खुद बनाते है लकड़ी की पुली, फिर चलती है जिंदगी
जिला कांगड़ा तथा चौहार घाटी को जोड़ने वाला मुल्थान-बरोट पुल बीते कई वर्षों से अपने आप को पुनर्निर्माण के लिए आंसू बहा आ रहा है।
खुशी राम ठाकुर, बरोट। छोटा भंगाल घाटी के 30,000 के करीब बाशिंदे केवल वोट बैंक ही बनकर रह गए हैं। सुविधाओं के नाम पर सरकार व विभागों ने यहां पर आंखें बंद कर ली हैं। यही कारण है कि पिछले 23 सालों से ऊहल नदी पर स्वयं ही पुली का निर्माण कर अपनी जिंदगी की गाड़ी खींच रहे हैं। मामला है ऊहल नदी पर मुल्थान-बरोट को जोड़ने वाले पुल का। 1995 में ऊहल नदी पर बना पुल बाढ़ में बह जाने के बाद आज दिन तक विभाग नए पुल का प्रपोजल भी नहीं बना पाया है। लोग अपने स्तर पर पुली का निर्माण करते हैं।
इस बार भी बरसात में बनाई पुली बह गई और लोगों ने पुन: वीरवार को नई पुली का निर्माण आरंभ कर दिया। ऊहल नदी के आर-पार बसे दोनों घाटियों के पंचायत प्रतिनिधियों छोटा भंगाल घाटी की मुल्थान पंचायत के पूर्व उपप्रधान संजीव कुमार, पूर्व प्रधान भाग सिंह, पोलिंग पंचायत के प्रधान रूप सिंह तथा चौहार घाटी की बरोट पंचायत की प्रधान रंजना कुमारी, लपास पंचायत की पूर्व प्रधान मीना देवी, पूर्व बीडीसी सदस्य अशोक कुमार, कमलेश नेगी ने कहा कि घाटी की सभी सात पंचायतों के लगभग 32 गांव तथा चौहार घाटी के तीन पंचायतों और बरोट की लगभग 30000 लोग इस पुल से आश्रित रहते थे।
मगर आजतक ऊहल नदी पर इस पुल के न बनने के कारण लोगों को दो से तीन किलोमीटर लंबा सफर तयकर मुल्थान व बरोट पहुंचना पड़ता है। सरकारों व विभाग की अनदेखी के कारणलोगों को प्रतिवर्ष ही नदी पर लकड़ी की काम चलाऊ पुली तैयार कर आवाजाही करनी पड़ती है, जो हर वर्ष बरसात में बह जाता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। अब पुन: आवाजाही के लिए काम चलाऊ लकड़ी की पुली का निर्माण कार्य शूरू कर दिया है। कई बार विधायकों व अधिकारियों से मामला उठाया, लेकिन कोई पहल नहीं हुई। इस बारे में झ¨टगरी में लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता रोशन लाल ने कहा कि मुल्थान-बरोट पुल के पुनर्निर्माण के लिए अभी प्रपोजल तैयार की जा रही है तथा औपचारिक्ताएं पूर्ण होते ही इसका कार्य शूरू कर दिया जाएगा।