धौलाधार में बर्फानी तेंदुए की आहट!
धौलाधार की पहाडिय़ों में इन दुर्लभ प्रजाति की मौजूदगी की बात से वन्य प्राणी विभाग उत्साहित भी है और इस काम करने के लिए तैयार हो रहा है।
धर्मशाला, मुनीष गारिया। जिला चंबा के कालाटॉप और कुगती में बर्फानी तेंदुए की मौजूदगी के साथ ही धौलाधार पर्वत शृंखला के इंद्रहार दर्रे के साथ लगती पहाडिय़ों में भी इसकी आहट पाई गई है। हालांकि धौलाधार पर्वत शृंखला की पहाडिय़ों में इस प्रजाति को लेकर अभी तक कोई शोध नहीं हुआ है और न ही वन विभाग या इसकेवन्य प्राणी विंग के पास कोई पुष्टि हुई है।
विभाग को भेड़पालकों से इस प्रजाति की मौजूदगी की सूचना मिली है। धौलाधार की पहाडिय़ों में इन दुर्लभ प्रजाति की मौजूदगी की बात से वन्य प्राणी विभाग उत्साहित भी है और इस काम करने के लिए तैयार हो रहा है। भरमौर से आए भेड़पालक शाम लाल ने बताया कि वह नवंबर में जब इंद्रहार की पहाडिय़ों के पीछे से आ रहा था तो उस दौरान पहाड़ी के पीछे पड़ते क्षेत्र नाग डल के पास पहाड़ी में बर्फानी तेंदुआ देखा था। यह पहली बार नहीं हुआ है जब पहाड़ी पर इसे देखा गया है। यही नहीं यह जानवर भेड़ बकरियों को भी बड़े स्तर पर नुकसान करता है। भरमौर के ऊपरी जंगलों में बर्फानी तेंदुए की मौजूदगी दर्ज की गई थी और इसे लेकर वन्य प्राणी संस्थान की टीम शोध कर रही है। इसके अलावा वन्य प्राणी विभाग की टीम एवं विशेषज्ञ इस पर शोध कर रहे हैं।
घाई रीछ के नाम से जानते हैं भेड़पालक
लुप्त होती जा रही प्रजाति को वन्य प्राणी विभाग ने संरक्षित प्रजाति घोषित कर दिया है और इसके संरक्षण के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। भेड़पालकबर्फानी तेंदुए को घाई रीछ के नाम से जानते हैं और इसे सामान्य रीछ से कई गुना ज्यादा खतरनाक भी मानते हैं। यह एक ही बार में भेड़ कम से कम पांच-छह बकरियों को उठाकर ले जाता है।
यूं होती है मौजूदगी की पुष्टि
वन्य प्राणी विभाग के विशेषज्ञ बताए गए स्थान का निरीक्षण करते हैं और उसके बाद उक्त क्षेत्रों में ट्रैप कैमरे लगाए जाते हैं। सेंसरयुक्त ये कैमरे सामने ही गुजरने वाले हर किसी की फोटो खींचते हैं। यह कैमरे ऐसे स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां जरूरत से च्यादा लोगों का आना-जाना न हो। सामान्य तौर पर इन कैमरे में बैटरी एक माह तक चलती है और लगातार गतिविधि होने रहने के कारण यह 15 दिन में ही समाप्त हो जाती है।