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बातों ही बातों में बदल देते थे पहाड़ी गानों का स्वरूप

अपने बांसूरी के दम से संगीत में जान फूंक देने वाले डॉ. राजेंद्र गुरुंग की शास्त्रीय संगीत में अच्छी पकड़ थी।

By Edited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 07:06 AM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 11:19 AM (IST)
बातों ही बातों में बदल देते थे पहाड़ी गानों का स्वरूप
बातों ही बातों में बदल देते थे पहाड़ी गानों का स्वरूप

मुनीष गारिया, धर्मशाला। डॉ. राजेंद्र गुरुंग जहां बांसुरी के दम से संगीत में जान फूंक देते थे, वहीं शास्त्रीय व लोक संगीत में भी उनकी अच्छी पकड़ थी। पहाड़ी गानों का तो वह बातों ही बातों में स्वरूप बदल देते थे। बांसुरी की धुन ऐसी थी कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाए। प्रकृति की गोद इंद्रूनाग व भागसूनाग में जब वे साथियों के साथ महफिल सजाते थे तो ऐसा लगता था कि प्रकृति भी उनकी बांसुरी में रस घोल रही हो।

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उनकी राग तिलक कामोद पर विशेष पकड़ थी। वर्ष 2013 की ही बात है कि राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला में वार्षिक समारोह चल रहा था। यहां डॉ. गुरुंग की अतिथि प्रस्तुति थी। जैसे ही उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर बांसुरी की प्रस्तुति देनी शुरू की तो मंच के पीछे से संगीत विशेषज्ञों की आवाज आई कि वे राग तिलक कामोद पर कोई पहाड़ी गाना सुनना चाहते हैं और वह भी नए स्वरूप में। बस फिर क्या था उन्होंने भी 'कपड़ेयां धोआं छम-छम रोआं कुंजुआ' पहाड़ी गाने को इसी राग में सभी के सामने पेश कर दिया।

हालांकि कार्यक्रम के दौरान सैकड़ों लोग उपस्थित थे, लेकिन नए रूप में पेश किए इस गाने को हर कोई इतनी खामोशी से सुन रहा था जैसा पूरा कॉलेज परिसर ही खाली पड़ा हो। डॉ. गुरुंग हमेशा कहा करते थे कि उन्होंने पंडित रविप्रसाद चौरसरिया से संगीत की शिक्षा ली है। कहते थे कि जब वह चौसरिया से सीखने गए तो उन्होंने एक पत्र लिखा था कि बासुरी सीखने के पहले गायन का अध्ययन करने आओ। इसके बाद रविप्रसाद चौरसिया की सिफारिश पर ही कुछ दिन गायन सीखा और उसके बाद बांसुरी वादन सीखा।

संगीत प्राध्यापक डॉ. सतीश ठाकुर ने बताया कि मैंने और डॉ. गुरुंग ने कई साल धर्मशाला कॉलेज में रहकर काम किया है। वह वाद्य संगीत के छात्रों को पढ़ाते थे और मैं गायन के। उनकी संगत करते-करते बहुत सी चीजें सीखने को मिलीं। सीख लो अखिल जो मेरे पास है, जाने कितना समय है ¨जदगी का डॉ. गुरुंग के शिष्य न केवल प्रदेशभर में अपना नाम काम रहे हैं, बल्कि पुलिस में भी सेवाएं दे रहे हैं। डॉ. गुरुंग के शिष्य दाड़ी निवासी अखिल कुमार कई हिमाचली एलबमों में काम करने के साथ पुलिस बैंड की भी शोभा बढ़ा रहे हैं।

अखिल कुमार पुलिस बैंड में सदस्य हैं। बकौल अखिल, करीब तीन साल पहले वह और अधिक संगीत का ज्ञान लेने गुरु जी के पास गया। लेकिन उनके पास समय कम होता था, तो सीख नहीं पा रहा था। इसी बीच एक दिन धर्मशाला में एक संगीत सम्मेलन के दौरान वह बांसुरी की संगत कर रहे थे तो अचानक सामने डॉ. गुरुंग आ गए। कुछ क्षण के लिए बांसुरी बजाना ही भूल-सा गया, लेकिन उसी पल खुद को संभालते हुए दोबारा प्रस्तुति दी। जैसे ही प्रस्तुति खत्म हुई तो उन्होंने बुलाकर कहा, अखिल कल से समय बनाता हूं और नियमित अभ्यास करते हैं। उनके बोल थे, सीख लो अखिल जो कुछ भी मेरे पास है अब उम्र भी ऐसी हो गई है कि कोई पता नहीं है ¨जदगी का कितना समय रहा है।


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