विरोधियों के लिए थे खौफ का दूसरा नाम
बलबीर सिंह सीनियर का जन्म 10 अक्टूबर 1924 को हुआ था।
बलबीर सिंह सीनियर का जन्म 10 अक्टूबर, 1924 को हुआ था। होश संभालते ही उन्हें हॉकी के खेल से प्यार हो गया। लड़कपन में ही उनका गेंद पर नियंत्रण गजब का था। एक मुकाबले के दौरान उस समय के खालसा कॉलेज के हॉकी कोच हरबैल सिंह की नजर उन पर पड़ी। बस फिर क्या था उनकी देखरेख में बलबीर सिंह सीनियर का खेल कौशल निखरता चला गया। सेंटर फॉरवर्ड पॉजिशन में खेलने वाले बलबीर के आक्रामक खेल से विपक्षी घबराते थे। जब वह गेंद ड्रिबल करते हुए विपक्षी खेमे में घुसते तो उन्हें रोकना मुश्किल हो जाता। उनकी खेल शैली के विरोधी भी कायल थे।
बलबीर सिंह सीनियर भारत की उस हॉकी टीम के सदस्य रहे जिसने तीन ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीते। लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) में खेली इस टीम में हॉकी के जादूगर ध्यानचंद भी खेले थे। बलबीर सिंह की उपलब्धियां बेमिसाल हैं। वह ऐसे हॉकी खिलाड़ी रहे जिन्होंने सबसे अधिक हॉकी गोल का रिकॉर्ड अपने नाम किया था। 1952 के ओलंपिक के दौरान फाइनल में नीदरलैंड्स के खिलाफ उन्होंने पाच गोल कर यह रिकॉर्ड बनाया था। भारतीय टीम के इस आक्रामक खिलाड़ी को बलबीर सिंह सीनियर एक अन्य हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह से अलग पहचान के लिए कहा जाता था।
हॉकी में शुरुआत
बलबीर सिंह ने भारत की 1936 ओलंपिक जीत पर एक फिल्म देखी थी जिससे वह काफी प्रभावित हुए और यहीं से उन्होंने हॉकी खिलाड़ी बनने की ठान ली। सर्वप्रथम उनकी प्रतिभा को कोच हरबैल सिंह ने पहचाना। हरबैल उस समय खालसा कॉलेज हॉकी टीम के कोच थे। उन्होंने बलबीर सिंह को खालसा कॉलेज आने को कहा। उस दौरान बलबीर सिंह सीनियर का कॉलेज सिख नेशनल कॉलेज लाहौर में था और खालसा कॉलेज अमृतसर में। बाद में बलबीर सिंह ने परिवार की अनुमति लेकर खालसा कॉलेज में दाखिला ले लिया। कोच हरबैल ने भारतीय नेशनल हॉकी टीम को हेलसिंकी और मेलबर्न ओलंपिक के लिए तैयार किया था।
प्रस्तुति : अजय अत्री, धर्मशाला