हिम तेंदुए ही नहीं, पक्षी भी सहेज रहा हिमाचल का शीत मरुस्थल; 215 प्रजातियों के पक्षियों ने दी दस्तक
Birds in cold Desert शीत मरुस्थल के रूप में विख्यात लाहुल स्पीति में हिम तेंदुए की दहाड़ के साथ पक्षियों की चहचहाहट भी सुनाई दे रही है।
मंडी, मुकेश मेहरा। शीत मरुस्थल के रूप में विख्यात लाहुल स्पीति में हिम तेंदुए की दहाड़ के साथ पक्षियों की चहचहाहट भी सुनाई दे रही है। यहां पर 215 पक्षी दस्तक दे चुके हैं। पर्यावरणविदों सहित वन विभाग की टीम ने इन्हें कैमरे में कैद कर रिकॉर्ड एकत्रित किया है। अमेरिका व यूरोप समेत कई देशों से पक्षी यहां पहुंच रहे हैं। इस साल के पहले दो महीने में 54 पक्षी बाहर से आए हैं। गर्मियां शुरू होते ही यहां पर पक्षी प्रजनन के लिए पहुंचते हैं।
छह महीने तक बर्फ में कैद रहने वाले लाहुल स्पीति में वर्ष 1951 में सबसे पहले बोरिएल ओवल को देखा गया था। गर्मियों में लगातार आने वाले पक्षियों के बाद यहां वन विभाग ने नजर रखनी आरंभ की। वनरक्षक शिव कुमार सहित उनके सहयोगी व अन्य पर्यावरणविद नजर रख रहे हैं।
रंग-विरंगे छोटे पक्षियों सहित गिद्द, हिमालयन मोनाल, ओरेंज बुलफिंच, रॉक पिजन, गोल्डन ईगल, येलो बिल्उ कॉफ, कॉल टीट, ब्राउन डिप्पर, ब्लैक थरोटेड थरस, ब्लू व्हिसलिंग थ्रश, हिल पिजन व हिमालयन बर्ड की प्रजातियां यहां देखी गई हैं। इस साल 54 प्रजातियों में सबसे पहले लिटल फ्रॉकटेल देखा गया। लाहुल स्पीति में करीब सौ से अधिक हिम तेंदुए पाए गए हैं।
किस वर्ष कितनी प्रजातियां दिखीं
- वर्ष प्रजातियां
- 2019 103
- 2018 17
- 2017 10
- 2016 10
- 2015 03
- 2014 06
- 2013 04
- 2012 01
- 1951 01
इन लोगों ने एकत्र की जानकारी
वन विभाग के शिव कुमार, ट्विंकल भट्ट, अश्वनी कुमार, महेश कुमार, अमित जस्पा, गुरु राणा, अर्जुन देव, प्रशांत नेगी।
ई-बर्ड पोर्टल में करते हैं अपडेट, मिला है इनाम
जो भी नया पक्षी किसी के द्वारा यहां तलाश किया जाता है, उसकी जानकारी ई-बर्ड पोर्टल पर डाली जाती है। शिव कुमार 100 से अधिक पक्षियों के बारे में जानकारी अपडेट कर चुके हैं। उन्हें वन विभाग ने सम्मानित किया है।
सूचीबद्ध की जाती है जानकारी
लाहुल में पक्षियों की 215 प्रजातियां देखी गई हैं। इनके खान-पान व आदतों को नोट किया जाता है। इन्हें सूचीबद्ध कर पता लगाया जाता है कि कोई पक्षी कितनी बार आ रहा और या लुप्त तो नहीं हुआ। ई-बर्ड पर देश व विदेश तक इन तथ्य को देखा जाता है। -अनिल कुमार, अरण्यपाल वन विभाग कुल्लू।