माननीय खुद पर भी लागू करें एनपीएस
जनमंच आजादी के 71 साल बाद भी क्या हर आम व्यक्ति आर्थिक व सामाजिक रूप में सशक्त हो पाया है। यह ए
जनमंच
आजादी के 71 साल बाद भी क्या हर आम व्यक्ति आर्थिक व सामाजिक रूप में सशक्त हो पाया है। यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हर आने वाली पीढ़ी पूछ रही है। लगता नहीं कि भारत लोकतांत्रिक प्रणाली का अनुसरण कर रहा है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने देश में भेदभाव करने वाली नीतियां अपनाई हैं, उनसे लगता नहीं कि हमारा देश विकसित हो पाएगा। सत्ता में पारियों में आने वाले दल सिर्फ वोट बैंक की राजनीति तक सीमित हैं। अंग्रेजों का पता था कि वे हमें लूटने आए थे। लेकिन अब तो अपने लोग लूट रहे हैं। पाच साल सत्ता सुख भोगने वाले नेता आम लोगों को सिर्फ एक मोहरा समझ कर करोड़ों की संपत्ति कमाकर आजीवन लाखों रुपये की पेंशन के हकदार बन जाते हैं। लोकतंत्र की दुहाई देने वाले सत्ताधारी दलों के नेता यह नहीं समझते कि आमजन कितने दु:खी हैं। आज एक किसान से लेकर कर्मचारी तक हर व्यक्ति पीड़ित है। 2003 के बाद तैनात कर्मचारियों की पेंशन जो उनके बुढ़ापे का सहारा थी, में बदलाव कर दिया गया। कर्मचारियों की नियुक्तिया ठेके पर शुरू कर दी गई। नीरव मोदी जैसे लोग करोड़ों रुपये का घोटाला कर देश छोड़कर भाग जाते हैं। लेकिन देश का एक आम व्यक्ति सिर्फ इसलिए आत्महत्या करता है क्योंकि उसने सिर्फ 50 हजार रुपये कर्ज लिया होता है। किसी कारणवश वह उस कर्ज को चुका नहीं पाता है। दु:खद स्थिति तब आती है जब सरकारें आम आदमी की चिंता छोड़कर सिर्फ पूंजीपतियों की चिंता करती हैं क्योंकि आज कर्मचारियों का जो पैसा न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) के तहत शेयर मार्केट में लगाया जा रहा है, वो सिर्फ पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए है। सरकार द्वारा एनपीएस में अपना शेयर 14 फीसद करना भी पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाना मात्र है। इस शेयर का एक एनपीएस कर्मचारी से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि सेवानिवृत्त कर्मी को सरकार द्वारा देय 10 फीसद छोड़ बाकी हिस्सा कभी नहीं मिलता है। पति व पत्नी की मृत्यु के बाद यह जमा पैसा सरकारी खजाने में वापस जमा हो जाता है। यदि सभी सरकारें एनपीएस को कर्मचारी हितैषी बताती हैं तो इसका अनुसरण अपने ऊपर लागू क्यों नहीं किया। कर्मचारी देश को विकसित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। सरकार का फर्ज है कि सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए वही पेंशन दी जाए जो माननीय खुद लेते हैं।
-प्रवीण शर्मा, पालमपुर।