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Coronavirus से भिड़ना है, कोरोना संक्रमित इंसान को अपराधी समझना सही नहीं

Coronavirus News Update जब सभी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियां पूरी तरह से शुरू हो चुकी हों तो ऐसे में किसी कोरोना संक्रमित इंसान को अपराधी समझना सही नहीं। अपराधी कोरोना वायरस को समझ अभियान उसके विरुद्ध चलाना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 09:29 AM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 09:29 AM (IST)
Coronavirus से भिड़ना है, कोरोना संक्रमित इंसान को अपराधी समझना सही नहीं
पर यह भी ध्यान रखना है कि भिड़ना अपराध के साथ है, अपराधी के साथ नहीं।

धर्मशाला, नवनीत शर्मा। कोरोना के मामलों में उछाल के बीच हिमाचल प्रदेश में स्कूल पुन: बंद कर दिए गए हैं। आकलन बड़े स्तर पर किया गया और वक्त रहते फैसला लिया गया। 25 नवंबर तक विशेष अवकाश रहेगा। शायद मामले कम हो जाएं। कोरोना ने सब कुछ अप्रत्याशित कर दिया है। और यह आपदा कठिनाइयां या अवसर ही नहीं, कई नए शब्द भी लाया। आइसोलेशन, क्वारंटाइन, पॉजिटिव, नेगेटिव आदि के साथ ही एसओपी भी। यानी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर, ऐसी प्रक्रिया जिसका पालन किसी विशेष परिस्थिति में करना ही होता है। मानक कार्यव्यवहार भी कह लें। इन सबसे आगे कुछ और शब्द मिले। ये वे शब्द हैं जिन्हें हर नौकरशाह अपने सरकारी आदेश की चिट्ठी में वेयरएज के बाद इस्तेमाल करता है। आइ..अमुक.. आइएएस!!!

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आइ यानी मैं। मैं यानी मैं ही मैं हूं.. दूसरा कोई नहीं और वह परीक्षा जिसे उत्तीर्ण करना हर किसी के वश में नहीं।

मंडी जिले के सरकाघाट में दो सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं के प्रधानाचार्यो से पूछा गया है कि आपके स्कूल में कोरोना पॉजिटिव मामले बहुत आए हैं। लिखा है, हो सकता है कि एसओपी का पालन न हुआ हो, इसलिए उपायुक्त मंडी के आदेशानुसार आप अपनी स्थिति एक दिन में स्पष्ट करें कि मामले क्यों आए। पत्र के अंत में एसडीएम सरकाघाट बकलम खुद की भूमिका में हैं और जांच अधिकारी भी।

किसी पाठशाला में मामले अधिक आने पर अगर स्पष्टीकरण लेना है, तो वह सभी हलकों में, हर जिम्मेदार आदमी से लिया जाए। यह प्रशासनिक भाषा अत्यंत विशेष होने के भाव से भरी हुई है। साहब अगर चाहते तो साधारण पत्र लिखवा सकते थे कि यह सरोकार का विषय है कि आपके स्कूल में मामले आए हैं, क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा किन हालात में हुआ होगा। एक दल भेज कर जांच करवा लेते। अंत में जांच अधिकारी द्वारा यह लिखे जाने से ही मामले का पटाक्षेप हो जाता है कि प्रधानाचार्यो से कोई सार्वजनिक अपराध हुआ है, जिसकी जांच की जा रही है।

कोरोना से हुए कई नुकसानों में से एक मनोवैज्ञानिक नुकसान भी है। पॉजिटिव आने वालों को अपराधी समझा गया। यह बाजू पर चोर लिखने जैसा है। महामारी अधिनियम की बेरहमी देखिए कि शुरुआती दौर में दो साल की बच्ची के पिता पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया, क्योंकि वह कहीं बाहर से अपने घर आया था। अब क्या कोरोना का खतरा टल गया है कि सामाजिक कार्यक्रमों को अनुमति दे दी गई है? क्या हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक कार्यक्रमों में एसओपी का पालन हो रहा है? क्या अपने प्रिय नेताओं की झलक पाने को बेताब, हाथ में हार लेकर खड़े हुए लोग एसओपी का पालन कर रहे होते हैं? रैलियों में एक दूसरे के बराबर नारेबाजी करते लोगों को दो गज दूरी का पता नहीं है? क्या उस समय प्रशासन को वेयरएज आइ.. की भाषा भूल जाती है? यह भरोसा किया जाना चाहिए कि मंडी जिले के करसोग एसडीएम कार्यालय से भी वेयरएज आइ की भाषा में यह अवश्य पूछा गया होगा कि वहां 10 लोग कैसे संक्रमित हो गए, अपनी स्थिति एक दिन में स्पष्ट करें। हिमाचल के पहले पहल के कोरोना विजेताओं में से एक शाहपुर की महिला से संवाद याद है अब तक। उनका कहना था, कोरोना से इतना कष्ट नहीं हुआ जितना लोगों के कटाक्षों से।

स्कूलों में विद्यार्थी आ ही रहे थे, लेकिन अभिभावकों का सहमति पत्र लेकर। अध्यापक आ रहे थे, क्योंकि उनकी नौकरी है। कोई क्यों चाहेगा कि किसी की संस्था संक्रमित हो जाए? अगर कहीं एसओपी का पालन नहीं हो रहा है तो निरीक्षण का दायित्व किसे संभालना है? निरीक्षण के लिए नियुक्त उप निदेशकों और प्रधानाचार्यो का आखिर काम क्या है? कोरोना न मंत्रिपद पहचानता है और न किसी अफसर का काडर या बैच। शक्ति मिलने पर उसके प्रयोग में जो सहनशक्ति अपेक्षित होती है, वह नदारद हुई तो मानवीय पक्ष छूट जाएगा। यह मनोविज्ञान पुराना है, पर अब भी है कि किसी दीन हीन को पकड़ लो, उस पर पूरा रुआब छांट दो। आखिर क्यों जनमंच में साहब का गुस्सा ङोलता आदमी निम्न मध्य स्तर का अधिकारी ही होता है?

नौकरशाही आम बात नहीं है। सब पढ़ कर, प्रतियोगी परीक्षा में शीर्ष पर रह कर आते हैं। एक अकेले आदमी का आई क्यू 120 भी हो सकता है और उससे ऊपर भी। लेकिन जब अफसरों की टीम सामूहिकता में कार्य करती है तो क्यों यह बेहद नीचे प्रतीत होता है। हिमाचल प्रदेश में कई अच्छे उदाहरण भी हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार ने कुछ सोच कर ही स्कूलों को विशेष अवकाश देने की घोषणा की है। संदेह नहीं कि उत्सवी वातावरण में बढ़ी चहल पहल और कोरोना के बढ़ते मामलों में कोई न कोई संबंध तो है।

इधर, अध्यापकों को भी अपने स्तर पर एसओपी के पालन का राजदूत बनना होगा। स्कूलों के स्टाफ रूम में भीड़ जुटाने का मोह छोड़ कर खुले में आना होगा। पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था बदलनी होगी। कोरोना अब तक लाइलाज है, परंतु जीवन के क्रियाकलाप भी जारी रखने होंगे.. इसलिए परहेज जरूरी हैं, लापरवाही इसे बढ़ा सकती है.. 

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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