कांगड़ा-चंबा की सीमा पर लगती है नशे की मंडी
जिला कांगड़ा व चंबा की सीमा पर बसे प्रीतमनगर गांव में यहां नशे की मंडी लगती है। कोई भी जब मर्जी जाकर नशा खरीद सकता है। पुलिस भी बेबश दिखती है।
जेएनएन, धर्मशाला/चंबा। भले ही सरकार ने प्रदेश में नशे के खात्मे के लिए कड़े नियम बनाए हैं और कानून पास किया हो, लेकिन जिला कांगड़ा व चंबा की सीमा पर बसे प्रीतमनगर गांव में यह कानून नहीं चलता। यहां नशे की मंडी लगती है। कोई भी जब मर्जी जाकर नशा खरीद सकता है।
गत माह दोनों जिलों की पुलिस ने गांव में संयुक्त दबिश देकर भारी मात्रा में नशीले पदार्थ व नकदी बरामद की थी। पांच लोगों के खिलाफ केस भी दर्ज किए हैं। इससे कुछ दिन तो नशे के कारोबार पर लगाम लगी लेकिन अब गांव में बेखौफ नशा बिक रहा है। अगर अनजान व्यक्ति गांव में पहुंच जाए तो उसके साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता और व्यक्ति से उनके अवैध कारोबार पर असर पडऩे का डर महसूस हो तो वह उसे वहां से भगा देते हैं। द्रम्मण के साथ लगते विशेष समुदाय का प्रीतमनगर गांव पुलिस चौकी सिहुंता के तहत आता है। यह शाहपुर के भी बिलकुल पास है।
वर्षों से गांव में चल रहे नशे के धंधे की जानकारी प्रशासन व पुलिस को भी थी, लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। अब दोनों जिलों की पुलिस ने साहस तो जुटाया लेकिन एक बार कार्रवाई कर इतिश्री कर ली गई। अब वहां फिर नशे का धंधा बेखौफ चल रहा है। इन लोगों के निशाने पर युवाओं के साथ स्कूली बच्चे भी हैं। यह लोग अपने घरों के साथ-साथ स्कूलों के आसपास भी नशा बेच रहे हैं। स्थानीय लोग कई बार इसकी शिकायत प्रशासन व पुलिस के समक्ष कर चुके हैं।
पुलिस बना रही योजना : डीएसपी
डीएसपी डलहौजी रोहिन ठाकुर का कहना है प्रीतमनगर क्षेत्र पुलिस की नजर में है। पुलिस की ओर से विशेष योजना बनाई जा रही है। नशा तस्करों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।
पुलिस रख रही है नजर : एसपी
पुलिस अधीक्षक कांगड़ा संतोष पटियाल का कहना है दोनों जिलों की पुलिस ने पिछले माह भी क्षेत्र में दबिश दी थी और लगातार क्षेत्र में नजर रखे हुए हैं। नशा बेचने वाले किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।
चंबा में गरीब लोग बन रहे निशाना
जिला चंबा काला सोना यानी चरस की खान बनती जा रही है। माफिया के लिए घाटी के दूरदराज क्षेत्र और बेरोजगार व गरीब लोग काफी फायदेमंद साबित हो रहे हैं। इन्हें मामूली-सा मेहनताना देकर माफिया घाटी में चरस एकत्र करने में झोंक रहा है। यह सही है कि कुछ लोग पुलिस के हत्थे चढ़ते भी हैं, लेकिन माफिया तक पुलिस नहीं पहुंच पा रही है।
पुलिस की ओर से जिलाभर में वर्ष 2018 में पकड़ी गई चरस का आंकड़ा 2017 से लगभग दोगुना रहा। वर्ष 2018 में पुलिस द्वारा 98.742 किलो चरस पकड़ी गई है। जबकि 2017 में 60 मामलों में केवल 48 किलो चरस पकड़ी गई थी। ऐसे में पिछले वर्ष की तुलना में यह आंकड़ा दोगुना हो गया है। वर्ष भर न केवल चरस तस्करी अपितु हेरोइन, कोकीन सहित ¨सथेटिक ड्रग्स के साथ भी लोगों को दबोचा गया है। तस्करों के खुलासे पर पुलिस ने चरस विक्रेताओं को भी गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे धकेला है।
वर्ष 2018 में दर्ज चरस के करीब 30 फीसद मामलों में पुलिस ने उस व्यक्ति को भी हवालात में बंद किया है, जिसने तस्कर को चरस बेची थी। हर वर्ष चरस तस्करी करने पर भारी संख्या में लोगों को गिरफ्तार कर हवालात में बंद किया जाता है। इसके बावजूद चरस तस्करी के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है।
लोगों का सहयोग भी जरूरी : एसपी चंबा
एसपी चंबा मोनिका का कहना है जिला में चरस तस्करों को पकड़ने के लिए पुलिस द्वारा पूरी रणनीति के साथ कार्य किया जा रहा है। इसलिए अधिक चरस तस्कर पुलिस की गिरफ्त में आए हैं। लोगों का भी इसमें सहयोग है। सभी लोग नशे के खिलाफ जागरूक रहते हुए इसके खिलाफ एकजुट होकर कार्य करें तथा पुलिस का सहयोग करें, ताकि नशाखोरी पर लगाम लगाई जा सके।
खेप ठिकाने लगाने के लिए मजदूर नेटवर्क
गांव-गांव से एकत्र की जाती है चरस चरस माफिया चंबा में गर्मियों में गांव स्तर से चरस की खेप एकत्रित करता है। क्षेत्र के ही एक व्यक्ति को इस पूरी खेप को ठिकाने पर लाने के लिए मुंह मांगा पैसा देने का लालच दिया जाता है। खेप को ठिकाने लगाने पर लाने में कामयाब होने पर उसे पैसे दिए जाते हैं। मगर कुछ माफिया पैसा देने में आनाकानी करते हैं। इस कारण क्षेत्र के ही लोग पुलिस को सूचना देकर उन्हें पकड़वा देते हैं। अन्य राज्यों के मजदूर भी नेटवर्क में शामिल माफिया ने अपने नेटवर्क में गरीब मजदूरों को जोड़ना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश, बिहार व पंजाब के विभिन्न हिस्सों से मजदूरी कर पेट पालने के लिए निकले गरीब तबके को अब चंद रुपयों का लालच देकर माफिया अपने जाल में फंसा रहा है। इसके अलावा स्थानीय लोगों को भी इसमें झोंका जा रहा है। बच्चे भी नशे की गिरफ्त में चंबा में नई पीढ़ी का एक बड़ा वर्ग भी चरस के नशे की गिरफ्त में पड़ चुका है।
कई किस्मे, बच्चे भी हो रहे आदी
चरस की किस्मों को मलाणा क्रीम और बॉम्बे ब्लैक जैसे नाम युवा पीढ़ी की जुबान पर हैं और जेब में चिलम और रोलिंग पेपर तो और चॉकलेट की तरह आम हो गई है। यहां तक कि 12 साल के बच्चे भी मनोरंजन के लिए इसके नशे में डूब रहे हैं।