करियर की राह में बाधक नही हैं कम अंक
हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने परीक्षा में कम अंक लेने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बेहतर करियर बनाया
शिमला, रविंद्र शर्मा। जिंदगी में अंक ही सब कुछ नहीं होते। कम अंक का मतलब यह नहीं है कि भविष्य सुनहरा नहीं होगा। वार्षिक परीक्षाओं में अकसर कम अंक लेने वाले भी करियर में दूसरों के मुकाबले उन्नीस नहीं बल्कि इक्कीस साबित होते हैं। बच्चा कोई परीक्षा पास करता है और उसके अंक दूसरों से कम आते हैं तो कई माता-पिता उसके करियर की चिंता करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि उनका बच्चा कहीं दूसरों के मुकाबले पिछड़ न जाए मगर ऐसा नहीं है। हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने परीक्षा में कम अंक लेने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बेहतर करियर बनाया। ऐसे लोगों ने साबित किया कि सफलता की राह में अंक बाधा नहीं बन सकते हैं। उन्होंने कम अंकों की चिंता छोड़कर लक्ष्य हासिल किया है।
जज्बे के आगे सब कुछ फीका : डॉ. चमन
शिमला जिला के गांव भज्याड़ (धामी) के रहने वाले डॉ. चमन शर्मा को भी बोर्ड परीक्षा में कम अंक मिले। भले ही वह मेरिट सूची में शामिल नहीं हो पाए मगर उन्होंने पीएचडी की। वह राजकीय महाविद्यालय सोलन में प्रोफेसर हैं। डॉ. चमन ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1988 में डॉ. वाई एस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विवि नौणी में क्लर्क की नौकरी की। करियर को और बेहतर बनाने के लिए जज्बे के आगे सब कुछ फीका पड़ गया। वर्ष 1991-93 के बीच सोलन महाविद्यालय के सांध्यकालीन महाविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी की। नौकरी छोड़कर कुरूक्षेत्र विवि से ललित कला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई स्वर्ण पदक के साथ पूरी की। वर्ष 2006 में राजकीय कन्या महाविद्यालय शिमला में बतौर सहायक प्राध्यापक, चित्रकला चयन हुआ। वर्ष 2010 में हिमाचल प्रदेश विवि से ललित कला में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
डॉ. अशोक ने निरंतर मेहनत से छुआ आसमान
सोलन जिला के म्याणा के ठेठ गांव निवासी डॉ. अशोक गौतम राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) सोलन में सह आचार्य हैं। उनका स्कूली दौर कुछ कम अंकों के खेल से गुजरा है। सीनियर सेकेंडरी स्कूल म्याणा में पढ़ाई में वह अच्छे तो थे लेकिन बोर्ड परीक्षा में कम अंक आए। इसके बावजूद आगे की पढ़ाई के लिए हिम्मत जुटाई और सफल हुए। डॉ. अशोक ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1979 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के पत्राचार निदेशालय में दाखिला लेकर बीए की। इसके बाद वन विभाग में नौकरी पर लग गए लेकिन पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने वर्ष 1984 में एम ए हिंदी प्रथम श्रेणी में पास की। वर्ष 1986 में एमफिल भी प्रथम श्रेणी पास कर वर्ष 1990 में हिमाचल प्रदेश विवि से पीएचडी पूरी की। निरंतर मेहनत से उन्होंने अहम मुकाम हासिल किया। अब वह प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड की कक्षा तीन, चार व पांच की पाठ्य पुस्तकों का सिलेबस तैयार करते हैं।