हमेशा अच्छी संगति का करें अनुसरण
संस्कारशाला मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में ही जन्म लेता है पनपता और अंत तक उसमे
संस्कारशाला
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में ही जन्म लेता है, पनपता और अंत तक उसमें ही रहता है। स्वजनों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों तथा अपने कार्यक्षेत्र में वह विभिन्न प्रकार के स्वभाव वाले लोगों के संपर्क में आता है। निरंतर संपर्क के कारण एक-दूसरे के विचारों और व्यवहार का असर पड़ना स्वाभाविक है। बुरे लोगों के संपर्क में आने से हम पर बुरे संस्कार पड़ते हैं और अच्छे आदमियों की संगत से अच्छे गुणों का समावेश होता है। सत्संगति का अर्थ है अच्छे लोगों की संगति व गुणी जनों का साथ। अच्छे मनुष्य का अर्थ है कि वे व्यक्ति जिनका आचरण अच्छा है, जो सदा श्रेष्ठ गुणों को धारण करते और अपने संपर्क में आने वालों के प्रति अच्छा बर्ताव करते हैं। जो सत्य का पालन करते हैं, परोपकारी हैं, अच्छे चरित्र के गुण उनमें विद्यमान होते हैं। ऐसे लोगों के साथ रहना, उनकी बातें सुनना, उनकी पुस्तकों को पढ़ना, ऐसे व्यक्तियों की जीवनी पढ़ना और उनकी अच्छाइयों की चर्चा करना सत्संगति के ही तहत आते हैं। सत्संगति के परिणामस्वरूप मनुष्य का मन सदा प्रसन्न रहता है। मन में आनंद की लहरें उठती रहती हैं। जिस प्रकार किसी वाटिका में खिला हुआ सुगंधित पुष्प सारे वातावरण को महका देता है, उसके अस्तित्व से अनजान व्यक्ति भी उसके पास से निकलते हुए सुगंध से प्रसन्न हो उठता है, उसी प्रकार अच्छी संगति में रहकर मनुष्य सदा प्रफुल्लित रहता है। सत्संगति का महत्व विभिन्न देशों और भाषाओं के विचारकों ने अपने-अपने ढंग से बताया है। सत्संगति से पापी और बुरे स्वभाव का व्यक्ति भी धीरे-धीरे धार्मिक और सज्जन प्रवृत्ति का बन जाता है। लाख उपदेशों और हजारों पुस्तकों का अध्ययन करने पर भी मनुष्य का दुष्ट स्वभाव इतनी सरलता से नहीं बदल सकता, जितना किसी अच्छे मनुष्य की संगति से बदल सकता है। संगति करने वाले व्यक्ति का सद्गुण उसी प्रकार सिमट-सिमटकर भरने लगता है जैसे वर्षा का पानी तालाब में भरने लगता है। अच्छे आचरण वाले व्यक्ति के संपर्क से उसके साथ के लोगों का चारित्रिक विकास उसी प्रकार होने लगता है जिस प्रकार सूर्योदय से कमल अपने आप विकसित होने लगते हैं। हिदी में एक कहावत है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इस कहावत में मनुष्य की संगति के प्रभाव का उल्लेख किया गया है। विश्व की सभी जातियों में ऐसे कईउदाहरण मिल जाते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि संत-महात्माओं और सज्जनों की संगति से एक नहीं अनेक दुष्टजन सज्जन बने हैं। पवित्र आचरण वाले व्यक्ति विश्व में सराहना के योग्य हैं। संगति से ही विश्व में अच्छाइया सुरक्षित रहती हैं। ये सब बातें हमारे संस्कारों में भी हैं। विद्यार्थी ही नहीं बल्कि युवा पीढ़ी भी संस्कारों की ओर ध्यान दे। समाज भी इस ओर ध्यान दे कि हम किस दिशा में जा रहे हैं।
-सिमरनजीत कौर, प्रधानाचार्य, स्प्रिंग डेल कान्वेंट स्कूल जवाली