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यहां, ब्रह्मा और विष्णु के युद्ध को शांत करवाने के लिए स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे शिव Kangra News

Kathgarh Shiva Temple ब्रह्मा और विष्णु के युद्ध को शांत करवाने के लिए भगवान शिव को महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में दोनों के सामने प्रकट होना पड़ा।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 01:03 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jul 2019 04:00 PM (IST)
यहां, ब्रह्मा और विष्णु के युद्ध को शांत करवाने के लिए स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे शिव Kangra News
यहां, ब्रह्मा और विष्णु के युद्ध को शांत करवाने के लिए स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे शिव Kangra News

कांगड़ा/इंदौरा, जेएनएन। शिव मंदिर काठगढ़ का इतिहास दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार श्रीब्रह्मा तथा श्रीविष्णु के बीच बड़प्पन को लेकर अस्त्रों-शस्त्रों के साथ युद्ध हुआ था। भगवान शिव आकाश मंडल से युद्ध देख रहे थे। दोनों एक-दूसरे के वध की इच्छा से महेश्वर और पाशुपात अस्त्रों का प्रयोग करने में प्रयासरत थे, लेकिन इनके प्रयोग से त्रैलोक्य भस्म हो सकता था। संभावित महाप्रलय को देखकर भगवान शंकर से नहीं रहा गया। युद्ध को शांत करवाने के लिए भगवान शिव को महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में दोनों के सामने प्रकट होना पड़ा। इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है।

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आदिकाल से स्वयंभू प्रकट सात फीट से अधिक ऊंचा, छह फीट तीन इंच की परिधि में भूरे रंग के रेतीले पाषाण रूप में यह शिवलिंग ब्यास दरिया तथा छौंछ खड्ड के संगम स्थान के दाईं ओर टीले पर विराजमान है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है। छोटे भाग को मां पार्वती तथा ऊंचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती और भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है। शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 7-8 फीट तो पार्वती के रूप में आराध्य हिस्सा 5-6 फीट है। यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय तथा काले व भूरे रंग का है। वर्तमान में मंदिर की पूजा का जिम्मा महंत काली दास तथा उनके परिवार के पास है।

पहुंचते हैं देश-विदेश के श्रद्धालु

सावन माह शुरू होते ही मंदिर में श्रद्धालुओं की तादाद बढऩे लगी है। सावन के सोमवार और शिवरात्रि के दिन मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं। सावन माह के हर सोमवार को भंडारे का आयोजन किया जाता है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण मंदिर में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश के अलावा देश-विदेश से भी श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं।

कैसे पहुंचें मंदिर

पंजाब के पठानकोट से सड़क द्वारा बस में वाया इंदौरा होते हुए काठगढ़ मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर है। यहां बस या फिर निजी वाहनों से पहुंचा जा सकता है। पठानकोट-जालंधर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित मीरथल कस्बे से काठगढ़ मंदिर की दूरी महज तीन किलोमीटर है। इस रास्ते से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जसूर कस्बा से मंदिर की दूरी 33 किलोमीटर है।

रोजाना हो रहा महाशिवपुराण

इस बार सावन माह में चार सोमवार होंगे। 16 अगस्त तक रोजाना महाशिवपुराण, रामचरितमानस पाठ और महामृत्युंजय मंत्र का जप प्रतिदिन चलेगा। श्रावण माह के सोमवार को सुबह की आरती तीन बजे होती है और मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए चार बजे खोल दिए जाते हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खानपान और रुकने का प्रबंध भी मंदिर कमेटी की ओर से किया जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर परिसर में 16 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। व्यवस्था को सुचारू ढंग से बनाए रखने के लिए पुलिस कर्मचारी तैनात किए गए हैं। -ओम प्रकाश कटोच, मंदिर कमेटी प्रधान।

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