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मोदी बोले थे, अटल जी के मुंह से नहीं सुननी मौत की बात

सुदर्शन वशिष्ठ अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान की सूचना एक आघात से कम नहीं। स्मृतियां सजल ह

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 01:05 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 01:05 AM (IST)
मोदी बोले थे, अटल जी के मुंह से नहीं सुननी मौत की बात
मोदी बोले थे, अटल जी के मुंह से नहीं सुननी मौत की बात

सुदर्शन वशिष्ठ

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अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान की सूचना एक आघात से कम नहीं। स्मृतियां सजल हो उठी हैं। एक मौका मनाली के एक कवि सम्मेलन का था जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहते हुए आए। उसी सम्मेलन में अटल बिहारी वाजपेयी ने मौत पर एक कविता पढ़ी।

इस समारोह में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उपस्थित थे। अटल जी की इस कविता को सुन मोदी एकदम से उठकर मंच पर आ गए और ओजभरा और भावपूर्ण भाषण दिया। नरेंद्र मोदी ने कहा यह कविता अटल जी ने अस्पताल में लिखी थी, जब दूसरे ही दिन इनका मेजर ऑपरेशन होना था। इस कविता को उन्होंने 'धर्मयुग' में भी पढ़ा था। उन्होंने कहा इस कविता ने उन्हें बहुत रुलाया और वे व्यथा से दो दिन रोते रहे। अटल जी के मुंह से मौत की बात अच्छी नहीं लगती।

नरेंद्र मोदी ने नचिकेता का स्मरण करवाया जो मौत के सामने आ खड़ा हुआ। उन्होंने बुद्ध, आदिशकर, दधीचि, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, राणा सांगा, महाराणा प्रताप, शिवाजी, लक्ष्मीबाई से नेल्सन मंडेला तक के उदाहरण देते हुए कि आप मौत का स्मरण क्यों करें। इसके बाद मोदी ने गुजराती में एक कविता भी सुनाई।

यह कविता थी, उस सम्मेलन की अंतिम कविता, जिसे अटल जी ने यह कहते हुए सुनाया कि 'एक बार मैं बहुत बीमार हो गया था, तब एक कविता लिखी थी : 'मौत से ठन गई'

'जूझने का मेरा तो इरादा न था

मोड़ पर मिलेगी, इसका वादा न था

रास्ता रोककर वो खड़ी हो गई

यह लगा जिंदगी से बड़ी हो गई

मौत की उम्र क्या दो पल भी नहीं

जिंदगी सिलसिला आजकल का नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं

लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं

'मौत की उम्र क्या दो पल भी नहीं', इस किताब में 'दो पल' के बजाय 'एक पल' छप गया था। जिस पर वे हंस कर बोले, प्रकाशक ने दो पल का एक पल कर दिया, शुक्र हुआ तीन पल नहीं कर दिया।

प्रदेश के भाषा-संस्कृति विभाग में सेवारत रहते हुए खाकसार को तीन बार उनको समर्पित कवि सम्मेलन के संचालन का अवसर प्राप्त हुआ। तीनों ही बार यह कवि सम्मेलन मनाली में हुए, दो बार पर्वतारोहण खेल संस्थान में और तीसरी बार सेना के सभागार में। ऐसा बहुत कम होता है कि देश के प्रधानमंत्री के साथ इतना समय और इतनी बार सान्निध्य मिले।

अटल जी का घर मनाली के प्रीणी गाव में है, जहा वे प्राय: अवकाश पाते ही आते थे। उनके आगमन के दौरान हिमाचल सरकार की ओर से कवि सम्मेलन किया जाना तय होता था जिसकी स्वीकृति वे सहर्ष देते थे। नग्गर की रौरिक आर्ट गैलरी के लिए उन्होंने उस समय एक करोड़ का अनुदान भारत सरकार से दिलाया।

छह जून 2000 को पर्वतारोहण संस्थान में हुआ वह यादगार सम्मेलन। सम्मेलन में अटलजी ने जो कविताएं सुनाई, वे संयोग से काल या मुत्यु पर थीं। यह कवि सम्मेलन तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के निर्देशन में हुआ था, जिसमें तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकात शास्त्री भी मौजूद रहे थे। विष्णुकात स्वयं कवि व विद्वान साहित्यकार थे।

सम्मेलन में प्रदेश के कवियों के कविता पाठ को अटल जी ने बड़े धैर्य से सुना। उन्होंने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। पूरा समय बैठे रहे। ऐसा तीनों ही सम्मेलनों में हुआ।

अपने काव्य पाठ से पहले उन्होंने यह उदार रखे :

'राजनीति और कविता साथ-साथ नहीं चल सकते। राजनीति में आने से विघ्न पैदा हो गया। ...बरसात में यह भी सुनना पड़ता है कि सरकार कुछ नहीं कर रही है। शिकायत उचित भी हो सकती है, उचित नहीं भी हो सकती। लेकिन कविता के लिए माहौल बिगाड़ देती है। देखिए सात-आठ दिन से मनाली में हूं। पहले मनाली आकर कुछ कविताएं लिख चुका हूं। लेकिन इस बार कविताएं लिखना संभव नहीं हुआ। लंका में क्या हो रहा है, इसकी चिंता है। हमारे मित्र जो हरियाणा से गए हैं और फिजी में बसे हैं, उन पर क्या गुजर रही है, यह बात मन को कचोटती है।'

कविता पाठ का प्रारंभ उन्होंने 'ऊंचाई' कविता से किया जो कई साल पहले मनाली के सर्किट हाउस में लिखी थी। यह कविता अटल जी की बहुत ही प्रसिद्ध कविताओं में है।

'ऊंचे पहाड़ पर पेड़ नहीं लगते

पौधे नहीं उगते, न घास जमती है

जमती है सिर्फ बर्फ

जो कफन की तरह सफेद और मौत की तरह ठंडी होती है।

...जो जितना ऊंचा, उतना ही एकाकी होता है

हर भार को वह स्वयं ही ढोता है

चेहरे पर मुस्कान चिपका, मन नहीं मन रोता है।

इसी कविता की ये प्रसिद्ध पंक्तिया हैं

'धरती को बौनों की नहीं, ऊंचे कद के इंसानों की जरूरत है

किंतु इतने ऊंचे भी नहीं कि

पाव तले दूब ही न जमे

कोई काटा न चुभे, कोई कली न खिले।

मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना

गैरों को गले न लगा सकूं

इतनी रुखाई कभी मत देना।' कवि हृदय भारत रत्न अटल जी, सौम्य सौहार्द की प्रतिमूर्ति, ऐसा सादगीपूर्ण किंतु विराट व्यक्तित्व सदियों बाद पैदा होता है। एक प्रभावशाली, उदारवादी और सर्वमान्य नेता के रूप में प्रतिष्ठापित अटल जी गजब का आकर्षण लिए हुए थे। एक लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को शीर्ष पर ला खड़ा किया और देश के प्रधानमंत्री का पद दो बार ग्रहण किया। वे पहले गैरकाग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 1998 से 2004 तक पूरे पाच वर्ष यह पद संभाला। वह बेशक शरीर छोड़ गए हैं, लेकिन रहेंगे हम सबके बीच। (लेखक हिमाचल प्रदेश कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सचिव रहे हैं।)


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