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डॉक्टर साहब! ब्रेकफास्ट में कीड़ा, लंच में क्या?

आम मरीज शिकायत करने से डरता है। उसको लगता है कि वह इलाज करवाए या शिकायत करके बयान दर्ज करवाने में वक्त बर्बाद करे।

By BabitaEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 10:05 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 02:12 PM (IST)
डॉक्टर साहब! ब्रेकफास्ट में कीड़ा, लंच में क्या?
डॉक्टर साहब! ब्रेकफास्ट में कीड़ा, लंच में क्या?

टांडा, जेएनएन। मरीजों की डाइट मनी पर हर माह लाखों खर्च। पर मरीजों को मिल रही कभी बे स्वाद दाल तो कभी बटर-ब्रेड में कीड़ा। अस्पताल प्रबंधन बेपरवाह है और स्टाफ के पास इस ओर ध्यान देने की फुर्सत नहीं है। मामला ध्यान में लाया जाए तो जवाब होता है लिखित में शिकायत दो। आम मरीज शिकायत करने से डरता है। उसको लगता है कि वह इलाज करवाए या शिकायत करके बयान दर्ज करवाने में वक्त बर्बाद करे। वह डरता है कि शिकायत की तो हो सकता है उसका इलाज ढंग से न हो। वार्डों में तैनात स्टाफ मरीज से वैसे ही ढंग से बात तक नहीं करते, उनके पास शिकायत सुनने का वक्त ही कहां है।

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जौंटा (नूरपुर) के व्यक्ति का डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा में ऑपरेशन हुआ है। वह सर्जरी वार्ड में भर्ती है। रविवार सुबह सभी मरीजों को चाय के साथ बटर-ब्रेड दिया गया। उनकी बहन भी थाली में बटर-ब्रेड लेकर आई। जब भाई को खिलाने लगी तो उसमें कीड़ा निकला। उसने इसकी शिकायत वार्ड में तैनात नर्स से की। नर्स का स्पाट जवाब था, मैं क्या करूं मत खाओ। अब मरीज और तीमारदार दोनों मन मसोसकर रह गए। टांडा मेडिकल कॉलेज में मरीजों की ऐसी कई शिकायत आती रहती हैं, लेकिन शिकायत करें तो किससे  पैसे पूरे लिए, टोकन काटा आधे का कैंटीन में भी मरीजों के तीमारदारों से कर्मचारी ढंग से बात नहीं करते हैं। 

तीमारदार को पूरे पैसे देने पर भी चीज नहीं मिलती। कर्मचारी पैसे पूरे लेते हैं और टोकन आधे का काटते हैं। उन्हेंपता तब चलता है जब वे चीज लेने के लिए अगले काउंटर पर पहुंचते हैं। हमीरपुर जिले के पनसाई निवासी मनोज रविवार सुबह अस्पताल की कैंटीन में गए। उन्होंने 20 रुपये दिए व काउंटर पर बैठे कर्मचारी ने 10 रुपये का टोकन दिया। उन्हें पता तब चला जब वह अगले काउंटर पर सामान लेने लगे। उन्होंने कम सामान का कारण पूछा। जवाब मिला आपका टोकन इतने का ही है। वापस पिछले काउंटर पर गए और कर्मचारी को टोकन कम पैसे का देने की बात पूछी। पहले वो माना नहीं, जब गल्ला देखने व सीसीटीवी फुटेज देखने की बात की तो वह मान

गया। ऐसी घटनाएं रोज पता नहीं कितने मरीजों के साथ होती हैं। लेकिन सारे आवाज उठाने वाले नहीं होते। इस संबंध में बात करने के लिए जब चिकित्सा अधीक्षक डॉ. गुरदर्शन गुप्ता से मोबाइल फोन पर संपर्क किया गया तो उन्होंने फोन काट दिया।


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