भदरोआ में सड़कों में घूम रहे बेसहारा पशु, हादसों को दे रहे हैं न्योता
किसान ने खेती के साथ पशुपालन के व्यवसाय को भी कम कर दिया है। सरकार की और से गाय व गोवंश की संरक्षण के लिए योजनाएं बनाई गई हैं लेकिन ये योजनाएं अभी कागजों में ही चल रहीं हैं।
भदरोआ, मुकेश सरमाल। बदलते परिवेश में लोगों पर अर्थ तंत्र हावी हो गया है। किसान ने खेती के साथ पशुपालन के व्यवसाय को भी कम कर दिया है। सरकार की ओर से गाय व गोवंश की संरक्षण के लिए योजनाएं बनाई गई हैं, लेकिन ये योजनाएं अभी कागजों में ही चल रहीं हैं।
गाय को माता कहने वाले भारतीय गाय को सड़कों पर कचरा और पॉलीथिन खाने को छोड़ रहे हैं। भदरोआ क्षेत्र में लोग बिना दूध देने वाली गायों को असहाय छोड़ रहे हैं। रात के अंधेरे का फयादा लेते हुए लोग गायों को ट्राली और अन्य वाहनों में लोड कर एकांत जगहों पर छोड़ रहे हैं, जोकि रास्तों में कई वाहनों से टक्कर लगाकर कई लोगों को काल का ग्रास बना चुकी है और इसके साथ किसानों के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है। इन बेसहारा पशुओं से फसलों को बचाने के लिए किसानों को रात को पहरा देना पड़ रहा है। अगर एक दिन भी किसान खेत में जाने की ढील बरत दें तो असहाय गाय मिनटों में कई एकड़ फसल को खा जाती हैं।
क्षेत्र के किसानों में जर्म सिंह, अजय कुमार, सुंदर लाल, बनवारी, सुरेंद्र सिंह व अन्य ने कहा कि इस गोवंश के लिए हिमाचल सरकार कई तरीकों से बजट इक्कट्ठा कर रही है। जिसमें आबकारी विभाग के माध्यम से शराब की बोतल कर टैक्स लगाने के साथ मंदिरों से चढ़ावे के रूप में हुई आय में भी कुछ प्रतिशत पैसे गोवंश के लिए बजट के रूप में लिए जा रहे है। इतना टेक्स एकत्रित होने के बाबजूद भी यह पूरा पैसा गोवंश पर खर्च होता नजर नही आ रहा है। सरकार की हर पंचायत में गोशाला खोलने की घोषणाएं भी मात्र सरकार के कागजों तक ही सीमित रही है। सरकार की इस ढील के चलते उनकी फसलों को नुकसान हो रहा है।
डमटाल बाई अटारिया में दो बड़ी गौशाला होने के बावजूद भी सड़कों पर घूम रहे बेसहारा पशु
इंदौरा क्षेत्र में डमटाल और भाई अटारिया में सड़क किनारे दो बड़ी गौशाला होने के बावजूद भी पशु सड़कों पर घूम रहे हैं जो कि लोगों के लिए परेशानी और हादसों को न्योता दे रहे हैं ऐसे में सवाल यह है कि गौशाला होते हुए भी इन पशुओं को उन गोशालाओं में क्यों नहीं रखा जा रहा और पशु ठंड के मौसम में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।