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पर्यावरण से छेड़छाड़ पड़ सकती है भारी

संवाद सहयोगी, हमीरपुर : जलवायु में आ रहे परिवर्तनों तथा बदलाव को लेकर हमीरपुर में आयोि

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Apr 2018 09:43 PM (IST)Updated: Sun, 08 Apr 2018 09:43 PM (IST)
पर्यावरण से छेड़छाड़ पड़ सकती है भारी
पर्यावरण से छेड़छाड़ पड़ सकती है भारी

संवाद सहयोगी, हमीरपुर : जलवायु में आ रहे परिवर्तनों तथा बदलाव को लेकर हमीरपुर में आयोजित तीन दिवसीय नौवीं राष्ट्रीय युवा विज्ञान सम्मेलन में देशभर के वैज्ञानिक जुटे हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने की विधि की जानकारी दी। वर्तमान में जनसंख्या बढ़ने के साथ प्राकृतिक संसाधनों का अधिक प्रयोग होने से देश व विदेशों के लिए भी ¨चता का विषय बन गया है। देश के वैज्ञानिक शोध के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के साथ हो रहे छेड़छाड़ से सावधान कर रहे हैं ताकि लोगों को मुश्किलों का सामना न करना पड़े। जल संरक्षण को लेकर भी आज के वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती से कम नहीं है।

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प्राकृतिक संसाधनों का अधिक प्रयोग होने के कारण जलवायु पर्यावरण के बदलाव का मुख्य कारण बन रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए युवा वैज्ञानिकों के साथ लोगों को बेहतर भूमिका निभानी होगी। स्वच्छ जलवायु को बचाने में प्राकृतिक संसाधनों का होना अति आवययक है।

-डॉ. कुलदीप सिंह, निदेशक, नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जैनेटिक।

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हिमालयन रिसर्च ग्रुप शिमला में मशरूम उत्पादन तलाशने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने अपने रिसर्च के माध्यम से आज घर घर तक मशरूम की खेती तैयार करने में भी लोगों को इस ओर आगे बढ़ाया है। बर्फीले मौसम में भी मशरूम की खेती तैयार करने में वैज्ञानिक सफल रहे हैं।

-डॉ. लाल ¨सह।

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सुनामी जैसी बड़ी त्रासदी से लोगों को बचाने में वैज्ञानिक खोज कर रहे हैं। जिस तरह भूकंप और मौसम की जानकारी पहले ही सेटेलाइट से मिल जाती है उसी प्रकार अन्य प्रकार त्रासदियों की जानकारी भी लोगों को पहले ही मिले इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए किसी भी प्रकार की त्रासदी से बचाने में लोगों को जागरूकता की जरूरत है।

-डॉ. रवीश सेलवम, संस्थापक, स्वामी नाथन रिसर्च संस्थान।

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किस तरह से जैव विविधता से जलवायु में परिवर्तन लाया जा सकता है। इससे किसानों को भी लाभ होगा और प्राकृतिक संसाधन भी सुरक्षित रहेंगे। जलवायु परिवर्तन से कई पौधों की कई प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं और कई होने के कगार पर हैं। इससे आने वाले समय में मानवता को भारी मूल्य चुकाना होगा।

-डॉ. अशोक कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक।


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