panchakarma therapy: छोड़ी थी जीने की आस तो पंचकर्म ने दिया साथ
panchakarma therapy. हादसे में हाथ-पैरों ने छोड़ दिया था काम करना, न्यूरोसर्जन ने दी थी सर्जरी की सलाह, अपने दम पर पंचकर्म से हुए ठीक।
मुकेश मेहरा, पालमपुर लोगों को जिदंगी देने वाले डॉक्टर को भी बीमारी ने ऐसे घेर रखा था कि हाथ-पैर काम नहीं कर रहे थे। लेकिन खुद आयुर्वेदिक डॉक्टर होने की वजह से पंचकर्म का सहारा लिया और मौत की राह पर चल रही जिंदगी को फिर से जीने का सहारा मिल गया। महाराष्ट्र के अन्ना साहब ढांगे आयुर्वेद कॉलेज सांगली के निदेशक डॉ. सत्येंद्र नारायण ओझा कहते हैं कि '13 जुलाई 2013 को हुए एक सड़क हादसे ने मुझे मौत के करीब पहुंचा दिया था, हाथ-पैरों ने काम करना बंद कर दिया था। न्यूरोसर्जन ने भी मुझे सर्जरी की सलाह दी थी, लेकिन उसके ठीक होने की संभावना पर संदेह था।
खुद आयुर्वेदिक डॉक्टर होने के कारण मैंने पंचकर्म का सहारा लिया और आज बिल्कुल ठीक हूं।' डॉ. ओझा ने यह अनुभव पालमपुर स्थित विवेकानंद मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के कायाकल्प संस्थान में साझा किए। वह यहां मस्कुलर डिसऑर्डर पर आयोजित कार्यशाला में भाग लेने आए हैं। बकौल डॉ. ओझा हादसे के बाद न्यूरोजर्सन ने मुझे सर्जरी करने की सलाह दी, जब मैंने पूछा कि आयुर्वेदिक थैरेपी कर सकता हूं, तो उन्होंने कहा कि उसमें कोई दिक्कत नहीं है। ऐसे में मैंने सर्जरी के बजाय पंचकर्म शुरू किया।
हादसे के सातवें दिन ही अभयंग, स्वेदन और बस्ती को करना आरंभ किया। जिस अस्पताल में मैं था, वहीं पर मेरे विद्यार्थी मालिश और अन्य विधियां करते थे। मेरे जिन पैरों व हाथों ने काम करना बंद कर दिया था, उनमें हरकत शुरू हो गई और एक माह में मैंने वॉकर के सहारे चलना शुरू कर दिया। 12-12 घंटे तक मैं पंचकर्म करता और इसी का नतीजा रहा कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद मैंने बिना किसी सर्जरी से रिकवरी शुरू कर दी। घर आने पर मैंने अपने कामों पर किसी के सहारे रहने के बजाय खुद करना आरंभ किया। हादसे के तीसरे महीने मैंने कॉलेज में पढ़ाना शुरू दिया। जिन डॉक्टर ने मुझे ऑपरेशन की सलाह दी थी, वह भी मुझे देख हैरान थे।
बकौल डॉ. ओझा, हम जो भी हरकत करते हैं, उससे हमारे अंगों को गति मिलती है। पंचकर्म और आयुर्वेद हमारे पूर्वजों की दी हुई ऐसी विधाएं हैं, जिनके प्रयोग से हम रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पंचकर्म वक्त मांगता है, वहीं आज के दौर में कुछ स्थानों पर पंचकर्म की फीस इतनी बढ़ा दी गई है कि आम इंसान चाहकर भी इसका लाभ नहीं ले पाता।
मेरी उम्र अभी पांच साल चार महीने है बकौल डॉ. ओझा, हादसे के बाद मैंने शून्य से अपना जीवन जीना शुरू किया था। पंचकर्म की बदौलत आज मेरी उम्र पांच साल चार महीने है। जब हम जन्म लेते हैं तो हमारी देखरेख मां करती हैं, लेकिन मैने पंचकर्म की मदद से खुद की मां बनकर अपनी जीवन को जी रहा हूं। घर का हर काम स्वयं करता हूं।
यह भी जानें अभयंग अभयंग महारी मांसपेशियों के लिए होता है। इस दौरान मांसपेशियों की मालिश करना। इससे हड्डियों को भी मजबूती मिलती है। स्वेदन इस विधि में शरीर से पसीना निकाला जाता है। चाहे इसके लिए आप एक्सरसाइज करें या अन्य कोई भी कार्य। शरीर में पसीना आना चाहिए। बस्ती एनिमा में आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। यह मांसपेशियों के सिस्टम को ठीक करता है। आयुर्वेद में कई व्याधियों के लिए बस्ती जरूर करवाई जाती है।