पपरोला में शिलाओं पर उकेरी मूर्तियां मिली
इसमें एक मूर्ति भगवान श्री गणेश की है। जिस स्थान पर ये मूर्तियां हैं, वहां छोटी-छोटी चट्टानों से बनी कई छोटी शिलाएं एक साथ रखी गई हैं।
धर्मशाला, मुनीष दीक्षित। बैजनाथ उपमंडल के पपरोला के साथ लगते कंडी (मलघोटा) गांव में चट्टानों को काट कर बनाई गई छोटी शिलाओं में उकेरी गई कुछ मूर्तियां मिली हैं। यह स्थान कई दशकों से विरान था तथा यहां झाडिय़ां उगी थीं। गांव के लोगों को यह जगह मंदिर बनाने के लिए गांव के ही कैप्टन जनक आचार्य ने दान में दी थी। इसके बाद यहां रविवार को सफाई कार्य करवाया गया तो झाडिय़ों के नीचे कुछ चट्टानों के अलग-अलग हिस्से मिले। इसमें यह मूर्तियां उकेरी गई थीं।
इसमें एक मूर्ति भगवान श्री गणेश की है। जिस स्थान पर ये मूर्तियां हैं, वहां छोटी-छोटी चट्टानों से बनी कई छोटी शिलाएं एक साथ रखी गई हैं। ऐसे में इस हिस्से में मौजूद अन्य शिलाओं में भी ऐसी मूर्तियां हो सकती हैं। कुछ साल पहले मिला था पत्थर का स्तंभ जिस स्थान पर यह मूर्तियां मिली हैं उस स्थान से ही महज पांच मीटर की दूरी पर कई साल पहले एक ही पत्थर से तराशा गया एक विशाल स्तंभ भी मिला था। इसे उस समय लोगों ने उठाकर पपरोला-उत्तराला सड़क के किनारे स्थापित किया था। यह स्तंभ बैजनाथ मंदिर में लगे स्तंभों से मेल खाता है, ऐसे में लोग इसकी कई साल से पूजा भी करते हैं। बैजनाथ मंदिर से हो सकता है संबंध इन मूर्तियां का संबंध बैजनाथ शिव मंदिर से हो सकता है।
बैजनाथ मंदिर इस स्थान से एक किलोमीटर की सीधी दूरी पर है। इस सारे स्थान में मूर्तियां उकेरने के लिए अच्छी शिलाएं मौजूद हैं। कुछ दशक पहले इसी गांव के पास द्रुग नाला में भी कुछ मूर्तियां थीं, लेकिन उस समय यहां पत्थर निकालने के कार्य के कारण उन्हें नष्ट कर दिया गया था। ऐसे में इस स्थान में जिस ढंग से चट्टानों के छोटे-छोटे हिस्से रखे गए हैं और कुछ हिस्सों में मूर्तियां बनी हैं उससे ऐसा लग रहा है कि बैजनाथ मंदिर के निर्माण के समय यहां भी कुछ कार्य हुआ हो। यहीं से यह मूर्तियां व अन्य सामान बैजनाथ मंदिर ले जाया गया हो सकता है। ऐसे में अगर इस स्थान की तह तक जाएं तो कई और मूर्तियां भी मिल सकती हैं।
उत्कृष्ट कला का उदाहरण है बैजनाथ मंदिर बैजनाथ शिव मंदिर का निर्माण 1204 ई. में दो व्यापारी भाइयों अहुक और मन्युक ने करवाया था। जबकि यहां स्थापित शिवलिंग उससे भी पुराना है। अत्यंत आकर्षक संरचना और निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप के इस मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश एक ड्योढी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है तथा उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं। मंडप के अग्र भाग में चार स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है, जिसके सामने ही पत्थर के छोटे मंदिर के नीचे खड़े हुए विशाल नंदी बैल की मूर्ति है।
पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण व उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियां हैं। बहुत सारे चित्र दीवारों में नक्काशी करके बनाए गए हैं। बरामदे का बाहरी द्वार और गर्भगृह को जाता अंदरूनी द्वार अत्यंत सुंदरता और महत्व को दर्शाते अनगिनत चित्रों से भरा पड़ा है। यहां एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया नंदी बैल भी आकर्षक का केंद्र है।
इस स्थान पर कई साल से कोई नहीं गया था। यह विरानी जगह थी। गांव के ही एक व्यक्ति ने इस भूमि को मंदिर के लिए दान दिया, जब इसे साफ किया जा रहा था तो यह चट्टानें दिखीं। इस हिस्से को पूरा साफ किया जाए तो कुछ भी रहस्यों से भी पर्दा हट सकता है।
-शक्ति चंद राणा, अध्यक्ष अर्पण सेवा समिति, कंडी।
मौके का दौरा तथा इन मूर्तियों को देखने के बाद ही पता चल सकता है कि यह कितनी पुरानी हैं। इसका संबंध बैजनाथ मंदिर से है या नहीं, पता लगाया जाएगा।
दिनेश कुमार, कनिष्ठ संरक्षण सहायक, पुरातत्व विभाग कांगड़ा।