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कृषि अनुसंधान केंद्र की तकनीक बनी प्रेरणा

कांगड़ा के डूंगा बाजार में स्थित शिवालिक कृषि अनुसंधान एवं प्रसार कें

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Apr 2021 07:51 PM (IST)Updated: Sun, 11 Apr 2021 07:51 PM (IST)
कृषि अनुसंधान केंद्र की तकनीक बनी प्रेरणा
कृषि अनुसंधान केंद्र की तकनीक बनी प्रेरणा

बिमल बस्सी, कांगड़ा

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कांगड़ा के डूंगा बाजार में स्थित शिवालिक कृषि अनुसंधान एवं प्रसार केंद्र में अपनाई गई वर्षा जल संग्रहण की तकनीक क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी है। इस अनुसंधान केंद्र में करीब 20 वर्ष पूर्व बारिश के पानी के संग्रहण की तकनीक अपनाई गई। कार्यालय की छत से बहने वाले पानी को सहेजने के लिए 35 फीट लंबा, 15 फीट चौड़ा और 4.5 फीट गहरा तालाब बनाया गया है। इसमें भवन की छत से डाली गई पाइप की मदद से 50 हजार लीटर से अधिक पानी एकत्रित हो जाता है। इस पानी का उपयोग अनुसंधान केंद्र की करीब 45 कनाल भूमि की सिंचाई के लिए किया जाता है।

कांगड़ा का यह अनुसंधान केंद्र सरसों और मक्की फसल की उन्नत तकनीक विकसित करने के शोध कार्यो के लिए जाना जाता है। केंद्र में धान व गेहूं के उच्च किस्म के बीज भी तैयार किए जाते हैं। बारिश का पानी सहेजने के लिए बनाए तालाब से हर खेत के लिए अलग से पाइप बिछाई गई है। खेत में तैयार फसल की जरूरत के अनुसार पानी का उपयोग सिंचाई कार्यो के लिए किया जाता है। हालांकि वर्षा जल के अलावा स्वचलित हैंडपंप का भी प्रयोग किया जाता है। बेशक इस केंद्र में बीजों पर शोध कार्य किए जाते हैं लेकिन वर्षा जल संग्रहण के लिए विभाग ने सैकड़ों किसानों को जागरूक कर इसके लिए प्रेरित किया है। विभाग के अनुसार वर्षा जल संग्रहण के लिए बने तालाब को देखने के बाद अनेक लोगों ने इस तकनीक को अपनाकर कृषि पैदावार बढ़ाई है।

कांगड़ा में साल भर में औसतन 1849 मिलीमीटर बारिश दर्ज की जाती रही है। पर्यावरण प्रदूषण की वजह से बारिश कम होने से अब औसत बारिश घटकर 1600 मिलीमीटर रह गई है। इससे भूमिगत जलस्त्रोतों का स्तर भी कम होने लगा है। इस कारण वर्षा जल संग्रहण का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। ------------

वर्षा जल संग्रहण तकनीक ऊंचाई वाले स्थानों पर रहने वाले किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है। घरों अथवा खेतों में टैंक का निर्माण करके वर्षा जल को सहेज कर इसे दैनिक एवं सिचाई कार्यो में उपयोग किया जा सकता है। अनुसंधान केंद्र को भी इस तकनीक का लाभ प्राप्त हो रहा है।

-डा. भूपिद्र सिंह मनकोटिया, वैज्ञानिक प्रभारी, शिवालिक कृषि अनुसंधान एवं प्रसार केंद्र।


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