जानिये आखिर कैसी दी जाये कैंसर को मात
वह संस्था के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई व उनके उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत हैं। इसके अलावा वह अपने स्तर पर कैंसर के मरीजों के लिए भी कार्य कर रही है।
धर्मशाला, मुनीष दीक्षित। कैंसर को अपने हौंसले के बल पर हराने वाली धर्मशाला के सकोह की राधा कथवाल कैंसर मरीजों को जीना सिखा रही हैं। राधा मरीजों से बातचीत कर उन्हें बीमारी से लडऩे की हिम्मत दे रही हैं। साथ ही इलाज की अच्छी राह भी दिखा रही हैं। जागोरी, उत्थान, प्रिया जैसी एनजीओ में कार्य करने के बाद राधा इस समय बच्चों के लिए कार्य कर रही श्रम संस्था से जुड़ी हुई हैं। वह संस्था के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई व उनके उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत हैं। इसके अलावा वह अपने स्तर पर कैंसर के मरीजों के लिए भी कार्य कर रही है।
थर्ड स्टेज के कैंसर को दी मात
राधा कथवाल जब 34 वर्ष की थी, तो उन्हें पता चला कि वह ब्रेस्ट कैंसर की चपेट में आ गई हैं। कैंसर थर्ड स्टेज में पहुंच चुका था। उनके पति प्रदीप सिंह आर्मी में थे। उन्होंने आर्मी अस्पताल, पीजीआइ चंडीगढ़ व दिल्ली के कई अस्पतालों में उपचार करवाया। लेकिन हर जगह निराशा मिली। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद राजस्थान के बीकानेर में सरदार पटेल अस्पताल पहुंची, जहां उनका आपरेशन हुआ। वह करीब दो साल बाद स्वस्थ हुईं। हालांकि अब भी उन्हें खाने की नली में कुछ दिक्कत है, लेकिन इसकी परवाह किए अपना काम कर रही हैं।
बुजुर्गो को दिया अक्षर ज्ञान
राधा शादी से पहले अपने मायके गुलेर में कई बुजुर्ग लोगों को पढ़ा चुकी हैं। राधा का कहना है कि जब वह दसवीं की पढ़ाई कर रही थी, तो गांव के कई अनपढ़ बुजुर्ग लोगों को शिक्षा देती थी। उनकी पढ़ाई जमा दो तक हुई है और अब वह अपनी उम्र की परवाह किए बिना स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। राधा का एक बेटा होम्योपैथी में चिकित्सक, दूसरा कंप्यूटर इंजीनियर तथा तीसरा इंडियन नेवी में सेवाएं दे रहा है।
जब मुझे कैंसर की जानकारी मिली, तो कुछ उम्मीद टूटी। मेरे तीन लड़के हैं। उस समय वे तीनों छोटे थे। ऐसे में मैंने खुद को संभाला और कैंसर से जंग लडऩे को तैयार हुई। मुझे कई अस्पतालों में निराशा हाथ लगी। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। उसी हिम्मत का नतीजा है कि मैं अब कैंसर से जूझ रहे लोगों के लिए अपने स्तर पर कार्य कर रही हूं। ऐसे रोगियों को वो ही हिम्मत दे सकता है, जो खुद इससे जूझा हो। कई लोगों के साथ मैं खुद अस्पताल भी गई हूं। इस बीमारी में अगर जीने की ललक हो, तो जीवन की राह मुश्किल नहीं है।
-राधा कथवाल, निवासी निचला सकोह, धर्मशाला।
यह भी पढ़ें: किसानों के लिए नासूर बन चुके लावारिस पशु अब बनेंगे रोजगार का जरिया