकार करने के उनके कार्य से प्रेरित होकर मंत्रिगण भी कह रहे हैं कि हम अति उत्साह से हारे। संगठन भी कमियों को सुधारने की बात कर रहा है..शाब्दिक रूप में ही सही। मुख्यमंत्री हार भी स्वीकार कर रहे हैं और शब्दों को नर्म रखे हुए हैं, लेकिन हार के बाद संगठन की भाषा को इंटरनेट मीडिया पर पढ़ा जा सकता है।
मंथन की क्रिया आरंभ होने से पहले ही कृपाल परमार ने उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया है। कृपाल तब राज्यसभा भेजे गए थे जब नरेन्द्र मोदी हिमाचल प्रदेश भाजपा के प्रभारी थे। उधर, पवन गुप्ता ने सिरमौर भाजपा प्रभारी के पद से त्यागपत्र दे दिया है। त्यागपत्र देना भी एक राजनीतिक घटना है, लेकिन उसका भार तब अधिक हो जाता है जब त्यागपत्र से जुड़े शब्द भारी हों। कृपाल कहते हैं, ‘सरकार और संगठन के बड़े चेहरे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और नेताओं का अपमान कर रहे हैं। मैं सबकी पोल खोलूंगा।’ पोल खोलने की राजनीतिक क्रीड़ा के लिए अब तक लोग कांग्रेस का नाम लेते थे। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा सरकार के चार वर्ष पूरे होने के समय भूमिकाओं का आदान प्रदान हो गया है। कांग्रेस में पोल ढकी जा रही है, वीरभद्र सिंह के आवास होलीलाज में दिए गए भोज में दो पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कौल सिंह और सुखविंदर सिंह सुक्खू भी शामिल हुए हैं। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक ने माना कि हिमाचल कांग्रेस उपचुनाव में अधिक संगठित दिखाई दी।
ऐसे में ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’ और उसकी सरकार कहां चूक रही है। क्या भाजपा को कांग्रेस से अधिक स्वयं से खतरा है? मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ लोग साथ होकर भी साथ नहीं थे। क्या विश्लेषण, मंथन, समीक्षा, चिंतन आदि शब्दों में इतनी ताकत है कि वह उन लोगों को बाहर कर सकें जो पार्टी के साथ नहीं थे? प्रतिपक्ष पूछ रहा है कि सरकार कोई एक काम बताए जो उसने किया हो। सत्तापक्ष काम गिनाते हुए कह रहा है कि अगर ये काम भी आपको काम नहीं दिखते तो क्या जवाब दें। अब इस्तीफा देने वालों के बारे में यह कहा जा रहा है कि उन पर कार्रवाई आसन्न थी, इसलिए वे पहले ही छोड़ गए। ऐसी स्थिति थी तो पार्टी ने ऐसे लोगों को ङोला ही क्यों। जनमंच की शिकायतों के अंबार हल तक पहुंचें तो मंथन की आवश्यकता किसे हो?
मुख्यमंत्री की शालीनता भी अगर अपर्याप्त है तो प्रदेश को वह तो मिलना चाहिए जो उसकी जरूरत है। यह काम संगठन और सरकार मिलकर ही कर सकते हैं। प्रतीक्षा उस पोल के खुलने की भी रहेगी जिसका जिक्र इस्तीफा देने वाले सज्जन कर रहे हैं। पोल खुली और दिखाई न दी तो यही समझा जाएगा कि उन्हें संगठन की कम, अपने पुनर्वास की चिंता अधिक थी। यह प्रदेश भाजपा ही देखे कि उसके रास्ते में कांग्रेस है या स्वयं भाजपा ही। मंथन से निकल आएं तो इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि मंडी के पंडोह में महिला पुलिस भर्ती में कांस्टेबल बनने के लिए पीएचडी, एमए, एमएड और एमफार्मा तक शिक्षा प्राप्त लड़कियां क्यों आवेदन कर रही हैं? अवसरों की ओर ध्यान नहीं है या डिग्रियों में कोई कमी है? प्रदेश को इस मंथन की भी जरूरत है।
[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]