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Himachal Panchayat Election 2021: लगता है गांव गांव में होंगी तरक्कियां, पंचायतों के हाथ जवां हो गए हैं अब

Himachal Panchayat Election 2021 हिमाचल में नगर निगम के लिए चुनाव होने हैं। पंजाब में भी स्थानीय निकाय चुनाव जारी हैं दलीय दावे अपनी जगह लेकिन वय और शिक्षा के संदर्भ में वहां के मतदाताओं की मुहर भी देखने योग्य होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 18 Feb 2021 10:55 AM (IST)Updated: Thu, 18 Feb 2021 10:55 AM (IST)
Himachal Panchayat Election 2021: लगता है गांव गांव में होंगी तरक्कियां, पंचायतों के हाथ जवां हो गए हैं अब
विश्वास है कि सभी युवा प्रतिनिधि मतदाताओं की इस उम्मीद का ध्यान अवश्य रखेंगे

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। Himachal Panchayat Election 2021 अवसर और परिस्थितियां साल दर साल बदल रही हैं, पर एक बात जो नहीं बदलती, वह है युवाओं से अपेक्षाएं..उनसे उम्मीदें। युवाओं की भुजाओं और उनके जोश ने हमेशा से एक उम्मीद जगाई है। हिमाचल प्रदेश में संपन्न पंचायती राज चुनाव के परिणाम भी युवाओं से अपेक्षाओं के दस्तावेज बन रहे हैं। यही संदेश नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव परिणाम दे रहे हैं। अब प्रधान की छवि टोपी वाले किसी अधेड़ या वृद्ध की नहीं है। महामारी की छाया में संपन्न हुए चुनाव युवाओं पर भरोसे का परिणाम लेकर आए हैं। 

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बहरहाल हिमाचल प्रदेश में 21 से 40 वर्ष के बीच के 72.2 फीसद लोग पंचायती राज संस्थाओं के लिए चुन कर आए हैं। जाहिर है, कुछ प्रधान हैं, कुछ उपप्रधान और बाकी हैं। 41 से 50 वर्ष आयु वर्ग के 19 प्रतिशत लोग चुने गए हैं। उधर शहरी निकायों में 41 फीसद लोग ऐसे चुने गए हैं, जो 21 से 40 वर्ष के बीच हैं। महिलाओं के लिए पचास फीसद आरक्षण होने के बावजूद 53 प्रतिशत को चुना गया है। दोनों तरफ 60 वर्ष से ऊपर के लोग डेढ़ प्रतिशत के आसपास हैं। एक पक्ष अवश्य बहुत हौसला बढ़ाने वाला नहीं है..वह यह है कि पंचायती राज संस्थाओं में करीब 71 प्रतिशत लोग ऐसे चुने गए हैं, जो दसवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त हैं अथवा दसवीं कक्षा से कम स्तर तक पढ़े हैं। स्नातक अथवा स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त करने वाले केवल 11 प्रतिशत हैं। शहरी निकायों में स्नातक या स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त किए हुए प्रतिनिधि अवश्य ही 30 प्रतिशत हैं।

बात जरूरी हो तो दोहराना आवश्यक हो जाता है। प्रश्न यह है कि चुने हुए प्रतिनिधियों का वय अथवा शैक्षणिक स्तर जो भी हो, अब उन्हें यह दायित्व संभालना है। स्थानीय निकाय वह कड़ी है, जो प्रभावी तौर पर कार्य करें तो जनमंच अथवा प्रशासन जनता के द्वार पर जैसे कार्यक्रमों की आवश्यकता या तो कम हो जाएगी या फिर समस्याओं की गुणवत्ता में सुधार आएगा। आधारभूत समस्याओं से आगे निकलेगी बात। नागरिकों के काम समय से हों, बिना राग, भय या द्वेष के हों तो गरीबी रेखा से ऊपर या नीचे सब पात्र दिखेंगे। मोहल्लों या घरों तक पुलिस तब ही आती है जब प्रधान निष्प्रभावी हों या ग्राम सभा से कटे हों। विश्वास है कि सभी युवा प्रतिनिधि मतदाताओं की इस उम्मीद का ध्यान अवश्य रखेंगे :

लगता है गांव गांव में होंगी तरक्कियां

पंचायतों के हाथ जवां हो गए हैं अब

राजनीति के असली सुजान : यह विमर्श बेशक फुरसत का हो कि नाम में क्या रखा है या नाम का प्रभाव क्या होता है, लेकिन पूर्व मंत्री और फतेहपुर के विधायक सुजान सिंह पठानिया न केवल नाम के ही सुजान थे, बल्कि समाज और राजनीति के भी असली सुजान थे। बीते सप्ताह उनका लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया। लंबा कद और गालों तक बढ़ी हुई मूंछें पता तो किसी पहलवान का देती थीं, लेकिन मिलने पर एक बेहद शालीन, समझदार और संवेदनशील, पर साफ बात कहने वाला व्यक्ति मिलता था। साफगोई भी रखना और सात बार विधायक रहना उस मिथक को नकारता है कि राजनीति में तो कोरे दिलासे देने वाले ही सफल होते हैं। उन्होंने राजनीति की शुरुआत 1977 में जनता पार्टी से की। 1980 में कांग्रेस में शामिल हो गए और अंत तक कांग्रेस में ही रहे। तीन बार मंत्री भी रहे। उनका देहांत कांगड़ा के किले में वीरभद्र सिंह के एक भरोसेमंद स्तंभ का गिरना है।

गुलेर के राजा के दामाद पठानिया वन विभाग में रेंजर की नौकरी छोड़ राजनीति में आए थे। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के सदस्य तरुण श्रीधर उन्हें इस तरह याद करते हैं, ‘वह मंत्री के रूप में कितने प्रभावी थे, यह देखना जनता का काम है, लेकिन अधिकारियों के लिए आदर्श थे, क्योंकि उनका अपना एजेंडा कोई नहीं होता था और दूसरा यह कि उनके शालीन लहजे पर कोई पार नहीं पा सकता था।’ दलीय सीमाओं से पार उनके प्रभाव का अंदाजा इसी से होता है कि उनके खिलाफ आठ चुनाव लड़ चुके पूर्व सांसद राजन सुशांत उनके गांव के चौक पर सुजान सिंह पठानिया की प्रतिमा लगाने की बात कर रहे हैं। उन्होंने मांग यह भी रखी है कि बहुतकनीकी संस्थान का नामकरण भी सुजान सिंह के नाम पर किया जाए।

यह स्वीकार्यता कैसे आती है? हिमाचल में जब तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के लिए साक्षात्कार समाप्त कर देने का विषय आया तो कई मंत्री विरोध करने लगे, क्योंकि लिखित परीक्षा से ही निर्णय होना था। दूसरे शब्दों में भर्ती में मंत्रियों की पसंद-नापसंद का कोई मतलब नहीं था। सुजान सिंह ने दो वरिष्ठ मंत्रियों को साफ कहा, ‘अगर आप साक्षात्कार समाप्त करने का विरोध कर रहे हैं तो साफ है कि आपके अपने हित रगड़ खा रहे हैं..यह ठीक बात नहीं, पारदर्शिता का स्वागत करो भाई।’ उनकी स्मृति को नमन।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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