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Coronavirus News: कोरोना संक्रमण का प्रसार कायम रहने के दौर में मास्क लगाना आवश्यक

चिकित्सा विज्ञानी कह चुके हैं कि टीका लगने के छह माह तक प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह बन सकती है। यह सोचना गलत है कि वैक्सीन ले ली है तो अब मास्क पहनने की जरूरत है और न शारीरिक दूरी के पालन की।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 10:35 AM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 10:36 AM (IST)
Coronavirus News: कोरोना संक्रमण का प्रसार कायम रहने के दौर में मास्क लगाना आवश्यक
कोरोना संक्रमण का प्रसार कायम रहने के दौर में मास्क लगाना आवश्यक है। फाइल

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। यही दिन थे और यही मौसम था जब बीते वर्ष लॉकडाउन शब्द जनजीवन को नियंत्रित करने लगा था। वे असुरक्षित महसूस करने के दिन थे। सब कुछ अप्रत्याशित था। वर्ष 2020 ने अभी ठीक से आंखें खोली ही थी कि लॉकडाउन के साथ शारीरिक दूरी, कंटेनमेंट जोन, कफ्र्य, क्वारंटाइन, इंस्टीट्यूशनल क्वारंटाइन और सैनिटाइजर जैसे शब्द डराने लगे थे। एक वर्ष के अनुभव वास्तव में नकारात्मकता और सकारात्मकता का मिश्रण हैं। अब अगर सवाल यह हो कि क्या सीखा? इसका उत्तर कोई एकपक्षीय नहीं हो सकता। जिंदगी की आस में घर जाते कामगार अब भी भुलाए नहीं बनते। संक्रमित के साथ शारीरिक दूरी रखनी थी, लेकिन वे सामाजिक दूरी के शिकार भी हुए।

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अच्छा पक्ष यह रहा कि प्रकृति ने कुछ दिन अपना असली रंग दिखाया। मानवता के हक में अनगिनत हाथ उठे। कोई भूखा न सोए इसके लिए सामूहिक पहल हुईं। इस बीच सरकारी पत्रों में आए निर्देश और एक जैसी भाषा भी पढ़ने को मिली। जीवनशैली बदल गई। हाथ धोने जैसा आधारभूत काम बड़ा काम बन गया। डिजिटल इंडिया निरंतर दौड़ता रहा। हिमाचल प्रदेश में एक साल में कुछ काम भरपूर हुए हैं। एक यह कि अपनी जिस पुश्तैनी अथवा स्वयं अर्जति की गई भूमि की तरफ कोई देखता नहीं था, उसके दिन बहुरे हैं। निर्माण भी हुआ। अधिकांश रसोईघरों में स्वयं उगाई हुई सब्जियों की हरियाली बढ़ी और जिंदगी को चलाए रखने के लिए नए प्रयास हुए।

अब एक साल बीत चुका है तो देश में कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं। कोरोना किस मर्ज का नाम है इसका पूरा पता न तब था और न अब है, इसलिए कभी केरल मॉडल बना, कभी हिमाचल, लेकिन जो मॉडल बने वहां जब मामले बढ़ने लगे तो दूसरे राज्य मॉडल बने। कोई स्थायी मॉडल नहीं बन पाया। अब महाराष्ट्र, पंजाब ही नहीं, अब हिमाचल प्रदेश में भी मामले बढ़ने लगे हैं, देश में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या में वृद्धि हुई है। कभी इंग्लैंड से आए कोरोना के प्रकार ने डराया और कभी विज्ञानियों ने कहा कि कोरोना के 500 प्रकार हैं। कुछ विद्वानों ने यह भी कहा कि कोरोना कुछ नहीं है, यह साजिश है। हर भारतीय के लिए गर्व का विषय यह है कि देश के विज्ञानियों ने वैक्सीन की खोज कर ली।

जान है तो जहान है के बाद जान भी जहान भी को अपनाया, लेकिन जिस प्रकार का प्रमाद कुछ आधारभूत बातों के प्रति देखने में आया, वह अब भी जारी है। इसलिए जारी है, क्योंकि शारीरिक दूरी के लिए कोई स्थान नहीं बचा है, मास्क अब दिखावे का या चालान से बचने का उपकरण हो कर रह गया है। दूरी के नियमों को शीर्ष स्थानों से लेकर आम स्थानों पर भी ध्वस्त होते देखा जा सकता है। दूरी के मानक बाजारों या मेलों में ही ताक पर नहीं रखे गए, अपितु गत माह हिमाचल प्रदेश विधानसभा के प्रांगण में भी टूटते देखे गए थे जहां कतिपय लोगों के निशाने पर राज्यपाल थे। पानी अगर ऊपर से बहता है या नजीर का कोई अर्थ होता है तो वह अब चार नगर निगमों की चुनाव प्रक्रिया में भी दिखाई देना चाहिए। आखिर, जान है तो जहान है को क्यों भुलाया जाए।

एक अप्रैल से 45 साल से ऊपर की आयु वाले सभी लोग पात्र होंगे। हिमाचल प्रदेश उन राज्यों में है जहां वैक्सीन के खराब होने की दर बेहद कम है। आवश्यक यह है कि वैक्सीन सब लोगों तक जाए। आखिरकार सुरक्षा चक्र जितना बड़ा होगा, उतना ही बेहतर होगा। लेकिन वैक्सीन का प्रभाव, हर व्यक्ति के शरीर और प्रतिरोधक क्षमता के अनुरूप होगा। चिकित्सा विज्ञानी कह चुके हैं कि टीका लगने के छह माह तक प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह बन सकती है। यह सोचना गलत है कि वैक्सीन ले ली है तो अब मास्क पहनने की जरूरत है और न शारीरिक दूरी के पालन की। यह सोचना भी गलत है कि अब हाथ धोने से भी हाथ धो लिए जाएं।

जो लोग लॉकडाउन में बचाव का रास्ता देख रहे हैं, वे वास्तव में देश की आíथकी के बारे में नहीं सोच रहे हैं। हर व्यक्ति अनुशासित जीवन शैली अपनाए तो लॉकडाउन की जरूरत नहीं रहेगी। आर्थिक गतिविधियां बड़ी कठिनाई से पटरी पर आ रही हैं, उन्हें रोकना देश को पीछे ले जाना है। जिन्हें वैक्सीन मिल गई है और जिन्हें नहीं मिली है, दोनों से आग्रह है कि कोरोना के संदर्भ में छोटी बातों का ध्यान रखना भूख का हल भी कर सकता है और महामारी से भी बचाए रख सकता है। इशरत आफरीं का एक शेर इस काल में प्रसिद्ध हुआ था जिसका सार था कि भूख से या वबा से मरना है/ फैसला आदमी को करना है। बीते साल के सबक और इस साल को देख कर अब तो यह चाहिए :

भूख से या वबा से क्यों मरिए

अपनी आदत सुधारिए साहब।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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