होशियार ने केंद्र के पाले में डाला पौंग विस्थापितों का मुद्दा
वर्षो से लंबित पौंग बांध विस्थापितों के मुद्दे को देहरा हलके के विधायक होशियार सिंह ने केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है
जागरण संवाददाता, धर्मशाला : वर्षो से लंबित पौंग बांध विस्थापितों के मुद्दे को देहरा हलके के निर्दलीय विधायक होशियार ¨सह ने अब केंद्र सरकार के पाले में डाला है। दशकों से लंबित इस मामले की पैरवी करते हुए विधायक ने कई बार आवाज उठाई जो अब केंद्र के कान तक भी जा पहुंची है। विधायक ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी को विस्थापितों का दर्द बताया तो मंत्री ने भी यह माना कि अगर राजस्थान में भूमि नहीं मिलती है तो वहां की सरकार उन्हें मुआवजा दे।
हालांकि हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद अनुराग ठाकुर ने भी लोकसभा में शून्यकाल के दौरान पौंग बांध विस्थापितों के मुद्दे को उठाया था। ठंडे पड़ चुके इस मुद्दे को लेकर अब राजनीति भी चरम पर पहुंचने लगी है, क्योंकि लोकसभा चुनाव भी नजदीक हैं और अनुराग के साथ होशियार ¨सह का यह गृह क्षेत्र भी है। इसके अलावा विधायक ने गुलेर रियासत की धरोहरों के संरक्षण का मामला केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा से उठाया है। उनसे क्षेत्र का दौरा करके इस पौराणिक धरोहर को सहेजने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया गया है। वहीं कांगड़ा घाटी में टॉय ट्रेन को लेकर लोगों को हो रही परेशानियों का मामला केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल से उठाया गया। इस मार्ग पर लुदरेट से रानीताल तक ओवरब्रिज या अंडरब्रिज बनाने की मांग की गई है।
केंद्रीय मंत्रियों से पौंग बांध विस्थापितों सहित क्षेत्र के अन्य मामलों को उठाया गया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यह माना है कि अगर राजस्थान सरकार पौंग विस्थापितों को जमीन नहीं दे सकती है तो मुआवजा दे। वहीं धरोहर गांव हरिपुर के उत्थान और टॉय ट्रेन के बारे में भी केंद्रीय मंत्रियों से आग्रह किया गया है। उम्मीद है कि केंद्र सरकार इन मामलों पर गंभीरता दिखाते हुए हल अवश्य निकालेगी।
होशियार ¨सह, विधायक, देहरा। कब क्या हुआ
-1961 में पौंग बांध का निर्माण कार्य शुरू हुआ।
-1973 में बांध बनकर तैयार हुआ।
-20 जुलाई, 1973 को जलभराव शुरू।
-20 हजार, 722 पौंग बांध विस्थापित परिवार
-16 हजार, 352 चिह्नित परिवार, जिन्हें मुरब्बा मिलना था।
-15 हजार 124 पात्र थे।
-1979 में 9196 लोगों को मुरब्बे अलॉट हुए।
-1992 में 2100 मुरब्बे हुए खारिज। -केस चलने के बाद 1996 में 1188 मुरब्बों का फैसला आया, लेकिन अभी तक नहीं मिल पाए हैं।