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Dussehra 2020: शिव भूमि बैजनाथ में नहीं जलाया जाता रावण का पुतला, जानिए क्‍या है मान्‍यता

Dussehra 2020 विजयदशमी पर पूरा देश लंकापति रावण के पुतले को बुराई पर अच्‍छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जलाएगा। लेकिन हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ में दशहरा पर्व पर रावण के पुतले का दहन नहीं होता।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 10:10 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 10:10 AM (IST)
Dussehra 2020: शिव भूमि बैजनाथ में नहीं जलाया जाता रावण का पुतला, जानिए क्‍या है मान्‍यता
हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ में दशहरा पर्व पर रावण के पुतले का दहन नहीं होता।

बैजनाथ, मुनीष दीक्षित। विजयदशमी पर पूरा देश लंकापति रावण के पुतले को बुराई पर अच्‍छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जलाएगा। लेकिन हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ में दशहरा पर्व पर रावण के पुतले का दहन नहीं होता। यहां रावण के पुतले को जलाना महापाप समझा जाता है। यहां भगवान भोलेनाथ का हजारों वर्ष पुराना बैजनाथ मंदिर है। ऐसी मान्‍यता रही है यहां जिसने भी रावण को जलाया, उसकी मौत तय हाेती है। इस कारण यहां वर्षों से रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता।

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दशहरा न मनाने की परंपरा यहां कई दशकों से है। लेकिन 70 के दशक में अन्य स्थानों में रावण के पुतले को जलाने की परंपरा को देखते हुए यहां भी कुछ लोगों ने दशहरा मनाना शुरू कर दिया। इसके लिए स्थान चुना गया बैजनाथ मंदिर के ठीक सामने का एक खुला मैदान। परंपरा शुरू हुई। लेकिन उसके परिणाम घातक होने लगे। जिसने पहले दशहरे पर रावण को आग लगाई, वो अगले दशहरे तक जीवित नहीं था। ऐसा एक बार नहीं दो से तीन बार हुआ। इस उत्सव में भाग लेने वाले लोगों को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। फिर सबका ध्यान इस तरफ गया कि रावण तो भगवान भोलेनाथ का परम भक्‍त था। कोई देव अपने सामने भला अपने भक्त को जलता हुआ कैसे देख सकता है। फिर क्या था, यह परंपरा यहां बंद हो गई। आज भी यह कस्बा दशहरे के दिन शांत होता है।

मंदिर के पुजारी बताते है कि मंदिर से कई रोचक बातें जुड़ी हैं। कई रहस्य अब भी अनसुलझे हैं। यहां दशहरा नहीं मनाने का मुख्य कारण यही है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था।

ऐसे में शिव की नगरी में रावण का पुतला जलाना महापाप होगा। उन्होंने बताया कि इस कस्बे में एक भी सोने या चांदी की कोई दुकान नहीं है। यानी यहां कोई सुनयार की दुकान आज तक नहीं चल पाई। इसके पीछे भी इसी मंदिर से जुड़ा कोई कारण है। जिसका अभी पूरा पता नहीं चल सका है। यह मंदिर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग में पालमपुर से 16 किलोमीटर दूर तथा मंडी से 78 किलोमीटर दूर है।


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