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लोग हैं कि मानते ही नहीं

कांगड़ा जिला में कंकरीट का जंगल बढ़ रहा है, 1905 में आए भूकंप

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Apr 2018 04:59 AM (IST)Updated: Wed, 04 Apr 2018 04:59 AM (IST)
लोग हैं कि मानते ही नहीं
लोग हैं कि मानते ही नहीं

नीरज व्यास, कांगड़ा

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कांगड़ा जिला में कंकरीट का जंगल बढ़ रहा है, 1905 में आए भूकंप से कोई भी सबक नहीं लिया है। अब आबादी भी ज्यादा है, इमारतें व भवन भी। अगर भविष्य में यह त्रासदी दोहराती है तो नुकसान कहीं ज्यादा होगा। आपदा से निपटने के लिए प्रशासन सिर्फ मॉकड्रिल तक सीमित है, परंतु इसमें भी कई खामियां रह जाती हैं। आपदा के समय कोई संकेत लोगों तक पहुंचाने के लिए कांगड़ा में सायरन बजाने के लिए सिस्टम तक स्थापित नहीं हो सका है।

कांगड़ा में चार अप्रैल 1904 को आए 7.8 तीव्रता के भूकंप ने सब कुछ तहस नहस कर दिया था। उस समय इस बड़ी भूकंप त्रासदी में 19 हजार लोग, 38 हजार पशुओं की मौत हुई थी। इनमें से सबसे ज्यादा मरने वाले लोगों की संख्या 10,257 कांगड़ा नगर की थी। आज इस त्रासदी को 113 साल पूरे हो रहे हैं। इस भूकंप का केंद्र¨बदु नगरोटा बगवां के पास पठियार में धरती के 3.9 किलोमीटर नीचे था।

113 साल पहले आए भूकंप से आज भी किसी ने कोई भी सबक नहीं लिया है। हालांकि भूगर्भ शास्त्री समय-समय पर यही सचेत करते हैं कि 1905 के मुकाबले अब आबादी भी अधिक है और अगर इन दिनों भूकंप आया तो इसका नुकसान भी ज्यादा ही होगा। इसलिए लोगों को अपने घर मजबूत व भूकंप रोधी तकनीक के आधार पर बनाने चाहिए लेकिन ज्यादातर घर लोगों ने मनमर्जी से बनाए हैं। इसमें भूकंप रोधी तकनीक का कोई भी ध्यान नहीं रखा गया है। भूकंप त्रासदी को याद करके एक दिन जरूर लोग इस बारे में सोचते हैं, लेकिन बाद में इसकी गंभीरता को भुला देते हैं।

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भूकंप नहीं बेतरतीब निर्माण लीलता है जिंदगियां

जोन पांच में होने के कारण कांगड़ा जिला में खतरा काफी है। यह देश का सबसे संवेदनशील क्षेत्र है। यह भी सच है कि भूकंप नहीं बल्कि बेतरतीब निर्माण जिंदगियां लील लेता है। बड़े भूकंप के आने की आंशका है, लेकिन उसके लिए तैयारी शून्य के बराबर ही हैं। न तो बेतरतीब निर्माण पर रोक लगी है और न ही कोई नीतिगत फैसला लिया जा सका है। नगर नियोजन कानून पंगु बने हैं। बेतरतीब निर्माण जारी है, जिससे खतरा बढ़ रहा है।

-प्रो. सुनील धर भूगर्भशास्त्री।


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