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जज्बे को सलाम: चालक बन जिंदगी की गाड़ी दौड़ा रही रेणु

पति की मौत के बाद संभाली ट्रांसपोर्ट कंपनी की जिम्मेदारी, खुद टेंपो चलाकर आने वाले सामान की कर रही आपूति।

By BabitaEdited By: Published: Sat, 06 Oct 2018 09:53 AM (IST)Updated: Sat, 06 Oct 2018 09:53 AM (IST)
जज्बे को सलाम: चालक बन जिंदगी की गाड़ी दौड़ा रही रेणु
जज्बे को सलाम: चालक बन जिंदगी की गाड़ी दौड़ा रही रेणु

हमीरपुर, रणवीर ठाकुर। न तो उसने मोहल्ले के तानों की परवाह की और न ही किसी के विरोध के सामने हथियार डाले। जिंदगी की गाड़ी दौड़ाने के लिए बहादुर महिला ने ऐसा कदम उठाया, जिसके बारे में कोई आम व्यकित सोच भी नहीं सकता। यह कहानी है हमीरपुर की रेणु शर्मा, जो टेंपो चलाकर न केवल परिवार का भरण-पोषण कर रही है बल्कि उस धारणा को भी झुठला रही है कि महिलाएं कमजोर हैं। यह पुरुष प्रधान समाज के लिए एक संदेश भी है कि महिलाएं सिर्फ चूल्हा चौका करने तक ही सीमित नहीं हैं।

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हमीरपुर के तहत दलेहड़ा गांव की रेणु शर्मा के पति संजय शर्मा ट्रांसपोर्ट का कारोबार करते थे। अमृतसर ट्रांसपोर्ट दलेहड़ा (हमीरपुर) के नाम से उनके ट्रक व टेंपो चलते थे। तीन अगस्त, 2010 को अचानक उनका निधन हो गया। उसके बाद बच्चों की जिम्मेदारी रेणु के कंधों पर आ गई। पति की मौत से वह पूरी तरह से टूट गई थी, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी का अहसास भी था। ट्रांसपोर्ट कारोबार का कतई अनुभव नहीं था। ऐसे में वह समझ नहीं पा रही थी कि इस कारोबार को कैसे संभालेगी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। लोगों के ताने भी सहे लेकिन पीछे न हटने की जिद ने राह आसान कर दी।

बकौल रेणु, जब तक पति जीवित थे तो गाड़ियां चलाने के लिए चालक भी आसानी से मिल जाते थे, लेकिन पति के जाने बाद सब कुछ बदल गया। चालक भी इन्हें चलाने से टालमटोल करने लगे। फिर उसने खुद ही

ट्रांसपोर्ट कारोबार को संभालने की ठान ली। उसने धीरे-धीरे टेंपो को आगे-पीछे करना सीखा। 15 दिन बाद वह खुद टेंपो चलाकर दुकानों में सामान पहुंचाने लगीं।

अब वह हमीरपुर के अलावा सुंदरनगर, धर्मशाला, शिमला सहित अन्य जिलों में टेंपो से सामान पहुंचा रही हैं। उनका बड़ा बेटा आर्यन शर्मा मैग्नेट स्कूल हमीरपुर में दसवीं कक्षा में पढ़ता है। छोटा बेटा हर्षिल शर्मा नेहरू मेमोरियल स्कूल हमीरपुर में आठवीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा है। शुरू में जब टेंपो चलाने लगी तो बच्चों की पढ़ाई की चिंता सताती थी। लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो गया। वह दिन में टेंपो चलाती हैं और रात को बच्चों को पढ़ाती है। वह हर दिन ट्रांसपोर्ट में आए सामान को ट्रक से उतारकर टेंपो में लोड करती हैं और दुकानों में ले जाकर उतारती हैं। इसके अलावा कार्यालय का कार्य भी देखती हैं।

रेणु शर्मा कहती हैं उन्होंने कभी गाड़ी नहीं चलाई थी, लेकिन पति की मौत से यह भी करना पड़ा। शुरू में कुछ दिक्कत जरूर हुई लेकिन अब सब कुछ सामान्य हो गया है। परिवार की जिम्मेदारी जब किसी के कंधों पर आती है तो संघर्ष की कहानी भी बन जाती है।

संघर्ष करें, मंजिल मिलेगी

रेणु महिलाओं को बस यही संदेश देना चाहती हैं कि अगर उनमें संघर्ष करने की ताकत हो वे भी पुरुषों की तरह हर कार्य कर सकती है।


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