बिना दर्द करवाएं फोर्टिस में घुटने का रिप्लेसमेंट
घुटनों के दर्द से परेशान लोगों के लिए फोर्टिस अस्पताल कांगड़ा नई तकनीक लेकर आया है जो पूरी तरह से दर्दरहित है।
कांगड़ा, जेएनएन। फोर्टिस अस्पताल कांगड़ा घुटनों के दर्द से पीड़ित मरीजों के लिए नई तकनीक लेकर आया है। इस तकनीक से घुटने की रिप्लेसमेंट न केवल सुरक्षित है, बल्कि सर्जरी के नतीजे भी भरोसेमंद हैं। तकनीक ब्लडलैस है, यानी मरीज को खून चढ़ाने की जरूरत नहीं होती, न ही दर्द की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। सर्जरी के कुछ घंटे बाद ही मरीज घुटनों को मोड़ सकता है, जबकि अगले दिन सीढि़यों को चढ़ने व उतरने के लिए सक्षम हो जाता है। सर्जरी के तीन दिन बाद मरीज को डिस्चार्ज कर दिया जाता है।
तकनीक के तहत मरीज प्रोमिला व कृष्ण कानूनगो की सर्जरी की गई। दोनों मरीजों के दोनों खराब घुटनों को रिप्लेस किया गया, जिसके लिए छोटा सा चीरा लगाया गया। जिस दौरान मरीज की कोई भी नस नहीं काटी गई और खून का रिसाव भी बहुत कम हुआ। मरीज को खून चढ़ाने की भी जरूरत नहीं पड़ी। सर्जरी के विशेषज्ञ डॉ. पीवी कैले ने बताया कि तकनीक से सर्जरी देश के गिने-चुने शहरों में ही होती है। सर्जरी पूरी तरह से जोखिम रहित है और इसके नतीजे बहुत प्रभावी हैं। तकनीक से घुटना रिप्लेसमेंट करवाने वाले मरीज को अस्पताल में महज तीन दिन, जबकि हिप रिप्लेसमेंट के लिए दो दिन ही अस्पताल में रहने की जरूरत होती है। जिन मरीजों का आधा घुटना खराब है, उनके लिए पार्शियल नी रिप्लेसमेंट बेहतर विकल्प हो सकता है। इस विधि से भी नतीजे बहुत कारगर रहते हैं। इस अवसर पर फोर्टिस कांगड़ा के डायरेक्टर गुरमीत ¨सह, हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ सौरभ ¨सह, डॉ दीपक मुखीजा भी उपस्थित थे।
सर्जरी के बाद दौड़ने लगी है ¨जदगी मिनिमली एन्वेसिव तकनीक से सर्जरी करवाने वाली सुंदरनगर की मरीज प्रोमिला देवी ने कहा कि यकीन नहीं था कि बीस सालों का दर्द इतनी आसानी से चला जाएगा। बीस साल से घुटनों के दर्द ने ¨जदगी को खड़ा कर दिया था। चलना-फिरना तो मुश्किल था ही, साथ ही रात को सोने में भी भारी परेशानी होती थी। पिछले तीन सालों से ¨जदगी दर्द से जकड़ी हुई थी, लेकिन सर्जरी करवाने के कुछ घंटे बाद ही उन्हें विश्वास हो गया था, कि अब दु:ख के दिन गुजर गए। उन्होंने कहा की सर्जरी के चैबीस घंटे के दौरान ही उन्होंने चलना-फिरना शुरू कर दिया था। उन्हें चलने के लिए किसी भी सहारे की जरूरत नहीं पड़ी। सर्जरी के अगले ही दिन उन्होंने से सीढि़यां भी चढ़नी उतरनी शुरू कर दीं। नगरोटा बगवां से मरीज कृष्ण कानूनगो ने भी इसी तरह के अनुभव सांझा किए।