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चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों की घोषणाएं, रोजगार की भी गांरटी पर मिलेगा कैसे पता नहीं

कौशल या हुनर सिखाने की गारंटी दीजिए। होना तो यह चाहिए कि लोगों को इस योग्य भी बनाएं कि वे रोजगार पा सकें। अपना काम करने के इच्छुक व्यक्ति का मनोबल लाल या हरे फीतों से जकड़ी फाइलें दिखाकर मत तोड़िए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 15 Sep 2022 11:03 AM (IST)Updated: Thu, 15 Sep 2022 11:03 AM (IST)
चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों की घोषणाएं, रोजगार की भी गांरटी पर मिलेगा कैसे पता नहीं
युवाओं को चाहिए कौशल सिखाने की गारंटी। फाइल

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। बरसात की मार से उबरने का प्रयास करता मैं हिमाचल प्रदेश इन दिनों चुनावी गतिविधियों का आरोह देख रहा हूं। मुझे यह भरोसा नहीं है कि मेरी सड़कों पर मलबा बनकर गिरे पहाड़ कब उठेंगे…, किंतु गारंटी मिलने की गारंटी है मुझे। कई राजनीतिक दल मेरे लिए गारंटी लेकर आ रहे हैं। इस बात की गारंटी, उस बात की गारंटी। इनकी गारंटियों के पहाड़ के उस ओर एक और पहाड़ है जिसे रोजगार की गारंटी कहते हैं।

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अर्थशास्त्र में बेरोजगारी कितने प्रकार की है, यह सब जानते हैं। समाजशास्त्र में बेरोजगारी एक बोझ है। जीवन की मुख्यधारा से कट जाने का अभिशाप है। राजनीतिक अर्थ में बेरोजगार वह वर्ग है, जो चुनाव के अरण्य में आखेट के लिए निकले राजनीतिक दलों की पसंदीदा शरणस्थली है। पसंदीदा इसलिए, क्योंकि यहां आखेट के लिए अनुकूल स्थितियां रहती हैं। मेरे कांगड़ा जिले से विधायक और कद्दावर मंत्री रहे जीएस बाली ने कभी रोजगार संघर्ष यात्रा निकाली थी। अब चुनाव आ रहा है तो उनके पुत्र और नगरोटा बगवां से कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी आरएस बाली ने भी ऐसा ही आयोजन किया है।

दिवंगत मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र और शिमला ग्रामीण के विधायक विक्रमादित्य सिंह भी इसके कर्ताधर्ता हैं। इस पर सब चुप हैं कि रोजगार की गुणवत्ता क्या होगी। जलवाहक, आंगनबाड़ी सहायक और पंप आपरेटर होना ही अगर रोजगार पाना है तो क्या कहें। क्या यह उत्पादक रोजगार होगा। रोजगार आएगा कैसे, इस पर रोडमैप भी नहीं दिख रहा है। इन सबसे आगे जाकर नूरपुर के पूर्व विधायक और कांग्रेस के जिला अध्यक्ष अजय महाजन ने तो विधिवत घोषणा की है कि बायोडाटा दो और नौकरी लो। उनका विचार है कि वह अपने क्षेत्र के 7,500 युवाओं को रोजगार दे ही देंगे। एक वेबसाइट भी बना दी है। वह पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के चहेते सांसद रहे सत महाजन के पुत्र हैं, जिन्हें कांग्रेस नेता फील्ड मार्शल भी कहते थे।

अंग्रेजी के गिव एंड टेक और हिंदी के इस हाथ दे और इस हाथ ले का चुनावी दिनों में इससे बेहतर मार्केटिंग नुस्खा और क्या हो सकता है। कल की कल देखेंगे। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए, क्योंकि 2011 की जनगणना बताती है कि तब यदि हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या 68 लाख थी तो 27 लाख ऐसे थे जिनकी आयु 20 से 44 वर्ष थी। यानी हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या का 39 प्रतिशत भाग सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों में युवा था। इसमें अब कितना जमा घटाव हुआ है, यह जिज्ञासा का विषय है, किंतु पंजीकृत बेरोजगार साढ़े आठ लाख हैं। बायोडाटा अवश्य मांगने में बुराई नहीं है, किंतु यह भी तय करना होगा कि रोजगार देना है या किसी को इस योग्य बनाना है कि वह आगे रोजगार दे सके।

