बिना पैडल सड़क पर दौड़ेगी साइकिल
थ्रॉटलिंग यंत्र से साइकिल की गति पर नियंत्रण किया जाता है। साथ ही सोलर पैनल के माध्यम से साइकिल में लगाई गई बैटरी को आसानी से चार्ज किया जा सकेगा
सुंदरनगर, रजनीश हिमालयन। राजकीय बहुतकनीकी संस्थान हमीरपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के प्रशिक्षुओं ने बैटरी संचालित इलेक्ट्रिक साइकिल तैयार की है। यह बिना पैडल चलाए 18 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दौड़ेगी। यह प्रदूषण मुक्त होने से पर्यावरण को बचाने में भी मददगार साबित होगी। बैटरी को एक बार चार्ज कर 30 किलोमीटर तक सफर किया जा सकेगा।
थ्रॉटलिंग यंत्र से साइकिल की गति पर नियंत्रण किया जाता है। साथ ही सोलर पैनल के माध्यम से साइकिल में लगाई गई बैटरी को आसानी से चार्ज किया जा सकेगा। अन्य साइकिल बाजार में 40 से 50 हजार रुपये से अधिक में मिलती है, जबकि राजकीय बहुतकनीकी हमीरपुर के प्रशिक्षुओं द्वारा तैयार की गई ई-साइकिल 13 से 14 हजार रुपये में उपलब्ध होगी। अगर पुरानी साइकिल को मोडिफाइड कर ई-साइकिल का रूप देना होगा तो यह नौ से दस हजार रुपये की लागत से तैयार हो जाएगी। इसे साधारण साइकिल की तरह पैडल से भी चलाया जा सकता है।
इन प्रशिक्षुओं ने इजाद की तकनीक
मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रशिक्षु प्रत्युष शर्मा, उत्कर्ष धीमान, सुशांत ठाकुर, प्रज्वल शर्मा, सौरभ, रोबिन नेगी की टीम ने ई-साइकिल तैयार करने के लिए दो बैटरी, एक मोटर, साइकिल, थ्रॉटलिंग यंत्र और एक बैटरी चार्जर का इस्तेमाल किया है। इसमें 24 वोल्ट और 250 वॉट डीसी मोटर का और 12 वोल्ट और 17एएच बैटरी लगाई गई हैं।हिमाचल के साथ-साथ देश के बाकी हिस्सों में इस प्रोजेक्ट पर काम करने की आपार संभावनाएं हैं। भीड़ वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोग जहां बड़े वाहन को रखना कठिन और बोझिल है। अगर इस प्रोजेक्ट को तहसील और पंचायत स्तर पर लांच किया जाए, तो युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
-प्रत्युष शर्मा, प्रशिक्षु, मैकेनिकल इंजीनियरिंग बहुतकनीकी संस्थान हमीरपुर।
पेट्रोल की समस्या और पार्किंग की दिक्कत से निजात दिलाने के लिए संस्थान के मैकेनिकल इंजीनिर्यंरग के प्रशिक्षुओं ने ई-साइकिल तैयार कर एक बेहतर विकल्प लोगों के लाया है।
-ओएस सेन, प्रधानाचार्य, राजकीय बहुतकनीकी संस्थान, हमीरपुर।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रशिक्षुओं ने बैटरी से चलने वाली ई-साइकिल तैयार की है। इसे चलाने के लिए शारीरिक मेहनत की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह पर्यावरण संरक्षण में मददगार साबित होगी।
-अरविंद्र कटोच, वरिष्ठ प्रवक्ता, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, बहुतकनीकी संस्थान, हमीरपुर