बरगद की छांव से परहेज, चंदन को दुलार रहा वन विभाग, छह सर्कलों में पहली बार चंदन के पौधों का प्रयोग
Himachal Forest भारतीय दर्शन वनस्पतियों की शक्ति का परिचय देता है। लेकिन हिमाचल प्रदेश का वन विभाग बरगद और पीपल के पौधे रोपने में परहेज कर रहा है।
शिमला, रमेश सिंगटा। भारतीय दर्शन वनस्पतियों की शक्ति का परिचय देता है। लेकिन, हिमाचल प्रदेश का वन विभाग बरगद और पीपल के पौधे रोपने में परहेज कर रहा है। इन पौधों का सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू भी साथ में जुड़ा हुआ होता है। प्रदेश की नर्सरियों में इस पर कोई फोकस नहीं है। बरगद की छांव से परहेज कर चंदन को जरूर दुलार रहा है। पहली बार राज्य की नर्सरियों में छह सर्कलों में प्रयोग हो रहा है। ये नर्सरियां हैं सोलन, बिलासपुर, नाहन, हमीरपुर, धर्मशाला, और मंडी शामिल हैं। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इसे दूसरी जगह आजमाया जाएगा।
नर्सरियां में पौधा स्वस्थ उगा तो इसे प्रदेश के किसानों को किफायती दाम पर उपलब्ध करवाया जाएगा। इन सर्कलों की दस नर्सरियों में चालीस से पचास हजार चंदन के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। प्रदेश की कुल 864 नर्सरियों में दो करोड़ से अधिक पौधे उपलब्ध हैं। ये छोटे और बड़े दोनों प्रकार के हैं। इनमें देवदार, दाड़ू, आंवला, भेड़ा, कचनार, बान, खैर, रिठा, शीशम, तूनी, अमरूद, कैंथ व बियूल आदि प्रजाति के पौधे शामिल हैं। चौड़ी पत्तियों से औषधीय गुणों वाले सब पौधे उगाए गए हैं।
रोपण जलवायु के हिसाब से होता है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में देवदार, बान रोपे जाते हैं। रोपण उन्हीं का किया जाता है, जिनकी उम्र दो से ढाई साल तक है। दो करोड़ में से एक करोड़ हर साल रोपने को तैयार रहते हैं। नर्सरी में पौधे तो उग जाते हैं, लेकिन रोपने के बाद इनमें जन भागीदारी कम सुनिश्चित की जाती है।
कैंथ से कर रहे कमाई
वन विभाग नर्सरियों में कैंथ से कमाई कर रहे हैं। बागवानों में ऐसे पौधों की मांग ज्यादा है। इनमें नाशपाती की कलम की जाती है। छह- सात साल बाद यह फल देना आरंभ कर देता है। इसी तरह से निचले क्षेत्रों में खैर भी किसानों की नकदी फसल है। इसे लोग निजी भूमि में लगाते हैं। टेन इयर फैङ्क्षलग प्रोगाम के तहत इन पौधों को किसान बेच सकते हैं। लेकिन दस वर्ष से पहले इन्हें दोबारा काटना संभव नहीं होता। वन विभाग पेड़ मार्क करता है और वन निगम के जरिये इसकी लकड़ी डिपो तक पहुंचाई जाती है। खैर गर्म इलाकों में उगता है। बकरी पालन में भी खैर की पत्तियों का प्रयोग होता है।
अब सफेदा नहीं उगाया जा रहा नर्सरियों में
अब प्रदेश की नर्सरियों में सफेदा नहीं उगाया जा रहा है। चीड़ और सफेदा को विभाग ने उगाना लगभग बंद कर दिया है। असल में सफेदा पानी को काफी सोखता है। इस कारण क्षेत्र सूखा हो जाता है। यह अपने नीचे घास पत्तियां नहीं उगने देता है। चीड़ जंगलों में अपने आप भी उग जाता है। लेकिन यह आग लगने का सबसे बड़ा कारण बनता है। खासकर गर्मियों में यह वनों की आग का सबसे बड़ा कारण बनता है।
क्या कहते हैं अफसर
- चौड़ी पत्तियों वाले पौधे नर्सरियों में तो तैयार हो जाते हैं, लेकिन इनकी रोपने के बाद देखभाल नहीं होती है। इन पौधों पर नुकीली पत्तियों वाले पौधों से नर्सरियों में भी कम खर्चा आता है। इस कारण विभाग पहले नुकीली पत्ती के पौधे ज्यादा लगाता था, इसके जीवित रहने की दर भी ज्यादा है। विभाग को चाहिए कि वह चौड़ी पत्ते वाले पौधे जनता की भागीदारी से ज्यादा रोपे और उनकी देखभाल भी करवाएं। इसके लिए लोगों को साधन उपलब्ध करवाएं। -डॉ. कुलदीप तंवर, रिटायर आइएफएस।
- नर्सरियों में अच्छी प्रजाति के पौधे तैयार करने के लिए बजट की कमी नहीं है। रोपे जाने वाले पौधों की दर लगातार बढ़ रही है। विभाग कोशिश करता है पौधरोपण में जन भागीदारी ज्यादा से ज्यादा संख्या में सुनिश्चित की जाए। -अर्चना शर्मा, पीसीसीएफ, वित्त।