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किसानों की आत्महत्या पर शांता तल्ख

सांसद ने सीधी आय सहायता किसानों को देने और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किसान हित में खाद्य निगम कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया है।

By Edited By: Published: Wed, 06 Jun 2018 08:43 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jun 2018 11:37 AM (IST)
किसानों की आत्महत्या पर शांता तल्ख
किसानों की आत्महत्या पर शांता तल्ख

धर्मशाला, जेएनएन। नीतियों, मुद्दों व भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा आवाज बुलंद करने वाले सांसद शांता कुमार ने एक बार फिर से तल्खी जाहिर की है। केंद्र सरकार की ओर से किसान हित में सिफारिशों को लागू न करने पर उन्होंने अपना दुख किसानों की ओर से की जा रही आत्महत्या पर साझा किया है। साथ ही खाद्य आपूर्ति निगम को भ्रष्टाचार का अड्डा बताकर कहीं न कहीं अपनी ही सरकार पर निशाना भी साधा है।

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सांसद ने सीधी आय सहायता किसानों को देने और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किसान हित में खाद्य निगम कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया है। भले ही संसद सदस्य ने सीधे रूप से केंद्र सरकार को इसके लिए जिम्मेदार तो नहीं ठहराया लेकिन टीस तो मन में रही कि किसानों की सहायता के लिए विस्तृत रिपोर्ट जो उनकी अध्यक्षता में गठित खाद्य निगम कमेटी ने प्रधानमंत्री को वर्ष 2015 में सौंपी थी, उसे अभी तक लागू नहीं किया है।

धर्मशाला में बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में शांता कुमार ने कहा कि देश में किसानों को सीधी आय सहायता दी जानी जरूरी है। बकौल शांता कुमार, उनकी अध्यक्षता में खाद्य निगम कमेटी का गठन किया था और इसमें कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी भी सदस्य थे। कहा कि यदि खाद्यान्न वितरण व्यवस्था में उपभोक्ता को सीधे खाते में धन उपलब्ध करवा दिया जाए तो शत प्रतिशत उसे इसका लाभ मिलेगा। दो टूक कहा कि वर्तमान व्यवस्था में 25 से 30 फीसद तक भ्रष्टाचार होता है और अगर सीधे धन खाते में जाएगा तो सरकार को लगभग 30 हजार करोड़ की बचत होगी।

संसद सदस्य ने कहा, सरकार खाद पर 70 हजार करोड़ का अनुदान देती है लेकिन अफसोस इस बात का है कि इसका लाभ किसानों को नहीं बल्कि कंपनियों को होता है। शांता कुमार के निशाने पर देश का खाद्य आपूर्ति निगम भी रहा और कहा कि निगम में मजदूरों की फ्रॉड हाजिरी लगाकर लाखों की कमाई हो रही है। अफसोस इस बात को लेकर भी रहा कि अगर उनकी रिपोर्ट में सुझाई गई सिफारिशों को लागू किया होता तो भ्रष्टाचार भी पूरी तरह से खत्म होता और किसान को भी लाभ मिलता। भले ही शांता ने सीधे रूप से हमला तो नहीं बोला लेकिन किसान हित की पैरवी में देरी पर कहीं न कहीं प्रश्नचिह्न केंद्र सरकार पर लगाया है।


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