मधुमक्खी पालन से आय बढ़ाएं किसान
विश्व स्तर पर भारत शुद्ध प्राकृतिक शहद का
जागरण संवाददाता, पालमपुर : विश्वस्तर पर भारत शुद्ध प्राकृतिक शहद का आठवां सबसे बड़ा उत्पादक है। हिमाचल जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों के लिए आयोजित सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के समापन पर निदेशक डॉ. संजय कुमार ने कही।
उन्होंने कहा कि 1.05 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन देश में होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, कनाडा आदि को 0.63 लाख मीट्रिक टन निर्यात करता है जिसकी कीमत 732.16 करोड़ है। मधु मक्खियां फसल के पौधों के सबसे महत्वपूर्ण परागणक हैं जो परागण, उत्पादन और उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। फलों, सब्जियों, औषधीय फसलों में मधुमक्खी पालन का एकीकरण किसानों को पर्याप्त अवसर, अतिरिक्त आय और स्वरोजगार के अवसर प्रदान करता है। मधुमक्खी पालन के आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का ज्ञान, प्रशिक्षण शहद की गुणवत्ता के लिए समय की आवश्यकता है इस क्षेत्र में कीटनाशकों के सुरक्षित उपयोग के ज्ञान की भी आवश्यकता है। इसलिए मधुमक्खी पालन पर प्रशिक्षण के लिए समय-समय पर मधुमक्खी के उत्पादों और इसके विपणन के बारे में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. एसजी ईश्वर रेड्डी ने बताया कि शिविर में किसानों को कॉलोनियों के रखरखाव के बारे में प्रशिक्षित किया गया।
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शहद ही नहीं अपितु अन्य उत्पाद भी उपयोगी
रॉयल जेली, प्रोपोलिस और मधुमक्खी का जहर जैसे उत्पादों की वैश्विक बाजार में काफी मांग है। सौंदर्य प्रसाधन (क्रीम, कंडीशनर, फेस पैक / स्क्रब, शैम्पू आदि) और फार्मास्यूटिकल्स (डेंटल फिलिग, मलहम के लिए आधार सामग्री) के लिए उपयोग किया जाने वाला मोम; प्रोपोलिस का उपयोग एंटी इंफ्लेमेटरी, कोल्ड सोरेस, काँकेर सोरेस, जलन, मधुमेह आदि के लिए किया जाता है। ऐंटिफंगल, रोगाणुरोधी, एंटीऑक्सिडेंट के लिए पराग छर्रों, प्रतिरक्षा प्रणाली आदि को मजबूत करने के लिए उपयोग किया जाता है; रॉयल जेली प्रोटीन से भरपूर और उम्र के प्रभाव से लड़ने, और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए आहार अनुपूरक के रूप में उपयोग किया जाता है; मधुमक्खी का जहर गठिया के विकारों जैसे मल्टीपल स्केलेरोसिस, रुमेटीइड आर्थराइटिस (एपेथेरेपी) के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है।