माता बज्रेश्वरी देवी की पिंडी पर क्यों चढ़ाया जाता है सात दिन तक मक्खन का लेप, जानिए मान्यता
Ghrit Parv Recognition श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर का मुख्य आयोजन घृत पर्व ही होता है। यह साल में एक बार मकर संक्रांति के दौरान ही मनाया जाता है।
कांगड़ा, रितेश ग्रोवर। श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर का मुख्य आयोजन घृत पर्व ही होता है। यह साल में एक बार मकर संक्रांति के दौरान ही मनाया जाता है। घृत मंडल पर्व के आयोजन के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं। इन घावों को ठीक करने के लिए माता के शरीर पर घृत का लेप किया था। कहा जाता है कि उस दौरान देवी-देवताओं ने देसी घी को एक सौ एक बार शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाया था और उसे माता के शरीर पर आए घावों पर लगाया था। इस परंपरा को शुरू होने का सही उल्लेख तो नहीं मिलता है, लेकिन सदियों से इसका निर्वहन किया जा रहा है। मक्खन से मां का सजाने के बाद फल और मेवों से इस पिंडी का श्रृंगार किया जाता है।
मक्खन बनाने की प्रक्रिया में जुटे पुजारी
श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर में मकर संक्रांति के दिन होने वाले घृत पर्व के लिए इन दिनों घी से मक्खन बनाने का काम बड़ी तेजी से चल रहा है। पहले की तरह इस बार में तीस क्विंटल से ज्यादा देसी घी से मक्खन तैयार किया जाएगा। कड़ाके की ठंड होने के बावजूद पुजारी मक्खन बनाने की प्रक्रिया में जुटे हैं। लोगों के दान से एकत्रित होने वाले घी के अलावा मंदिर प्रशासन भी अपनी ओर से घी का योगदान देता है।
101 बार ठंडे पानी से धोकर तैयार किया जाता है मक्खन
मक्खन से मां का श्रृंगार अद्भुत होता है लेकिन घी से मक्खन तैयार करने की प्रक्रिया भी किसी तप से कम नहीं है। इन दिनों यहां कड़ाके की ठंड के बीच इसे ठंडे पानी से तैयार किया जाता है। मक्खन से घी तैयार करते तो आपने सुना और देखा भी होगा, लेकिन घी से मक्खन तैयार करना सभी को अचंभित करने वाला पल होता है। देसी घी को 101 बार ठंडे जल में रगड़-रगड़ बनाया जाता है। इसे तैयार करने में पुजारियों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे मौसम में मक्खन बनाने के दौरान पुजारियों को कई परेशानियों से गुजरना पड़ता है। बर्फ जैसे ठंडे पानी में देसी घी को 101 बार धोना किसी कल्पना से कम नहीं है, लेकिन माता की कृपा से यह कार्य संपन्न होता है। मंदिर की यज्ञशाला में चल रही इस प्रक्रिया को देखने के लिए भी कई लोग पहुंच रहे हैं। घृत मंडल पर्व शुरू होने से आठ दिन पहले ही घी से मक्खन बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इन दिनों इस अंतिम रूप दिया जा रहा है। घृत पर्व के लिए मंदिर को रंग-विरंगी रोशनी से सजाया गया है। कई साल से चले आ रहे इस पर्व में हर श्रद्धालु अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है। माघ मास की संक्रांति के दिन शुरू होने वाले इस उत्सव के दौरान मंदिर में खास इंतजाम किए जाते हैं।
चर्म रोगों के लिए रामबाण
मान्यता है कि शरीर के चर्म रोगों और जोड़ों के दर्द में लेप करने के लिए यह प्रसाद रामबाण का काम करता है। मकर संक्रांति पर्व पूरे देश के साथ-साथ कांगड़ा के नगरकोट धाम में भी मनाया जाता है। इस पर्व पर बज्रेश्वरी मंदिर कांगड़ा में घृतमंडल तैयार किया जाता है। गर्भगृह से लेकर प्रांगण तक मां के दिव्य भवन में मां के भक्तों का तांता लगा रहता है। यह परंपरा देवीय काल से चली आ रही है और शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी के इतिहास से संबंधित है।
सात दिन तक मां की पिंडी पर चढ़ा रहता है मक्खन
घृतमंडल पर्व मकर संक्रांति से लेकर सात दिन तक चलता है। इस दौरान लोग मंदिर में माता के इसी रूप का दीदार करते हैं। सात दिन बाद इस मक्खन को माता की पिंडी से उतारा जाता है। उसके बाद इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मान्यता है कि माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ने के बाद यह औषधि बन जाता है। लोग इसे व्याधि या अन्य चर्म रोगों को दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं, लेकिन इसे खाने के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। मंदिर के पुजारी पंडित राम प्रसाद के अनुसार इस मक्खन रूपी प्रसाद से धाव, फोड़े आदि पर लगाने से उनका उपचार हो जाता है। प्रदेश सहित अन्य राज्यों के हजारों श्रद्धालु प्रसाद लेने के लिए पहुंचते हैं।