प्रश्न यह है कि अब ‘रोजगार संघर्ष यात्रा’ या ‘बायोडाटा दो नौकरी लो’ आदि योजनाओं का आधारभूत मंतव्य क्या है? चुनाव तो है ही, वास्तव में उन्हें क्या लाभ है, जिनके नाम पर संघर्ष यात्राएं चल रही हैं? क्या इससे रोजगार सृजन होगा? क्या इससे किसी एजेंसी पर रातोंरात पद सृजित करने और उन्हें भरने का दबाव पड़ेगा? विडंबना यह है कि जनसंख्या नियोजन के अर्थ लंबे समय तक परिवार नियोजन के साथ नत्थी किए जाते रहे हैं। जबकि जनसंख्या नियोजन का अर्थ यह है कि सबका सृजन में योगदान हो।

कृपया इसे मनरेगा वाले हर हाथ को काम तक सीमित न किया जाए। हर व्यक्ति को उसकी अभिरुचि के अनुसार काम दिया जाए। हर व्यक्ति आइएएस, इंजीनियर, डाक्टर नहीं हो सकता। इसके लिए कौशल विकास निगम की अवधारणा उचित ही थी, किंतु वहां आउटसोर्सिंग शब्द संसाधनविहीन बन कर रह जाता है। कई बार ऐसा हुआ है कि पद चपरासी या पटवारी का था और आवेदनकर्ता इंजीनियर, पीएचडी किए हुए लोग। वह कौन सी समझ है कि इंजीनियरिंग की डिग्री करने के बाद पटवारी बनना सरल लगता है, पर स्व रोजगार की ओर जाना कठिन।

जब तक सुरक्षा के पीछे भागते हुए जोखिम न उठाने की प्रकृति रहेगी, तब तक ऐसी रोजगार संघर्ष यात्राएं और बायोडाटा दो, नौकरी लो प्रकार की घोषणाएं नए मसीहाओं के लिए रास्सा बनाती रहेंगी। बहुत तर्कसंगत होता कि गारंटी देने वाले पांच वर्ष सरकार के कामकाज का आकलन करते और रोजगार के विषय में अपना शोध भी करते। पूछते सरकार से कि कितनी नौकरियों का वादा था और दी कितनी। संघर्ष या बायोडाटा का स्मरण चुनाव के समय ही आना, केवल चुनावी आहट का पता देता है। अब भी गारंटी मत दीजिए, इतना सच कहने की शक्ति रखिए कि सबको सरकारी नौकरी देना असंभव है।

कौशल या हुनर सिखाने की गारंटी दीजिए। होना तो यह चाहिए कि लोगों को इस योग्य भी बनाएं कि वे रोजगार पा सकें। अपना काम करने के इच्छुक व्यक्ति का मनोबल लाल या हरे फीतों से जकड़ी फाइलें दिखाकर मत तोड़िए। आपकी यात्रा चुनावी संघर्ष है, बेरोजगार की यात्रा वर्षों से जारी है। हिमाचल में स्थापित उद्योगों में सत्तर प्रतिशत रोजगार हिमाचलियों को दिया जा रहा है, किंतु उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल भी सिखाना होगा।

यह उचित नहीं होगा कि मेरी गारंटियों के इस मेले में अपनी गारंटी की सफेदी के लिए यह याद रखा जाए कि इस सबके लिए 12,000 करोड़ रुपये कहां से आएंगे। घर के पास रोजगार ऐसी अवधारणा है जो कुएं का मेंढक बनाती है। कुशल मानव बल ऐसा हो जो राज्य के बाहर भी अपने कौशल की छाप छोड़े। जैसे हिमाचल प्रदेश की नर्सें और होटल कर्मचारी देश के हर होटल में दिखते हैं।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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