इन बीजों से उन्नत होगी खेती
specialist produce high breed seeds चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय की ओर से हिमाचल प्रदेश के किसानों के हित में 10 करोड़ रुपये लागत का एक
पालमपुर, जेएनएन। चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय की ओर से प्रदेश के किसानों के हित में 10 करोड़ लागत का एक बीज उत्पादन कार्यक्रम शुरू करने की प्रक्रिया शुरू की है। जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जाईका) की वित्तीय सहायता से हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण योजना के अंतर्गत वित्तीय स्वीकृति अंतिम चरण पर है। योजना को स्वीकृति मिलते ही विश्वविद्यालय में बीज उत्पादन कार्यक्रम को प्रारंभ करने पर कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय की ओर से सब्जियों और अन्य फसलों के बीज उत्पादन के लिए एक परियोजना जाईका को स्वीकृति के लिए भेजी थी। यह परियोजना सैद्धांतिक रूप से स्वीकृत हो चुकी है। परियोजना का क्रियान्वयन जाईका परियोजना चरण दो के प्रारंभ होते ही शुरू हो जाएगा। इस परियोजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय के 70 हेक्टेयर क्षेत्र में बीज उत्पादन प्रक्षेत्र की स्थापना का प्रावधान है। इसमें प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपये के विभिन्न फसलों के 2500 क्विंटल से अधिक न्यूक्लियस, ब्रीडर व फाउंडेशन बीज उत्पादित किए जा सकेंगे।
इस सृजित आय से तीन वर्ष के बाद परियोजना की समाप्ति के बाद भी गतिविधियों को जारी रखने में सहायता मिलेगी। प्रतिवर्ष फसलों एवं किस्मों का चयन मांग के आधार पर ही होगा। कुलपति ने कहा कि भिंडी, मिर्च, बैंगन, शिमला मिर्च, हल्दी, सोयाबीन, राजमाह, कुल्थी, कंगनी चारा घास, मटर, पालक, प्याज, मूली, शलजम, गोभी, चाईना फूलगोभी, ब्रॉकली तथा जई इत्यादि के बीजों का उत्पादन करने के अतिरिक्त समय-समय पर सहभागियों के साथ विचार-विमर्श व उनकी मांग के अनुसार गेहूं आदि फसलों के बीज भी तैयार किए जा सकेंगे।
वर्तमान में विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष 500 से 800 क्विंटल न्यूक्लियस व ब्रीडर बीज की आपूर्ति प्रदेश कृषि विभाग को मांग अनुसार करता है। इसके अतिरिक्त इन फसलों का 600 से 700 क्विंटल फाउंडेशन बीज छोटे स्तर पर कृषि विज्ञान केंद्रों की ओर से भी उत्पादित किया जाता है। प्रदेश में वर्तमान बीज आपूर्ति प्रणाली के अंतर्गत किसानों की मांग पूरी नहीं हो पा रही, इसलिए इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता थी। इसी के मद्देनजर यह परियोजना गेहूं-मक्का-धान त्यादि फसल चक्र से बाहर कृषि विविधिकरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देगी और किसानों की आजीविका साधनों व आय वृद्धि में सहायता करेगी।