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Coronavirus News: कोरोना मरीजों को हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल का स्पर्श

Coronavirus News सत्र में बहिर्गमन और हंगामे में काम आने वाला समय कोरोना से भिड़ने में लगाया जाए। उसी धन का प्रयोग स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए हो। पक्ष और प्रतिपक्ष अपनी गैर जरूरी बैठकें रोक सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 03 Dec 2020 01:34 PM (IST)Updated: Thu, 03 Dec 2020 01:34 PM (IST)
Coronavirus News: कोरोना मरीजों को हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल का स्पर्श
बहरहाल, प्रार्थना है कि डॉ. सैजल का उत्साह बना रहे, जज्बा कायम रहे।

धर्मशाला, नवनीत शर्मा। महत्वपूर्ण होते हैं प्रतीक। समाज, राजनीति, संस्कृति ही नहीं, आपसी संवाद में भी। संकेत या प्रतीक जब शीर्ष पर बैठे ओहदेदार से आएं तो उनका अर्थ व्यापक हो जाता है। हिमाचल प्रदेश ने हाल में कोरोना मामलों में उछाल देखा है। सरकार ने समाज के कई वर्गो से राय भी ली। इस बीच, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल एक दिन प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पहुंचे। पीले रंग की पीपीई किट पहनी, फिर कोविड वार्ड का निरीक्षण किया। कई छवियां दिखीं। हर कोरोना मरीज के कृतज्ञता में जुड़े हुए हाथ कुछ कह रहे थे। पक्ष या विपक्ष कुछ भी कहें, यह प्रतीक या संकेत सार्थक रहा। जाहिर है, मंत्री के आने से पहले सारी व्यवस्थाएं कुछ और बेहतर हुई होंगी, चिकित्सक तैनात मिले होंगे, स्वच्छता का मानक मुस्कुराया होगा.. लेकिन सच यह भी है कि मरीजों का हौसला बढ़ा होगा, उन्हें हिम्मत मिली होगी।

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दरअसल कोरोना जब छुआछूत का प्रतीक बन जाए, संक्रमित होना जब अपराध की श्रेणी में आने लगे, तब इस तरह का प्रतीक अनिवार्य था। भले ही देर से हुआ, लेकिन अनिवार्य था। इसलिए भी, क्योंकि वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह और एक अन्य मंत्री राम लाल मारकंडा अस्पतालों के अनुभवजन्य किस्से सार्वजनिक कर चुके थे। यह समय प्रतीकों और संकेतों के सम्मान और उनसे आगे निकलने का भी है। कोई भी राजनीति, कोई भी विचार, कोई भी मत बौना ही रहेगा अगर उसमें संक्रमण से बचने और स्वास्थ्य सेवाओं को पुख्ता करने की चिंता न हो। सरकार के लिए भी कोरोना संक्रमण कोई पहेली नहीं रहा है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल, उद्योग मंत्री बिक्रम ठाकुर और वन मंत्री राकेश पठानिया के अलावा संभवत: सब इसकी मार ङोल चुके हैं। विपक्ष में भी कई लोग हैं जो संक्रमित हो चुके हैं। बेशक विरोधी डॉ. सैजल के अस्पताल दौरे को नियोजित बताएं, लेकिन इस दौरे के लिए साहस की आवश्यकता थी। यह अस्पताल का दौरा कम, मरीजों के मनोविज्ञान का दौरा अधिक था, सत्य के करीब पहुंचने की यात्र थी।

कोरोना संक्रमण की मार ङोल रहे हिमाचल में बड़ा प्रश्न यह था कि प्रदेश की अघोषित दूसरी राजधानी धर्मशाला में दिसंबर के पहले सप्ताह के लिए तय किए गए शीतकालीन सत्र को रद किया जाए या नहीं। सरकार ने सभी दलों से बात की और फैसला किया कि शीतकालीन सत्र को रद किया जाए, क्योंकि पिछले सत्र के बाद अभी छह माह नहीं हुए हैं। सत्र टाला जा सकता है। लोगों को अपने कार्यक्रम करने हैं तो संख्या 50 से अधिक न हो और एसडीएम अनुमति दे। यह प्रतीक अब व्यवहार में भी लाए जाएं तो प्रतीकों की यात्र परिणति तक पहुंचेगी। प्रतीक अथवा संकेत अगर अपना चोला नहीं बदलेंगे तो पुराने पड़ जाएंगे।

मंत्रियों को तैनात किया गया है कि वे दिए गए क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं जांचें और मरीजों के साथ बातचीत करें। इस दृष्टि से वन मंत्री राकेश पठानिया ने हमीरपुर अस्पताल में 20 सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दे दिया है ताकि गतिविधियां जानी-जांची जा सकें। संक्रमण से उबरे विधानसभा अध्यक्ष अपने गृह जिला कांगड़ा का प्रभार संभालेंगे। महामारी तो महामारी है, लेकिन आस के इकलौते केंद्र अस्पताल हैं। वहां किसी सांसद या जिले के प्रथम नागरिक को ही समय पर दवा न मिले तो इसे गंभीरता के साथ देखा जाना चाहिए। इसलिए डॉ. सैजल का दौरा आवश्यक कदम प्रतीत होता है।

अब विषय शीतकालीन सत्र का। कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता वीरभद्र सिंह ने सत्र को टालने या शिमला में ही करवाने की सलाह दी थी, भाजपा के शांता कुमार ने कहा था, शीतकालीन सत्र रहने दें। विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री इसे सरकार का बचने का बहाना बता रहे हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि यह महामारी में राजनीति है। मुख्यमंत्री हैरान हैं कि नेता प्रतिपक्ष ऐसी बात भी कह सकते हैं। बहरहाल यह भी विपक्ष के प्रतीक निभाने की परंपरा है, लेकिन अब प्रतीकों से आगे जाने का समय है। विपक्ष को जो पूछना है, पूछे। उचित होता कि उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों के साथ शिमला में बुधवार को हुई महत्वपूर्ण बैठक भी आभासी माध्यम से होती।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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