नौ दिन सात हादसे, 30 बने काल का ग्रास
जहां स्कूल बस खाई में गिरी है वहां कुछ माह पहले भी हादसा हो चुका है लेकिन लोक निर्माण विभाग इस सिंगल रोड की हालत सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठा सका है।
धर्मशाला, जेएनएन। कथित तौर पर कड़े यातायात प्रबंधों के बावजूद जिला कांगड़ा में सड़क हादसों का दौर थम नहीं रहा है। जिले की सड़कों में नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत इतनी खौफनाक हुई है कि इसे कोई भूल नहीं पाएगा। पिछले साल कुल 600 सड़क हादसे हुए और 190 लोग काल का ग्रास बने तो 1022 को जख्म मिले थे। इस साल अप्रैल माह के नौ दिन में सात सड़क हादसे हुए हैं और 30 लोग काल का ग्रास बने हैं। हालांकि लोक निर्माण विभाग आए दिन राग अलापता है कि यहां-वहां की सड़कें चकाचक होंगी और हादसों को रोकने के लिए ब्लैक स्पॉट भी चिह्नित करता है। सोमवार को जिस स्थान पर हादसा हुआ वहां सड़क की हालत खराब थी। जहां स्कूल बस खाई में गिरी है वहां कुछ माह पहले भी हादसा हो चुका है लेकिन लोक निर्माण विभाग इस सिंगल रोड की हालत सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठा सका है। यहां आजतक न तो कोई क्रैश बैरियर लगाया गया है और न ही चेतावनी बोर्ड।
फिर हरे हुए आशापुरी व हरिपुर बस हादसे के जख्म
नूरपुर में हुए बस हादसे ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। यह प्रदेश का सबसे बड़ा हादसा है, जिसमें
एक साथ इतनी संख्या में मासूम स्कूली बच्चों की जान गई हो। इस हादसे ने जिला कांगड़ा के आशापुरी व हरिपुर में हुए बस हादसों की जख्मों को भी हरा कर दिया है। इन हादसों में 70 के करीब लोगों की मौत हो गई थी। 6 नवंबर, 2009 को हरिपुर में हुए हादसे में चालक की लापरवाही व बस के तेज गति में होने के कारण गुलेर मोड़ पर बस के गहरी खाई में गिर जाने से 35 लोगों की मौत हो गई थी जबकि कई अन्य घायल हुए थे।
वहीं, पालमपुर के आशापुरी में हुए बस हादसे में 12 सितंबर 2012 को 35 लोगों की मौत हो गई थी। यह एक ऐसा हादसा था, जिसमें आशापुरी गांव के कई चिराग बुझ गए थे। जबकि 5 अप्रैल 2017 को ज्वालाजी
मंदिर से मुंडन करवाकर घर लौट रहे दो मासूम बच्चों की बस हादसे में जान चली गई। मंदिर में माथा टेकने के बाद पूरा परिवार वापस घर जा रहा था। यह दर्दनाकहादसा धर्मशालाशिमला एनएच पर कांगड़ा के पास हुआ था, जहां श्रद्धालुओं से भरी टूरिस्ट बस अनियंत्रित होकर पलट गई थी।