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यहां तैयार होती हैं पीतल की बलटोहियां, हिमाचल ही नहीं अन्‍य राज्‍यों के लोग भी पहुंचते हैं खरीदने

Brass Vessel सिद्दपीठ श्री बाबा क्यालु जी महाराज की ऐतिहासिक नगरी उपतहसील गंगथ भांडयां वाला यानी बर्तन बाजार के शहर के नाम से भी बखूबी जाना जाता है। जिला कांगड़ा का यह कस्बा पीतल के बर्तनों और बलटोहियों को तैयार करने का एक प्रमुख स्थान भी है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 02:08 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 02:09 PM (IST)
यहां तैयार होती हैं पीतल की बलटोहियां, हिमाचल ही नहीं अन्‍य राज्‍यों के लोग भी पहुंचते हैं खरीदने
गंगथ भांडयां वाला यानी बर्तन बाजार के शहर के नाम से भी बखूबी जाना जाता है।

जसूर, अश्वनी शर्मा। सिद्दपीठ श्री बाबा क्यालु जी महाराज की ऐतिहासिक नगरी उपतहसील गंगथ भांडयां वाला यानी बर्तन बाजार के शहर के नाम से भी बखूबी जाना जाता है। जिला कांगड़ा का यह कस्बा पीतल के बर्तनों और बलटोहियों को तैयार करने का एक प्रमुख स्थान भी है। करीब तीन दशक पहले कस्बा में उक्त बर्तनों काे बनाने के बहुत कुशल कारीगर थे, जो पीतल के सारे बर्तन बनाकर गांव-गांव जाकर बेचते थे, जिसमें बलटोही, गागर, बाल्टी और अन्य पीतल के बर्तन शामिल रहते थे फिर आसपास के बाजार भी विकसित हो गए और बाजारों में रेडीमेड और स्टील के माल की दस्तक भी भारी मात्रा में हो गई जिसके चलते अनेक भियां बंद हो गईं। लेकिन कस्बा की आज भी करीब पांच भियां कार्यरत हैं यहां पर उक्त कस्बे के कारीगर पीतल की बलटोही बनाकर अपनी दुकानों पर बेचते हैं और आज भी इनके खरीददार यहां पर हैं। जिला कांगड़ा के साथ-साथ सीमावर्ती राज्यों के लोग आज भी यहां की तैयार हुई बलटोहियों को ही अधिमान देते हैं। त्योहारी सीजन में इनकी मांग और भी बढ़ती है।

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क्या है बलटोही, ऐसे होती है तैयार

यह पीतल का बड़ा बर्तन है, जो एक बड़े मटके के आकार का होता है इसमें सामाजिक, धार्मिक व अन्य समारोहों में बनने वाली धाम के दौरान भोजन तैयार किया जाता है, जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है। अलग-अलग साइज की बलटोही बनाने के लिए पहले मिट्टी का सांचा बनाया जाता है जो दो भागों में होता है। फिर भी में पीतल को पिघलाकर मिट्टी के सांचे पर ढाला जाता है। पीतल के ठंडा होने के बाद दोनों भागों को निकालकर जोड़ दिया जाता है और फिर एक बलटोही तैयार होती है। अलग अलग साइज की बलटोही 15 किलो से लेकर 45 किलोग्राम भार तक की होती है, जिसका बाजार में मूल्य 10 से 25 हजार तक होता है।

क्‍या कहते हैं कारोबारी

  • सुनील गुप्ता ने बताया कस्बा गंगथ कभी बर्तनों का शहर के नाम से विख्यात था, जिसे अब भी भांडयां वाला शहर भी कहा जाता है। यहां तमाम पीतल के बर्तन हाथ से बनते थे। लेकिन बदले समय में कारीगर तो कम हैं, लेकिन गंगथ में कार्यरत करीब पांच भियों के कारीगरों द्वारा अपनी भी पर तैयार की गई बलटोही प्रदेश के साथ साथ बाहरी राज्यों के ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करती है ।
  • राकेश निक्का गंगथ और बलटोही कस्बे के पूरक शब्द हैं, जिससे कस्बा को एक नई पहचान के तौर पर जाना जाता है। चरोटी खरीदनी हो तो सबसे पहले गंगथ का बाजार ही जहन में आता है। यहां कारीगरों द्वारा निर्मित सामान का कहीं पर मुकाबला नहीं है।
  • सुरजीत सेन का कहना है यहां पर कारीगरों के हाथों बनी बलटोही और फिर उसमें बनाई गई धाम का जायका ही अपने आप में अनूठा है। बलटोही के लिए गंगथ बाजार ही क्षेत्र के ग्राहकों की पहली पसंद रहती है । कई जगहों के लोग यहां से आकर खरीददारी भी करते हैं।
  • कारोबारी रिशु आनंद का कहना है यहां पर तैयार हुई बलटोही को खरीदने के लिए नजदीकी क्षेत्र के ग्राहक तो आते ही हैं, बल्कि गंगथ की बलटोही सुदूर क्षेत्र के ग्राहकों को भी बहुत आकर्षित करती है। हमें गर्व है कि यहां के कस्बे को इस कारोबार के यह बड़ी पहचान भी है।

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